इच्छा शक्ति का साधना से अदृश्य दर्शन

July 1979

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किसी वस्तु की इच्छा करना एक बात है और इच्छा के साथ शक्ति का संयोजन करना इससे सर्वथा भिन्न बात है। इच्छा तो प्रायः सभी व्यक्ति किया करते हैं कि हम धनवान हो जायें, विश्व भर में हमारी कीर्ति फैल जाये और जो भी हम चाहें वह तुरन्त प्राप्त हो जाय। लेकिन कितने व्यक्तियों की इच्छायें पूरी होती हैं। वस्तुतः इच्छा के साथ शक्ति का संयोग ही उनकी पूर्ति के आधार खड़ा करता है। इस शक्ति के कारण ही संकल्प मात्र से परमात्मा ने सृष्टि कर डाली। माण्डूक्यकारिका में कहा गया है- इच्छामाँत्र प्रभौः सृष्टिः (यह सृष्टि प्रभु की इच्छा मात्र है) क्योंकि प्रभु की इच्छा शक्ति सम्पन्न और समर्थ है।

इस तथ्य को सोदाहरण समझाते हुए काशी के प्रसिद्ध सन्त और सिद्धयोगी स्वामी विशुद्धानन्द ने अपने एक शिष्य से कहा, शिष्य के साथ दो अन्य व्यक्ति भी थे, उन्होंने तीनों शिष्यों की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा-देखा इच्छाशक्ति के विषय में, मैं तुम्हें एक प्रयोग बताता हूँ। तुम तीनों अपने हाथ की मुट्ठी बाँध लो और उसमें रखने लायक किसी भी वस्तु की इच्छा करो।” तीनों शिष्य मुट्ठी बाँधकर स्वामीजी के निर्देशानुसार मनचाही वस्तु की इच्छा करने लगे। कुछ देर बाद स्वामी जी ने कहा-’मुट्ठी खोल कर देखो तुम्हारी वस्तु मुट्ठी में आ गयी है या नहीं।’ तीनों शिष्यों ने मुट्ठी खोल कर देखा तो वह पहले जैसी ही खाली मिली।’ बाबा ने फिर कहा-एक बार और मुट्ठी बाँधो तथा पुनः अपनी इच्छित वस्तु का चिन्तन करो। तुम लोगों ने यह तो देख लिया कि मात्र इच्छा से कुछ नहीं होता। अब मैं तुम्हारी इच्छा में शक्ति का संचार करता हूँ। तीनों शिष्यों ने फिर मुट्ठियाँ बन्द कर लीं। बाबा के कहने पर जब उन्होंने पाया तो तीनों की मुट्ठियों में इच्छित वस्तुएँ।

इस घटना की व्याख्या में सिद्ध योगी ने अपने शिष्यों को बताया-तुम्हारी इच्छा और मेरी शक्ति दोनों मिलकर हो इच्छा शक्ति के रूप में परिणत हो गयीं। जब तुम स्वयं अपनी शक्ति का विकास कर लोगे तो तुम्हें इस शक्ति संचार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

जहाँ कहीं भी कभी चमत्कारी घटनाओं के विवरण मिलते हैं, इच्छा शक्ति हो उनके मूल में विद्यमान रहती है। अमेरिका के ‘मिशिगन पैरासाइकिक रिसर्च सेण्टर’ ने इस प्रकार की कितनी ही घटनाओं के विवरण संकलित किये और उनकी वास्तविकता की जाँच की। रिसर्च सेण्टर द्वारा खोज के लिए चुनी गई घटनाओं में से कई निराधार और झूठ थी परन्तु ऐसी भी कितनी ही घटनायें निकली जिनसे इच्छा शक्ति के चमत्कारों तथा उसके विकास सम्बन्धी नियमों के बारे में नयी जानकारियाँ मिलीं।

न केवल अमेरिका वरन् रूस में भी जहाँ स्थूल से परे किसी वस्तु या शक्ति का अस्तित्व पहली ही प्रतिक्रिया में ऽठ, मिथ्या और फ्राड समझा जाता है, ऐसे कई व्यक्ति है जो अपनी इच्छाशक्ति की अद्भुत सामर्थ्य का वैज्ञानिक परीक्षण करवाने में भी निस्संकोच आगे आये। रूस की महिला श्रीमती मिखाइलोवा अपनी अतीन्द्रिय सामर्थ्य के लिए विख्यात है। एक रात्रि भोज में, जिसमें प्रसिद्ध रूसी पत्रकार वादिम मारिम भी उपस्थित थे लोगों के आग्रह पर मिखाइलोवा ने कुछ चमत्कार प्रस्तुत कर उपस्थित लोगों को हैरत में डाल दिया। वादिम मारिन ने अपने पत्र को ताजे अहं में उस प्रदर्शन के बारे में लिखा- ‘वहाँ भेज पर कुछ दूर एक डबल रोटी रखी थी। उन्होंने उसकी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखना आरम्भ किया। कुछ ही क्षणों के पश्चात् डबल रोटी उनके ओर सरकने लगी जैसे ही डबलरोटी उनके निकट आयी वैसे ही श्रीमती मिखाइलोवा ने झुककर थोड़ा मुँह खोला और वह डबल रोटी उनके खुले मुँह में पहुँच गयी।

रूस के ही एक-दूसरे मनोचिकित्सक डा. वैन्शनोई अपनी अलौकिक शक्ति के लिए विख्यात है। वे किसी भी वस्तु को केवल दृष्टि केन्द्रित कर उसे अपने स्थान से हटा सकते हैं और किसी खाली पात्र को दूध या किसी अन्य वस्तु से परिपूर्णतः कर सकते हैं। इन बातों पर रूस में अभी तक बहुत कम विश्वास किया जाता है। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों ने वैन्शनोई की परीक्षा लेने का कार्यक्रम बनाया, वैज्ञानिकों ने हर तरह से डा. बैन्शनोई के प्रत्येक कार्यक्रम की परीक्षा ली और उनको बारीकी से जाँचा परन्तु कहीं कोई धोखा धड़ी या हाथ की सफाई नहीं दिखाई दी।

डा. नन्डोर फीडोर ने एक पुस्तक लिखी है ‘विश्वीन टू वर्ल्डस्’ इस पुस्तक में उन्होंने कितनी ही ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया है जिनके मूल में स्थूल मानवीय सामर्थ्य से परे कोई शक्ति काम करती थी। एक प्रसिद्ध मनोविज्ञानवेत्ता सिगमण्ड फ्रायड को परामानसिक शक्तियों पर विश्वास नहीं था। डा. फीडोर ने लिखा है कि एक बार उनके पास जुँग नामक व्यक्ति आया जुँग को फ्रायड ने चुनौती दी तो उसने अपनी अलौकिक-शक्ति का प्रदर्शन किया। जुँग अपने ही स्थान पर खड़ा रहा पर कमरे की वस्तुएं इस तरह काँपने लगीं जैसे कमरे में भारी भूकम्प आ गया हो। कमरे की सारी पुस्तकें उड़ उड़ कर फर्श पर इस तरह जमा हो गयीं जैसे किसी ने समझदार व्यक्ति ने उन्हें उठा कर कराने से रखा हो।

अमेरिका के यूरी गैलरतो ने इच्छाशक्ति के माध्यम से लोहे के सरियों को मोड़ने, छुरी और चम्मचों को तोड़ने के कई सफल प्रयोग किये हैं। और उनके परीक्षणों को कई चोटी के पत्रकारों, वैज्ञानिकों तथा बुद्धि जीवियों ने देखा है। अन्य प्रदर्शनकर्त्ताओं की भाँति दूरी गैलर को भी संदेह की दृष्टि से देखा गया परन्तु ऐसा कोई छिद्र अब तक दिखाई नहीं दिया है जिसके आधार पर दूरी गैलर को फ्राड या धोखा कहा जा सके।

भारतीय महर्षियों ने इन शक्तियों को इच्छा-शक्ति के साधारण चमत्कार कहा है। महर्षि पतंजलि ने मन को शुद्ध और अन्तःकरण को पवित्र बनाकर चित्त की एकाग्रता साधने मात्र से अणिमा, महिमा, लघिमा आदि सिद्धियाँ प्राप्त होने की बात कही है। अध्यात्म को विज्ञान की दृष्टि से देखने समझने और विश्लेषण करने वाले व्यक्तियों ने ही इन चमत्कारों को साधारण इच्छा शक्ति की सफलता बताया है। वस्तुतः मनुष्य की प्रवृत्ति उसी ओर होती है जिसकी उसे इच्छा आकाँक्षा रहती है। परन्तु इच्छाओं में बल तथा शक्ति इसलिए नहीं आ पाता कि वे बिखरी हुई रहती हैं। सूर्य की बिखरी हुई रश्मियों को एक स्थान पर केन्द्रित कर दिया जाय तो उससे बड़े बड़े कार्य किये जा सकते हैं। धूप देखने में सामान्य लगती है परंतु उसे केन्द्रित कर, और ऊर्जा के माध्यम से फैक्ट्रियाँ चलाने की बात सोची जा रही है। और ऊर्जा के उत्पादन का कार्य सूर्य की किरणों के केंद्रीकरण द्वारा ही सम्भव बनाया जायेगा।

बिखरी हुई इच्छाओं को यदि केंद्रित किया जाये और दृढ़ संकल्प शक्ति को जगाया जा सके तो शारीरिक असमर्थता या अंगहीनता भी मनुष्य के कार्य व्यापार में कोई बाँधा नहीं पहुँचा सकती है। रूस की एक नेत्रहीन युवती जो अंधी हैं, केवल इच्छाशक्ति के बल पर ही कागज पर लिखे अक्षरों को पड़ने में समर्थ हो सकी है। वह पुस्तक पर छापे हुए अक्षरों को छूती हुई जाती है और बताती चलती है कि यहाँ यह लिखा है। ठीक आँख वाले व्यक्तियों की तरह रोजा कुलेशोवा अंधी होते हुए भी पन्ने पलट कर पुस्तक पढ़ देती है। आरम्भ में लोगों ने समझा कि रोजा अंधी नहीं है वरन् उन्हें बेवकूफ बना रही है। पर ऐसी कोई बात नहीं थी। उसकी इस शक्ति का परीक्षण करने के लिए सितम्बर 1962 में मनोविशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गयी उनके सामने रोजा की आँखों पर पट्टी बाँध कर उससे एक छपा हुआ कागज पढ़ने को कहा गया। रोजा ने कागज हाथ में लिया और शब्दशः इस प्रकार पढ़ कर सुना दिया जैसे वह आंखें खोल कर पढ़ रही हो। वैज्ञानिकों ने समझा शायद काली स्याही से छपे अक्षरों और सफेद कागज के बीच ऊष्मा का जो अन्तर है उसके आधार पर अंगुलियां भेद कर लेती हो। परन्तु जब ऊष्मा वहन करने वाला तत्व निकाल दिया गया तो भी रोजा को पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई।

रोजा ने यह क्षमता अकस्मात अर्जित नहीं कर ली। उसने बताया कि बचपन में जब वह स्कूल जाने योग्य हुई थी तभी उसी दृष्टि जाती रही थी। अपनी हम-उम्र बालिकाओं को स्कूल की बातें करते हुए सुन कर उसे बड़ा दुःख होता और वह सोचती काश मैं भी स्कूल जा सकी होती। वह जब अपनी सहेलियों को पढ़ते हुए सुनती तो उसे लगता कि नेत्रों के अभाव में वह संसार के अमूल्य ज्ञान भण्डार से वंचित रह गयी है, क्योंकि वह उस राशी के संचित कोष से तो कोई लाभ उठा नहीं पा रही है।

यह आकाँक्षा उसके अन्तःकरण में इसने प्रबल रूप में उठने लगी कि वह छपी हुई पुस्तकों के पन्नों को पलट कर, उन पर हाथ फेर कर ही मन को समझाने का प्रयत्न करती। परन्तु इससे असंतोष ओर बढ़ता ही जाता था। एक दिन यकायक ही बैठे बैठे जब वह एक पुस्तक के पन्ने उलट रही थी तो उसे लगने लगा कि वह अक्षरों को देखने लगी और उसकी दृष्टि अंगुलियों में आ कर केंद्रित हो गयी है।

इसके बाद वह जब भी पन्ने पलटने लगती तो उसे एक एक अक्षर अपनी अंगुलियों से दिखाई देने लगता। कल्पनाओं और विचारों के चित्र खींचने में सफलता प्राप्त करने वाले टैड सीरियरस ने भी इस सिद्धि को प्राप्त करने में इच्छा शक्ति का ही उपयोग किया अमेरिका के टैड सीटियस को कल्पनाओं के फोटोग्राफ उतरवाने में मिली सफलता के कारण विश्वास की जो ख्याति मिली है वह संसार में शायद ही किसी व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के कारण प्राप्त हुई हो। टैड सीरियस ने इस प्रकार के अनेक प्रदर्शन किये। वह प्रायः किसी व्यक्ति को किसी वस्तु या दृश्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए कहता है और उस व्यक्ति की ओर ध्यान से देख कर कैमरे का बटन दबा देता है।

टैड सीरियस ने एक बार दौड़ती हुई कार की कल्पना का चित्र खींचा। हू बहू चित्र वैसा ही आया। चित्र में दौड़ती हुई दो कारें दिखाई दे रही थीं। एक कार सामने थी और दूसरी उसके पीछे। पिछली कार का पहिया तथा विण्ड स्क्रीन सहित अगला हिस्सा दिखाई दे रहा था। आगे वाली कार के चित्र में एक विशेषता यह थी कि उस पर वह आँख भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी जिसमें से होकर कार का चित्र फोटो प्लेट पर पहुँचा था।

डेनवर के मनोवैज्ञानिक डा. जूले आइसेन वैड ने ‘दि वर्ल्ड ऑफ टैड सीरियस’ नामक एक पुस्तक लिखी है जो टैड सीरियस पर कई परीक्षण करने के बाद डा. जूले ने यह पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में उन्होंने एक स्थान पर लिखा है-मैंने सब प्रकार की चालाकी या धूर्तता को विफल करने के लिए टैड को एक दम निर्वस्त्र करके उसके विचार चित्र से कैमरे द्वारा फोटो लिए। उसे धातु के बंद कमरे में खड़ा करके फोटो खींचे, परन्तु फोटो सदा साफ आये। यह सिद्ध हो गया कि टैड किसी प्रकार की कोई चालाकी नहीं करती है।

इस सिद्ध का रहस्य पूछने पर टैड ने बताया कि वे अपनी कल्पनाओं का चित्र उतारने से लिए कैमरे के सामने जा बैठते और संकल्प करते कि वे अपनी कल्पना को जा बैठते और संकल्प करते कि वे अपनी कल्पना को कैमरे पर प्रक्षिप्त कर रहे हो महीनों तक इसमें असफलता मिली सैकड़ों रीलें बिगड़ी पर जब भी हताश हुए बिना वे अपनी साधना में लगे रहे और अन्ततः अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुए।

उपनिषदों ने कहा है- ‘संकल्पयचोडयं पुरुषः’ यह पुरुष संकल्पमय है। मनुष्य अपनी इच्छानुसार जन्म चुनता हैं, इच्छानुकूल मृत्यु को प्राप्त करता है और इच्छा हो तो परब्रह्म को भी प्राप्त कर लेता है। फिर क्या कारण है कि साधारण सी इच्छाओं को भी पूरा न किया जा सके। इच्छाओं के साथ शक्ति का संयोजन कर मन चाही वस्तुयें, सफलतायें प्राप्त करने का विज्ञान अलग है। लेकिन इस सिद्धि को तत्वदर्शियों ने आत्मकल्याण के मार्ग में बाधक ही माना है। उनकी दृष्टि में यह बहिर्मुखी साधना है जब कि आत्मकल्याण के इच्छुकों को अपनी ही ओर अवर्मुखी होना चाहिए तथा समस्त इच्छाओं वासनाओं को परम चेतना में विलीन कर परमप्राप्तव्य को प्राप्त करना चाहिए।


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