अकर्मण्य, असहाय तथा अविश्वासपूर्ण जीवन बिताने वाले मनुष्यता के नाम पर एक कलंक के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। मनुष्य जीवन रिरियाने, रेंगने और रोने के लिये नहीं है। वह है, आगे बढ़कर भविष्य पर पैर रोपने और समय पर अधिकार करने के लिये। जीवन पराजय के लिये नहीं, विजय के लिये है।
किन्तु जीवन-संग्राम में विजय मिलती उसी को है, जो उत्साह से भरपूर और आत्म-विश्वास से ओत-प्रोत है। जिसके चरणों में अंगद की दृढ़ता है, वही समय की छाती पर अपना पदारोपण कर सकता है। आत्म-विश्वास सारी शक्तियों का उद्गम और समस्त श्रेयों की कुँजी है।
आत्म-विश्वास के जागते ही मनुष्य में वह दिव्य शक्ति प्रबुद्ध हो जाती है, जिसके बल पर ऊँचे से ऊँचे पर्वतों को लाँघा और गहरे से गहरे समुद्र को सन्तरण किया जा सकता है। आत्म-विश्वासी समस्त संसार के विश्वास का अधिकारी होता है।
—सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
—सुरेन्द्रनाथ बनर्जी