तपोभूमि से जली डडडडव-मशाल, तुम आओ! ओ नवयुग के निर्माताओं, सब मिल कदम बढ़ाओ!!
जग होगा प्रथम स्वर्ण-सा अपना मूल्य बढ़ाने। मिटना होगा, किरण जागरण की वसुधा पर लाने॥ चलना होगा, सदा सजग हो खुद ही अलख जगाने। आज दीप बने, तिल-तिल जलकर-तम हर, पंथ दिखाने॥
सदियों से सोये जन-जन को, जगकर स्वयं-जगाओ! ओ नवयुग के निर्माताओं, सब मिल कदम बढ़ाओ!!
युग के नये यज्ञ के होता बोलो कैसे होंगे? स्वयं न जब तक तुम हँसकर के अपनी आहुति दोगे॥ आजादी मिल गई, सृजन है अब तक किन्तु अधूरा। बलिदानों के बिना, कहो कब लक्ष्य हुआ है पूरा??
नव-चेतनता और एकता का नव-पाठ पढ़ाओ! ओ नवयुग के निर्माताओं, सब मिल कदम बढ़ाओ!!
जीवन एक धरोहर पावन, इसे न व्यर्थ गँवाओ। कर सेवा मानवता की तुम, सच्चा पुण्य कमाओ॥ सारे भेद-भाव विस्मृत कर, सबको गले लगाओ। जाति, धर्म से कर्म बड़ा है-बस, इसको अपनाओ॥
कर सतयुग-निर्माण, सभी को शाश्वत सुखी बनाओ! ओ नवयुग के निर्माताओं, सब मिल कदम बढ़ाओ!!
-रामस्वरूप खरे, बी. ए., साहित्य रत्न
-रामस्वरूप खरे, बी. ए., साहित्य रत्न
*समाप्त*