जीवन का काया-कल्प करने वाला एक वर्षीय प्रशिक्षण

March 1966

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इस शिक्षा को ग्रहण करने के लिए हर घर से एक शिक्षार्थी आए।

हमारा प्राचीन गौरवमय इतिहास नर-रत्नों की उज्ज्वल यश-गाथाओं से भरा पड़ा है। इसका मूल कारण उस समय की शिक्षा पद्धति थी। नई पीढ़ी का उत्पादन तो घर-गृहस्थी में होता था, पर उनका निर्माण तत्ववेत्ता ऋषि करते थे। छात्र उनके सान्निध्य में रहकर अक्षर ज्ञान एवं भौतिक जानकारी ही प्राप्त नहीं करते थे, वरन् सुसंस्कारों से सम्पन्न भी बनते थे। गुण, कर्म, स्वभाव का ढाँचा वहीं ढाला जाता था, हाड़-माँस के बने छात्रों में प्राण प्रतिष्ठा उस प्रशिक्षण के द्वारा ही की जाती थी। हमारे गौरवमय अतीत में जो नर-रत्नों और महापुरुषों का बाहुल्य दीखता है, उसका बहुत कुछ श्रेय उस समय की शिक्षा-पद्धति को ही है।

नव-निर्माण के महान कार्य को सम्पन्न करने के लिए देश में प्राचीन काल जैसी शिक्षा-व्यवस्था का भी प्रचलन करना होगा। छात्रों के लिए गणित, इतिहास, भूगोल, भाषा आदि का जानना ही पर्याप्त नहीं, वरन् उन्हें व्यक्ति एवं समाज का समग्र स्वरूप समझने और उनकी समस्याओं को सुलझाने की जानकारी भी होनी चाहिए। उनके व्यक्तित्व को सुसंस्कारित भी होना चाहिए। यह आवश्यकता जब तक पूरी नहीं की जायगी, सामूहिक और वैयक्तिक सुसम्पन्नता का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा।

इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का प्रबन्ध करना आज की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। कुछ दिन पूर्व हमने एक छोटा गुरुकुल तपोभूमि में चलाने की सूचना भी छापी थी। हम चाहते थे कि 14 से 18 वर्ष तक के अपने परिवार के बच्चों को हम अपने पास रखें, चार वर्ष तक उन्हें इस तरह पढ़ावें कि वे भौतिक जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकें और अपने व्यक्तित्व को सुविकसित, सुसंस्कृत बनाते हुए अपने सम्बन्धित लोगों में, समीपवर्त्ती क्षेत्र में स्नेह, सौहार्द और सद्भाव की गंगा बहा सकें।

खेद है कि इस सूचना के प्रति परिजनों ने कोई उत्साह नहीं दिखाया। जिन अभिभावकों के पत्र आये, वे यही चाहते थे कि उनके बच्चों को सरकारी डिग्री भी मिले। आज नौकरी में सरकारी प्रमाण-पत्र ही काम आते हैं, उन्हें ही जैसे-तैसे प्राप्त करने के लिए पढ़ाया जाता है। वह न मिले तो फिर कोई अपने बच्चों को कहीं पढ़ने क्यों भेजे? हमारी कठिनाई यह है कि जो कुछ हम पढ़ाना चाहते हैं, वह इतना अधिक है कि छात्रों का पूरा समय उसी में लग जायगा। आजकल सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में पूरा समय लगाने पर भी जब 60-70 प्रतिशत लड़के फेल होते हैं, तब दूनी पढ़ाई का भार लेकर चलने पर तो शत-प्रतिशत ही फेल होंगे। न सरकारी पढ़ाई हो सकेगी, न हमारी। इन परिस्थितियों में न तो यह बन पड़ा कि हम अभिभावकों की इच्छानुकूल अपनी और सरकारी पढ़ाई का समन्वय कर सकें और न यह सम्भव हुआ कि लोग जीवन-निर्माण की शिक्षा का महत्व समझ कर सनदों का मोह छोड़ें। अतएव वह पूर्व प्रकाशित सूचना फलवती न हो सकी। स्वप्न अभी भी हमारे मस्तिष्क में है, अवसर आया तो फिर कभी कार्यान्वित करेंगे।

इस समय हम एक विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था का आयोजन कर रहे हैं। इसका शिक्षण-काल केवल एक वर्ष है, पर इसमें जन-साधारण की महत्वाकाँक्षाओं के समन्वय की पूरी-पूरी व्यवस्था है। लोग इसलिए पढ़ना चाहते हैं कि उनकी आर्थिक उन्नति हो उन्हें पद गौरव मिले और अपना व्यक्तित्व प्रखर हो। इस वर्ष शिक्षा व्यवस्था में लोगों की यह तीनों ही भौतिक आकाँक्षाएँ पूरी होंगी, साथ ही हमारा व्यक्ति निर्माण का उद्देश्य भी एक सीमा तक पूरा होगा।

हमारा विश्वास है कि इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने वाले प्रत्येक शिक्षार्थी को भौतिक एवं आन्तरिक प्रगति की दिशा में तेजी से बढ़ चलने का एक नया मोड़, नया प्रकाश नया बल एवं नया स्फुरण मिलेगा।


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