Quotation

March 1966

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सत्य और असत्य का अन्तर

जो सत्य को केवल बुद्धि से समझना चाहता है, वह अनेक बार असत्यों के इन्द्रजाल में फँस जाता है। सत्य सुन्दर है, किन्तु असत्य जब सत्य का रूप रखकर सम्मुख आता है तो और भी आकर्षक दीखता है । जो स्वभावतः सुन्दर होता है, वह सामान्यतः सुन्दर लगता है किन्तु जब किसी को रिझाने के लिये सजगता पूर्वक सोलह शृंगार किये जाते हैं, तब उसकी प्रतिक्रिया का तीव्र होना स्वाभाविक है। लोग उस सोद्देश्य रूप जाल में फँस ही जाते हैं। यही दशा सत्य और असत्य की भी है। सत्य मनुष्य के सम्मुख साधारण रूप में ही उपस्थित होता है, किन्तु असत्य छलने के मन्तव्य से अपने स्वरूप को नख से शिखा तक सजा कर ही आता है।

केवल बुद्धि के बल पर सत्यासत्य की परख करने में प्रवंचना की शँका रहती है। सत्य बुद्धि से परखने की नहीं, जीवन में अनुभव करने की वस्तु है। जीवन में अनुभूत किया हुआ सत्य ही वास्तविक सत्य है, शेष असत्य भी हो सकते हैं।

—जे. कृष्णमूर्ति

—जे. कृष्णमूर्ति


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles