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March 1966

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जीवन का स्वरूप और अर्थ—जीवन का अर्थ है आशा, उत्साह और गति। आशा, उत्साह और गति का समन्वय ही जीवन है। जिसमें जीवन का अभाव है उसमें इन तीनों गुणों का होना निश्चित है। साथ ही जिसमें यह गुण परिलक्षित न हों समझ लेना चाहिये कि उसमें जीवन का तत्व नष्ट हो चुका है।

केवल श्वास-प्रश्वास का आवागमन अथवा शरीर में कुछ हरकत होते रहना ही जीवन नहीं कहा जा सकता। जीवन की अभिव्यक्ति ऐसे सत्कर्मों में होती है, जिनसे अपने तथा दूसरों के सुख में वृद्धि हो?

अपनी वर्तमान परिस्थिति से आगे बढ़ना, आज से बढ़कर कल पर अधिकार करना, अच्छाई को शिर पर और बुराई को पैरों तले दबाकर चलने का नाम जीवन है! कुकर्म करने तथा बुराई को प्रश्रय देने वाला मनुष्य जीवित दिखता हुआ भी मृत ही है! क्योंकि कुकर्म और कुविचार मृत्यु के प्रतिनिधि हैं इनको आश्रय देने वाला मृतक के सिवाय और कौन हो सकता है।

—सुब्रह्मण्य भारती

—सुब्रह्मण्य भारती


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