किशोरावस्था में ही विवेकानन्द एक ऐसे गुरु की खोज में थे जिसने स्वयं ईश्वर को देखा हो और उन्हें भी दिखा सके। वह जिस साधु सन्त को देखते उसी से प्रश्न करते-क्या आपने भगवान को देखा है?
एक बार उन्हें राम कृष्ण परमहंस के दर्शन हुए। उनके व्यक्तित्व और प्रवचनों से विवेकानन्द जी बहुत प्रभावित हुये। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने दक्षिणेश्वर के काली मन्दिर में उन्हें मिलने के लिये बुलाया।
विवेकानन्द उनसे मिलने गये तो देखा कि एक से एक बड़े आदमी उनकी सेवा में तत्पर हैं और वे उन्हें ईश्वर संबंधी उपदेश कर रहे हैं। बालक विवेकानन्द उस प्रभावपूर्ण वातावरण में जरा भी नहीं झिझकें और श्री रामकृष्ण परमहंस से प्रश्न कर दिया—”क्या आपने भगवान को देखा है?”
बालक का यह दुःसाहस देखकर श्री रामकृष्ण के भक्तों ने बुरा माना और कहा—बालक! तुम्हें भगवान से ऐसा प्रश्न नहीं करना चाहिये, स्वामी जी तो स्वयं भगवान स्वरूप हैं।
बालक विवेकानन्द ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया—’मैं बिना ठीक से समझे किसी बात पर अन्धविश्वास नहीं करता।’ श्री रामकृष्ण उनकी इस स्पष्टवादिता से बहुत प्रसन्न हुये!