मैं तो सत्य को ही ग्रहण करूंगा!

June 1942

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सत्-चित् आनन्द स्वरूप आत्मा को इसलिए इस भूलोक में नहीं भेजा गया है कि असत्य के अज्ञानान्धकार में भटकता रहे अथवा वासनाओं के जाल में, भ्रमों के जंजाल में जकड़ा हुआ फड़फड़ाता रहे। ईश्वर ने आपकी सत्य शिव और सुन्दर आत्मा को इसलिए अवतार दिया है कि असत्य से बच कर सत्य को ग्रहण करे और अपनी बुद्धिमत्ता का समुचित पुरस्कार पावे।

आप अपने गौरव को स्मरण कीजिए और असत्य के अँधेरे में रहने से इन्कार कर दीजिये। हे ज्योतिस्वरूप अखंड आत्मा! आप सत्य हैं, इसलिए इस विश्व में से सत्य तत्वों को ही चुन लीजिए। माया के बन्धनों में मत बँधिये, असत्य वस्तुओं को पहचानते रहिए और जब वे आपके पास लुभाने के लिये आवें तो खिलखिला कर हँस पड़िये और कहिए-हे भ्रम में भटकाने वाले प्रलोभनों! मैं तुम्हारे असत्य बन्धनों में नहीं बँध सकता हूँ। मैं यात्री हूँ-सत्य की शोध करता हुआ महान् यात्रा कर रहा हूँ। मुझे, इतनी फुरसत नहीं है कि इन झूठे खिलौनों से खेलने में समय बर्बाद करूं। मैं सत्य हूँ, इसलिए मैं तो सत्य को ही ग्रहण करूंगा।


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