(यजुर्वेद अध्याय 32 के सूत्र)
इन्द्रः सत्य योनिः।
परमेश्वर सत्य का प्रवर्तक है।
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य एक इद्धव्यश्चपणीनाम्।
वह एक ही सब मनुष्यों को पूजने योग्य है।
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वेनस्तत्प श्यन्सिद्दितं गुह्यसत्
बुद्धि में रहने वाले उस सत्य ब्रह्म को ज्ञानी देखता है।
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प्रजा पतिः प्रजवा संरक्षणः।
प्रजा पालक, प्रजा के साथ मिलकर रहता है।
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अतो धर्माणि धारयन्।
वह शाश्वत सत्य नियमों का धारण करता है।
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तत्र तंतु पममेष्ठी ततान।
जगत में परमात्मा ने एक ही सूत्र को फैलाया है।
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अप तम्य द्दतं तमो व्यावृत्तः स पाम्मना।
उसका अज्ञान नष्ट हुआ और वह पाप से छूट गया, (जिसने ईश्वर की उपासना की।)
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इन्द्रस्य युज्यः सखा।
जीवात्मा का योग्य मित्र वह ही है।
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सदा पश्यंति सूरयः।
ज्ञानी ही सदा सत्य देखते हैं।