सत्य की आराधना

June 1942

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(यजुर्वेद अध्याय 32 के सूत्र)

इन्द्रः सत्य योनिः।

परमेश्वर सत्य का प्रवर्तक है।

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य एक इद्धव्यश्चपणीनाम्।

वह एक ही सब मनुष्यों को पूजने योग्य है।

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वेनस्तत्प श्यन्सिद्दितं गुह्यसत्

बुद्धि में रहने वाले उस सत्य ब्रह्म को ज्ञानी देखता है।

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प्रजा पतिः प्रजवा संरक्षणः।

प्रजा पालक, प्रजा के साथ मिलकर रहता है।

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अतो धर्माणि धारयन्।

वह शाश्वत सत्य नियमों का धारण करता है।

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तत्र तंतु पममेष्ठी ततान।

जगत में परमात्मा ने एक ही सूत्र को फैलाया है।

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अप तम्य द्दतं तमो व्यावृत्तः स पाम्मना।

उसका अज्ञान नष्ट हुआ और वह पाप से छूट गया, (जिसने ईश्वर की उपासना की।)

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इन्द्रस्य युज्यः सखा।

जीवात्मा का योग्य मित्र वह ही है।

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सदा पश्यंति सूरयः।

ज्ञानी ही सदा सत्य देखते हैं।


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