सत्य-शोधक के साथ

June 1942

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मेरे बहुमूल्य चौदह दिनों की स्मृति ।

(श्री मुँशीराम गुप्ता, हिसार, पंजाब )

गत दो वर्षों से अखंड ज्योति पत्रिका का निरंतर स्वाध्याय करते रहने के कारण मेरे मन में असाधारण श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी। यों तो मैं अनेक ग्रन्थों का स्वाध्याय और अनेक श्रेष्ठ पुरुषों का सत्संग करता रहा हूँ, पर अखंड ज्योति के लेखों में जो समाधानकारक आनंद आता था वह बड़ा ही संतोषजनक होता था। वह ज्ञान तृप्ति का आनन्द श्रद्धा में बदलता गया और एक दिन मन की तरंग से विवश होकर मैं अपने व्यापारिक झंझटों को यों ही अधूरा छोड़ कर हिसार से मथुरा चल पड़ा और अखंड ज्योति कार्यालय में आदरणीय सम्पादक जी की सेवा में जा उपस्थित हुआ।

छोटा सा आठ रुपये मासिक किराये का दफ्तर जिसमें अपने ढंग की अनोखी सादगी विराज रही थी बड़ा ही पवित्र और शान्तिमय प्रतीत होता था। अखबार के बड़े कारखाने की मैं कल्पना कर रहा था। और समझता था कि सम्पादक जी का कोई बड़ा सा आडम्बर होगा किन्तु यहाँ कल्पना से विपरित निकला। दो छोटे कमरों में दो मेजों पर काम हो रहा था, विभिन्न भाषा और दर्शनों के पश्चात हजार ग्रन्थों का जिसने पारायण किया है दर्शन शास्त्र और धर्म विज्ञान के मूल तत्वों का मंथन करने में जिसने चौथाई शताब्दी तक तय किया है, ऐसा व्यास जैसा तत्वज्ञानी कृष्ण सा कर्मवीर और बुद्ध सा प्रचारक यह प्रसन्नमुखी मुद्रा धारण किये खादी के धवल वस्त्र पहने कृशकाय किन्तु तेजपुँज युवक गंभीर लेखन कार्य में निमग्न था। असाधारण सादगी से परिपूर्ण आचार्य श्रीराम शर्मा को पहचानने में मुझे कुछ भी कठिनाई न हुई। सहज ही मेरा मस्तक श्रद्धा से नत हो गया।

चौदह दिन केवल चौदह दिन-मैं मथुरा ठहर सका इस बीच में जीवन की गूढ़ समस्याओं पर जिस सरल और सुबोध ढंग से आचार्य जी ने उपदेश किये उनको भली भाँति मैंने समझा और अन्तरात्मा ने स्वीकार कर लिया कि संसार की विषम पेचीदगियों का यही कारण निदान और निराकरण है जो अखंड ज्योति बताती रहती है सांप्रदायिक द्वेष भावना अपने पराये का भ्रम दूसरों के बुरे स्वभावों पर आने वाले क्रोध यह सभी मुझे व्यर्थ अनुभव हुए क्योंकि आत्मा की महानता और श्रेष्ठता का अनुभव होते ही सांसारिक कुविचारों की तुच्छता स्पष्ट हो जाती है। ईश्वर प्राप्ति और योग साधना, घर गृहस्थी के बीच रह कर किस प्रकार हो सकती है इसका मर्म जानकर मुझे बहुत ही सन्तोष हुआ। अन्यान्य शंकाओं का समाधान प्राप्त करते हुए भी अतीव शान्ति उपलब्ध हुई। मैं सदैव से सत्संग का प्रेमी रहा हूँ और अनेक महापुरुषों के चरण स्पर्श करके कृताकार्य हुआ हूँ पर इस विलक्षण आत्मा में जो दिव्य विभूति मैंने पाई, वह अन्यत्र बहुत ही कम देखने में आती है। पूर्वीय और पाश्चात्य तत्वज्ञान का धुरन्धर विद्वान वज्र की तरह कठोर कर्मनिष्ठ यन्त्र की तरह निरन्तर कार्य में लगा रहने वाला बालक की तरह निष्कपट एवं सरल पुष्प की तरह पवित्र यह निर्धन धर्म प्रचारक अपने ढंग का एक अनोखा पुरुष है जिसकी सादगी सरलता निराभिमानता और सहृदयता देखते ही बनती है।

इसी अप्रैल को वे 14 दिन मुझे स्वर्गानुभव की तरह भली प्रकार याद हैं शायद उन्हें आगे भी भूल न सकूँ। क्योंकि इन दिनों में मैंने बहुत कुछ पाया है। सुना करता था कि पूर्व काल में लोक कल्याण के लिए ऋषि महर्षि निर्जन वनों की कन्दराओं में योगाभ्यास किया करते हैं मैंने देखा कि बृज भूमि के पुण्य क्षेत्र में एक छोटी सी भाड़े की कुटी में एक गृहस्थ योगी लोक कल्याण के लिए प्रचंड तपस्या कर रहा है। मामूली व्यक्तियों की तरह तो भी उसमें कृशकाय अस्थि पिंजर में ज्ञान यज्ञ का एक महान अश्वमेध रचा हुआ है। आडंबर और ढ़ोंगों को पूजने वाली दुनिया शायद इस सादगी पसन्द सन्त को न पहचान सके, परन्तु निःसंदेह कुचवाचन की कीचड़ में बिलखते हुए और अज्ञान के अन्धकार में भटके हुए प्राणियों को ऐसी ही आत्माएं सन्मार्ग पर प्रवृत्त करेंगी।

नवीन युग का निर्माण करने के लिए भागीरथी तपस्या में संलग्न इस महापुरुष का अखंड ज्योति सम्पादक का, आचार्य श्री राम शर्मा का हार्दिक अभिनन्दन करता हुआ मैं अपनी सहज श्रद्धा को प्रकट करना अपना पुनीत कर्तव्य समझता हूँ।


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