सत्यनिष्ठ बालक

June 1942

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अपने शयनागार में सोये हुए महाराज छत्रपति शिवाजी के निकट पहुँचकर वह बालक तलवार का प्रहार करने ही वाला था कि सेनापति तानाजी ने उसे देख लिया और लपककर उसका हाथ पकड़ लिए और धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया।

धमाका सुन कर महाराज शिवाजी जाग पड़े। देखा कि तानाजी द्वारा एक बालक पकड़ा हुआ है जो उन्हें मारने के लिए किसी प्रकार शयनागार में घुस आया था। पकड़ा हुआ बालक-निर्भीकतापूर्वक खड़ा हुआ था। शिवाजी ने उससे पूछा- तुम कौन हो? और यहाँ किस लिए आए थे? बालक ने कहा- मेरा नाम मालोजी है और मैं आपकी हत्या करने के लिए यहाँ आया था। महाराज ने पूछा- तुम नहीं जानते हो कि इसके लिए तुम्हें क्या दण्ड मिलेगा ?

जानता हूँ महाराज! मृत्यु दण्ड, बालक ने उत्तर दिया।

तो इतना जानते हुए भी तुम मेरी हत्या करने क्यों आये? क्या तुम्हें अपने प्राणों का मोह नहीं था, मालो! शिवा जी ने उससे पूछा।

बालक ने अपनी सारी कथा कह सुनाई उसने कहा- मेरे पिता आपकी सेना में नौकर थे वे एक युद्ध में मारे गए। पीछे राज्य से हम लोगों को कोई सहायता न मिली अब हम माँ बेटे कष्ट से जीवन काट रहे हैं। माँ तो कई रोज से बीमार पड़ी है घर में अन्न का एक दाना भी न होने के कारण हम लोगों को कई फाके हो गये। बालक की आँखें छलक आईं। उसने वृत्तान्त को जारी रखते हुए कहा “मैं भोजन की तलाश में घर से बाहर निकला था कि आपके शत्रु सुभागराय ने मुझे बताया कि शिवाजी कितनी निष्ठुर हैं, जिसकी सेवा में तेरे पिता जी की मृत्यु हुई। वही अब तुम्हारी कुछ फिक्र नहीं करता । इसलिए तुझे शिवाजी से बदला लेना चाहिए यदि तू उन्हें मार आवेगा। तो मैं तुझे बहुत सा धन दूँगा । यह बात मुझे उचित प्रतीत हुई और आपकी हत्या के लिए चला आया।

तानाजी ने कहा- दुष्ट तेरे कुकृत्य से महाराष्ट्र का दीपक बुझ गया होता, अब तू मरने के लिए तैयार हो जा’

‘तैयार हूँ ‘ मृत्यु से मैं बिलकुल नहीं डरता। पर एक बात चाहता हूँ कि मृत्यु शैय्या पर पड़ी हुई माता के चरण स्पर्श करने की एक बार आज्ञा मिल जाय। माता के दर्शन करके सबेरे ही वापिस लौट आऊँगा। बालक ने उत्तर दिया।

शिवाजी ने कहा - यदि तुम भाग जाओ और वापिस न आओ तो ?

बालक ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर दिया मैं क्षत्रिय पुत्र हूँ वचन से नहीं लौटूँगा। महाराज ने मालो को घर जाने की आज्ञा दे दी।

दूसरे दिन सवेरे ही मालो जी दरबार में उपस्थित था, उसने कहा महाराज मैं आ गया अब मृत्यु दण्ड के लिए तैयार हूं।

शिवाजी का दिल पिघल गया। ऐसे चरित्र वान बालक को दण्ड दूँ। न मुझ से यह न होगा। महाराजा ने बालक को छाती से लगा लिया और कहा तेरे जैसे उज्ज्वल रत्न ही देश और जाति का गौरव बढ़ा सकते हैं। मालो तुझे मृत्यु दण्ड नहीं सेनापति का पद प्राप्त होगा। तेरी सत्यनिष्ठा को सम्मानपूर्ण गौरव से पुरस्कृत किया जायगा।


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