(पं. जगन्नाथ राव नायडू, नागपुर)
एक व्यक्ति ने सुन रखा था कि “एक समान वस्तुएँ एक दूसरे की तरफ खिंचती हैं। भलों के पास भले और बुरों के पास बुरे जमा हो जाते हैं। आकर्षण का नियम इतना व्यापक है कि रुपये को देखकर रुपया भी खिंचता है।”
उस आदमी को रुपयों की बड़ी जरूरत थी। उसने बड़ी कठिनाई से एक-एक पैसा करके एक रुपया इकठ्ठा किया। जब रुपया हो गया, तो उसे लेकर बैंक में पहुँचा। खजाने की खिड़की के पास वह खड़ा हुआ और रुपये को ऊँचा करके खजाने के रुपयों को दिखाने लगा, ताकि वे आकर्षण के नियम के अनुसार खिंच कर बाहर चले आवें और यह उन्हें ले ले।
वह सारे दिन रुपये को ऊँचा किये रहा और खजाने के रुपयों को इशारे से बुलाता रहा, पर कुछ परिणाम न निकला। एक भी रुपया बाहर न आया। फिर भी वह निराश न हुआ, क्योंकि जो कुछ सुना था वह प्रमाणिक व्यक्ति से सुना था। दूसरे दिन नई आशा से फिर बैंक में पहुँचा और अधिक प्रयत्न से खजाने के रुपयों को अपने रुपये के पास बुलाने लगा।
उसने सोचा शायद दूर से आकर्षण शक्ति काम नहीं करती, इसलिए अपने रुपये को रुपयों के उस ढेर के पास पहुँचा दूँ। खिड़की में से उसने हाथ लम्बा किया, ताकि उसका रुपया ढेर के निकट पहुँच जाय पर अकस्मात उसके हाथ में से रुपया छूट गिरा और उसी ढेर में मिल गया। गिरने की आवाज होते ही खजांची का ध्यान उधर गया। खजांची ‘चोर चोर’ चिल्ला पड़ा। सिपाही दौड़ पड़े और उसे पकड़ लिया।
चोर से कारण पूछा गया, तो उसने सच सच सारी बात कह सुनाई। सुनने वालों ने समझ लिया कोई भोला भाला आदमी है, चोरी करने का इसका इरादा नहीं था। सब लोग उसकी बात पर हँसने लगे।
हँसने वालों में से एक बुद्धिमान ने कहा-
भाई, तुमने जो बात सुन रखी थी, वह बिलकुल सच थी। देखो तुम्हारा रुपया आकर्षण शक्ति से खिंच कर उस ढेर में मिल गया न? तुम्हें यह और जानना चाहिए कि बड़ी ताकत वाला छोटी ताकत वाले को खींच लेता है।
यदि तुम दुष्टों के गिरोह में मिलोगे, तो दुष्ट बन जाओगे और साधुओं की संगति में बैठो तो साधु बनोगे। जब तक तुम में थोड़ी सी सामर्थ्य है तब तक दूसरों को अपने ढांचे में नहीं ढाल सकते खुद ही उनमें मिल जाओगे।
नये सुधारों को लोक सुधार से पहले सत्संग करके बल प्राप्त करना चाहिए।