जो स्त्री पुरुष अपनी शारीरिक संस्कार की उपेक्षा करते हैं, शारीरिक उन्नति की तरफ से बेपरवाह रहते हैं वे कभी महत्व को नहीं प्राप्त कर सकते।
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मन को दृढ़ बनाने की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी कि शरीर की पुष्टि के वास्ते भोजनों की जरूरत है।