ब्राह्मण का काम (Kahani)

September 1992

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संस्कृत के महाकवि माघ अपने घर पर ही काव्य सृजन किया करते थे। एक दिन वे अपनी काव्य कृति को अन्तिम रूप देने में निमग्न थे कि उसी समय अवंति का एक दरिद्र ब्राह्मण उनके पास आया और अपनी कन्या के विवाह के लिए आर्थिक सहायता की याचना करने लगा।

कविवर स्वयं आर्थिक कष्ट में थे, फिर भी उन्होंने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई घर में भी कोई मूल्यवान वस्तु शेष नहीं थी। उनकी दृष्टि पत्नी के हाथों में पहने स्वर्ण कंगन पर पड़ी। पत्नी से उन्होंने एक कंगन माँगा ताकि ब्राह्मण की आवश्यकता पूरी की जा सके। माघ की पत्नी ने दूसरे हाथ का कंगन भी निकाल कर देते हुए कहा स्वामी! निर्धन ब्राह्मण का काम एक कंगन से नहीं चलेगा, इसलिए इसे भी सहर्ष दे दीजिए।


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