भगवान बुद्ध कौशांबी पहुँचे । वहाँ के धूर्तजनों ने मिलकर एक मंडली बनाई और तथागत का तिरस्कार करने की ठानी। उन्हें बहुत अपशब्द कहे। मारने तक पर उतारू हो गये।
आनन्द ने कहा-अन्यत्र चलना चाहिए। यहाँ के लोग बड़े अभद्र हैं। तथागत ने पूछा यदि वहाँ भी ऐसा ही दुर्व्यवहार हुआ तो? आनन्द बोले तब अन्यत्र चलेंगे। प्रश्नोत्तर की यह शृंखला बहुत देर चलती रही और आनंद अन्यत्र, अन्यत्र की रट लगाये रहे।
तथागत ने कहा-यह उचित नहीं। वस्तुस्थिति विदित होने की परिस्थिति आने तक हमें यही ठहरना चाहिए। चल पड़ने पर लोग इन्हीं का कथन ठीक मानेंगे और हमारा साहस टूटेगा।
नियत कार्यक्रम के अनुसार पड़ाव वहीं डाला गया और आक्षेप-कर्त्ताओं की हिम्मत टूट गई।