विश्व इन दिनों विषम परिस्थितियों से होकर गुजर रहा है। समूची मानव जाति प्राकृतिक एवं स्व निर्मित विभीषिकाओं के बीच जी रही है। प्रायः इस संबंध में चर्चाएँ होती ही रहती हैं कि आने वाला समय कैसा होगा। अपने-अपने ढंग से नये युग का आगामी युग के संबंध में आमतौर से सभी ने एक ही बात कही है कि सत्प्रति जो भी अवाँछनीयताएँ और विपरीतताएँ विनाशकारी घटा की तरह चारों ओर छायी दीख रही है, वे अपना अस्तित्व अगले ही दिनों तूफान में फँसे तिनके की भाँति गँवाती नजर आयेंगी और एक ऐसे नये युग का सूत्रपात होता दीख पड़ेगा, जिसमें सर्वत्र सुख-शान्ति का साम्राज्य होगा। पर नये शिशु के आगमन से पूर्व की प्रसव-पीड़ा तो सबको झेलनी ही पड़ेगी।
इसी आशय का मंतव्य प्रकट करती हुई मूर्धन्य मनीषी रुथ मोण्टागोमरी ने अपनी पुस्तक “स्ट्रैर्न्जस एमोन्ग अस” में अपने अदृश्य सहायकों के माध्यम से लिखा है कि आने वाले समय में जल्द ही एक विश्व राष्ट्र और विश्व-सरकार की मान्यता मूर्तिमान होती दृष्टिगोचर होगी। वर्तमान के पृथक्-पृथक् देश तब अलग-अलग राज्यों जैसी भूमिका सम्पन्न करेंगे और सब मिलकर विश्व राष्ट्र व विश्व सरकार के अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित करेंगे। हर जगह एक ही प्रकार का सिक्का चलेगा। संपर्क सूत्र आज जैसा न रहेगा। एक सर्वथा नवीन प्रकार की विधा इस क्षेत्र में प्रयुक्त होती देखी जा सकेगी। वायुयान का स्थान स्पेसशीप ले लेंगे। जीवाश्म ईंधन की उपयोगी और महत्वपूर्ण स्थानापन्न सौर और चुम्बकीय ऊर्जा साबित होगी।
इक्कीसवीं सदी में स्वर्ग का अवतरण धरती पर होते हुए लोग देख और अनुभव कर सकेंगे। सभी मिलजुल कर काम करेंगे और विभिन्न प्रकार की आपदाओं से क्षतिग्रस्त धरती को पूर्व स्थिति में लाने, उसे उर्वर बनाने एवं अपना विकास करने में सहयोग व सहकार का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते देखे जायेंगे। ध्रुवों के स्थानान्तरण से जो अप्रत्याशित क्षति होगी, उसकी पूर्ति करने में 21 वीं सदी की नई मानव जाति महत्वपूर्ण योगदान करेगी।
वे लिखती हैं, कि तब युद्ध की संभावना समाप्त हो जायेगी। मानसिक शक्ति का तब इतना विकास हो जायेगा कि लोग विश्व के किसी कोने में रह कर भी परस्पर विचार-विनिमय करने में समर्थ होंगे। इसी प्रक्रिया से वे दूसरे के चिन्तन को भी प्रभावित कर सकेंगे। शस्त्रास्त्रों की विभीषिका पूर्णतः समाप्त हो जायेगी। लोग इन विनाशकारी हथियारों को लगभग भूल जायेंगे, जिससे उन्हें अधिक समय तक सुख और शान्ति की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। तब निश्चय ही स्वर्णयुग की वापसी देखी जा सकेगी, जिसमें सभी लोग ईश्वरीय नियमों व अनुशासनों का परिपालन करते दिखाई पड़ेंगे। प्रायः संघर्ष की स्थिति तब पैदा होती है, जब लोगों के विचारों में भिन्नता हो, किन्तु जब सभी की विचारधारा समान हो, सब शासन , अनुशासन और पूजा-आराधना के संबंध में एकमत हों, तो फूट-फसाद का प्रश्न ही नहीं उठता। आने वाले समय में ऐसा ही होने वाला है। तब लोगों का रुझान आध्यात्मिक उन्नति को अधिक महत्व देंगे।
वर्तमान समय में यह परिवर्तन धीमी गति से होगा इसमें तेजी शताब्दी के अन्त में ध्रुवों में स्थानान्तरण के उपरान्त तभी आयेगी जब इसके कारण बड़े पैमाने पर धन-जन की हानि होगी। लोग इसके दुष्परिणाम को अपनी आँखों से देखेंगे और चिन्तन में परिवर्तन व परिष्कार की आवश्यकता अनुभव करेंगे। इस विभीषिका के पश्चात् मानवी चिन्तन, चरित्र व व्यवहार में इतना आमूल-चूल अन्तर दृष्टिगोचर होगा, जिसे देख कर लोग यही अनुभव करेंगे कि कोई नयी मानव प्रजाति का उद्भव हो गया है। वस्तुतः इसी के बाद लोग सही चिन्तन की शक्ति को पहचान सकेंगे।
अपनी इसी कृति में उनने आगे कहा है कि इन्हीं दिनों एक देवदूत का आगमन होगा, जो हेलेन किलर के उस भविष्य कथन की सार्थकता को समझाने की कोशिश करेगा, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य की सफलता और खुशियाँ स्वयं उसी के अन्दर छिपी हुई है। उसे बाहर ढूंढ़ने का प्रयास करना मृगतृष्णा में भटकने के समान होगा। वह देवदूत स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत कर लोगों को इसकी प्रेरणा देगा। यह बतायेगा कि मनुष्य के अन्दर इतनी अपार संभावनाएँ छिपी पड़ी हैं, कि यदि उन्हें हस्तगत करने की विधा वह करतलगत कर ले, तो वर्तमान अशान्ति और असंतोष की दयनीय स्थिति में आगे जीना न पड़ेगा इन संभावनाओं को मूर्तिमान करना किस भाँति बन पड़ेगा ? इसी की महत्वपूर्ण प्रक्रिया वह संसार को समझायेगा और यह बतलायेगा कि इसी के परिपालन में मनुष्य-जाति का कल्याण है। उसके उज्ज्वल भविष्य की संरचना इससे विच्छिन्न होकर नहीं हो सकेगी।
यह सतयुग 21वीं सदी के बाद हजारों वर्षों तक बना रहेगा। लोग तब अद्भुत वैचारिक एवं भावनात्मक समानता का प्रदर्शन करेंगे। यह समानता आडम्बर मात्र न होगी, वरन् सभी के व्यावहारिक जीवन में समान रूप से क्रियाशील होती देखी जा सकेगी।
यदि कोई बीमार पड़े तो अन्य लोग उसकी सेवा-सहायता सगे-संबंधियों की तरह करते देखे जायेंगे। इसमें मानसिक शक्ति का भी उपयोग होगा। लोग आरोग्यवर्धक मानसिक ऊर्जा रोगी तक पहुँचाना अपना परम कर्तव्य मानेंगे और इस पुनीत कार्य को तक तक जारी रखेंगे जब तक रोगग्रस्त पूर्णतः स्वस्थ न हो जाय। दुर्भावना का समूल नाश हो जायेगा, इसका स्थान सद्भावना ले लेगी। सब परमार्थ में स्वार्थ का अनुभव करेंगे। अशरीरधारी आत्माओं से संपर्क करना संभव हो जायेगा। इसी प्रकार सूक्ष्म सदात्माएँ सत्पुरुषों से संपर्क कर महत्वपूर्ण जानकारियाँ, प्रेरणा व प्रकाश देंगी, जिनसे लोग लाभ उठाते दिखाई पड़ेंगे।
आगामी सदी के संबंध में प्रस्तुत भविष्यवाणी सूक्ष्म शरीरधारी दिव्य आत्माओं द्वारा की गई है। उनकी एवं अन्य अनेकों भविष्य द्रष्टाओं की सतयुग की वापसी संबंधी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो, इसके लिए हमें प्रयत्न अभी से आरंभ कर देना चाहिए। इसके लिए स्वयं के व्यक्तित्व को इतना परिमार्जित और परिष्कृत करना होगा कि उसकी सुदृढ़ नींव पर नवयुग का स्वर्णयुग का विशाल और भव्य भवन विनिर्मित हो सके। यही युगसन्धि की माँग है और समय की महती आवश्यकता भी। इसे कर गुजरने में हमें तनिक भी कृपणता नहीं बरतनी चाहिए।