मानव शरीर की वैद्युतीय क्षमता का पर्यावरण के विद्युतीय दबाव से घनिष्ठ अन्तः सम्बन्ध है। बाहरी अयन मण्डल में जब भी कोई गंभीर उथल-पुथल होती है, उसका प्रत्यक्ष प्रभाव काया की सामान्य जैव वैद्युतीय शक्ति पर पड़ता है और सामान्य क्रियाशीलता गड़बड़ा जाती है। उस उथल-पुथल को सन्तुलित करने के लिए शरीर में कई तरह की मानसिक एवं शारीरिक हलचलें उठ खड़ी होती हैं, जिनके अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम देखे जाते हैं। ऐसे ही कुछ प्रतिकूल अन्तर्ग्रही प्रभावों में ग्रहण , सौर लपटों एवं सूर्य धब्बों, पुच्छल तारों आदि की गणना होती है। इनका सर्वाधिक प्रभाव जीव-जन्तुओं पर पड़ता है साथ ही इन हलचलों की पूर्वानुभूती भी प्राणियों को पहले होती है। प्राकृतिक जीवन जीने वाले सामान्य से ये प्राणी अतीन्द्रिय क्षमता में मनुष्य से भी बढ़-चढ़ कर दृष्टिगोचर होते और स्रष्टा की न्याय-व्यवस्था को प्रमाणित करते हैं।
मनुष्य अपनी बौद्धिक प्रखरता के बल पर सूर्यग्रहण जैसे प्राकृतिक रहस्यों की जानकारी प्राप्त करने में वर्षों पूर्व भले ही समर्थ हो गया हो, किन्तु उसके प्रभावों को समझने में अभी तक असमर्थ रहा है। वन्य-प्राणियों, पशु-पक्षियों में वह क्षमता विद्यमान है जिससे वे न केवल सूर्य ग्रहण की जानकारी चौबीस घण्टे पूर्व ही प्राप्त कर लेते हैं, वरन् उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए शोरगुल बन्द करके सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं। सबसे चंचल कहा जाने वाला बंदर सूर्य ग्रहण के पूर्व ही खाना-पीना त्याग कर एकान्तप्रिय संन्यासी की भूमिका अदा करने लगता है। इसी प्रकार भूकम्प आने से पहले ही जीव-जन्तुओं के व्यवहार में भारी परिवर्तन देखे गये हैं। जापान में पायी जाने वाली ‘चीवी’ नामक पक्षी भूकम्प आने के चौबीस घण्टे पूर्व ही अपना स्थान त्याग कर दूरस्थ उड़ जाती है। चीन के अनुसंधानकर्ता प्राणिविज्ञानियों ने इस संबंध में बताया है कि अनेकों भूकम्पों के पूर्व यह देखा गया है कि वहाँ के पालतू पशु अपने बंधन तोड़कर घरों के बाहर हो जाते हैं। कुत्ते-बिल्ली-चूहे आदि जीवों के व्यवहार असामान्य रूप से परिवर्तित हो जाते हैं और पारस्परिक वैमनस्य भूलकर वे साथ-साथ एकाँतप्रियता का प्रदर्शन करने लगते हैं।
बर्फ गिरने, आँधी-तूफान आने या भारी वर्षा होने की शत-प्रतिशत जानकारी उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों के माध्यम से मनुष्य अभी तक प्राप्त नहीं कर पाया है। जबकि ऊँची पहाड़ियों पर बसने वाले पक्षी बर्फ पड़ने के ठीक एक माह पूर्व ही पहाड़ियाँ त्याग कर सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं। पर्यवेक्षकों ने अनेकों प्रयोगों के बाद पाया है कि आकस्मिक रूप से पड़ने वाली बर्फ के भी ठीक एक माह पहले पक्षी वह स्थान खाली कर दूर-दराज देशों में चले जाते हैं।
इसी तरह तिब्बत और दार्जलिंग में पायी जाने वाली पहाड़ी सारस वर्षा के दस’-पन्द्रह मिनट पर्व ही पर्वतों की गुफाओं अथवा चट्टानों की आड़ में चली जाती है जिसे देखकर तिब्बत के लोग अपना माल-असबाब बाँध कर वर्षा से बचने का प्रबन्ध करने लगते हैं। कभी-कभी तो यहाँ तक देखा गया है कि आकाश में एक भी बादल नहीं है और पानी बरसने के कोई आसार न होते हुए भी जब यह पक्षी छिपने लगे, तो उसके कुछ ही समय बाद संघटित हुए और वर्षा होने लगी।
मछलियों की भविष्य ज्ञान सम्बन्धी अतीन्द्रिय क्षमता विलक्षण होती है। जीव विज्ञानी मछलियों के इस भविष्य ज्ञान से हैरत में पड़ गये हैं कि यह समुद्र तट पर ठीक तभी अण्डे देती है, जब समुद्री लहरें उतर जाती हैं और दुबारा उठने की संभावना नहीं रहती। यदि मछलियों के इस भविष्यज्ञान में एक मिनट का भी अन्तर पड़ जाय तो उनके सारे अण्डे गहरे समुद्र में जाकर नष्ट हो जायँ। वैज्ञानिकों ने यह शोध-निष्कर्ष मछलियों को झील, तालाब और प्रयोगशालाओं में, एक्चेरियम में रखकर बनावटी प्रकाश अंधकार और कृत्रिम चन्द्रमा का आकर्षण देकर प्राप्त किये । किन्तु प्रकृति प्रेमी इन मछलियों को रंचमात्र भी भ्रम में न डाला जा सका । इन सभी स्थानों पर रखी गयी मछलियों ने ठीक उसी समय अण्डे दिये जब सागर में रहने वाली मछलियों ने दिये अर्थात् लहरों के उतरते ही मछलियों ने अपने भविष्य ज्ञान के आधार पर उक्त क्रिया की। इनकी इस विधा की जानकारी में लाखों-करोड़ों वर्षों आज तक रंच मात्र का अन्तर नहीं। आया अन्यथा इन जातियों का नामोनिशान कभी का समाप्त हो गया होता।
इस संदर्भ में मूर्धन्य जीवविज्ञानी डॉ विलशूल ने गंभीरतापूर्वक अध्ययन किया है और अपनी कृति “द साइकिक पॉवर आफ एनीमल्स” में मानवेत्तर प्राणियों अर्थात्-पशु-पक्षियों की विलक्षण अतीन्द्रिय क्षमताओं का वर्णन किया है। उनका कहना है कि स्रष्टा ने क्षुद्र समझे जाने वाले प्राणियों को उन शक्ति-सामर्थ्यों से युक्त बनाया है जिन्हें प्राप्त करने के लिए मनुष्य को वर्षों कष्ट साध्य साधनायें करनी पड़ती हैं। इतने पर भी वह प्रकृति संकेतों की बारीकियों को पूर्णतया समझ पाने में समर्थ नहीं हो पाता।