माता की विशाल हृदयता (Kahani)

September 1992

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विनोबा की माता के पास पड़ोसिन अपना लड़का छोड़कर कुछ दिन के लिए तीर्थ यात्रा गई थी। बिनोवा और पड़ोसी का लड़का समान स्नेह और सद्भाव के साथ एक ही घर में रहने लगे।

माता के व्यवहार में बिनोवा ने कुछ अन्तर पाया। पड़ोसी के लड़के को वे घी से चुपड़कर रोटी देती थीं और बिनोवा को रूखी। इस भेदी भाव का कारण एक दिन माता से वे पूछ ही बैठे।

माता ने स्नेह भरे शब्दों में कहा बेटा तू तो मेरा बच्चा है। पर दूसरा तो भगवान कहते हैं न? भगवान के और अपने बच्चे में कुछ तो अन्तर होना ही चाहिए।

माता की विशाल हृदयता पर विनोबा गदगद हो गये। इसके बाद फिर उन्होंने कभी वैसी शिकायत नहीं की।


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