बलिष्ठ दैत्य बनें, कि प्रतिभा सम्पन्न देव ?

September 1992

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मनुष्य शरीर-शक्ति और आकार-प्रकार में चाहे कितना भी बढ़ा-चढ़ा क्यों न हो, यदि परस्पर स्नेह-सौजन्य, सहयोग-सहकार का अभाव रहा, तो वह लम्बे समय तक अपना अस्तित्व किसी भी प्रकार बनाये रखने में असफल ही रहेगा। इतिहास साक्षी है कि पिछले दिनों की दैत्याकार मानवी प्रजातियाँ सिर्फ इसलिए लुप्त हो गई कि उनने प्रेम-सद्भाव की जगह शरीर बल को अधिक महत्व दिया, फलतः वे एक-दूसरे को अपने अधीन बनाने में ही लड़-भिड़ कर खप गयीं और आज उनकी स्मृति मात्र शेष है। इतिहास में यदा-कदा उनकी चर्चा भर होती है। अविस्मरणीय तो वही बन पाते हैं, जो बुद्धिबल का प्रयोग करते और दूरदर्शिता अपनाते हैं। लम्बे समय तक अपनी सभ्यता को सुरक्षित ऐसे ही लोग रख पाते हैं। दूसरे तो स्वयं डूबते और साथ-साथ अन्यों को भी डुबा ले जाते हैं।

पिछले दिनों के पुरातात्त्विक गवेषणाओं एवं यात्रा-विवरणों से विश्व के अनेक हिस्सों में ऐसी मानवी प्रजातियों का पता चला है, जो कभी अपनी दैत्याकार आकृति के कारण प्रसिद्ध थीं पर विवेक-बुद्धि की कमी ने उन्हें समूल नष्ट कर दिया। ऐसा ही एक विशालकाय अस्थि-पिंजर सन् 1577 में स्विट्जरलैंड के ल्यूसर्न प्राँत के विलिसायू स्थान में उत्खनन के दौरान प्राप्त हुआ था। उसके मानव अस्थि होने के संबंध के तत्कालीन अस्थि विशेषज्ञ फेलिक्स प्लैटर से सलाह ली गई। उन्होंने गहन जाँच-पड़ताल के उपरान्त उसके मानव-अस्थि होने की पुष्टि कर दी। कंकाल के अध्ययन के आधार पर जीवित स्थिति में उसकी ऊँचाई नौ फुट के करीब बतायी गई। इसी प्रकार की एक अन्य कब्र खुदाई के दौरान सेण्ट एण्टोनी के निकट चाउमोण्ट किले के पास देखी गई। कब्र की लम्बाई चौड़ाई आश्चर्यजनक ढंग से विशाल थी, जिसमें लगभग 12 फुट लम्बा , 3 फुट चौड़ा तथा दो फुट ऊँचा कंकाल पड़ा था, जिसके मानवी होने में किसी भी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता था। कब्र के ऊपर पिंजर का नाम-”ट्यूटोबोक्ट्स रेक्स” खुदा था और आस-पास अनेक पदक, सिक्के आदि पड़े हुए थे। आज भी इसकी अस्थियाँ “म्यूजी डी पैलिओण्टोलोजी” नामक पेरिस के एक संग्रहालय में पड़ी हुई हैं। अन्वेषणकर्ताओं का कहना है कि एक युद्ध के दौरान सिम्ब्री के भीमकाय राजा ट्यूटोबोक्टस को बन्दी बना लिया गया और दूसरे विजयी सम्राट मेरियस द्वारा मार डाला गया, तत्पश्चात् उसे चाउमोण्ट किले के समीप एक कब्र में सुरक्षित दफना दिया गया।

इसी प्रकार के एक दैत्याकार मनुष्य का उल्लेख प्रसिद्ध इतिहासकार जैफरसन ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री एण्ड एण्टीक्विटीज ऑफ ओलरडेले एक्व उरवेण्ट” में किया है। वे लिखते हैं कि मूर्धन्य नृतत्वविज्ञानी ह्यूज हडसन का यह कथन गलत नहीं है कि प्राचीन समय में मनुष्य का आकार-प्रकार असाधारण रूप से बड़ा हुआ करता था। इस संदर्भ में प्रमाण प्रस्तुत करते हुए वे लिखते हैं कि सेण्ट बीज के समीप कुम्बरलैण्ड में प्राप्त मानवी अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारे पूर्वज असंदिग्ध रूप से विशालकाय रहे होंगे। सेंट बीज के उक्त कंकाल की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि जहाँ यह अद्भुत कब्र मिली, इन दिनों वहाँ धान का खेत हैं । बीज बोते श्रमिकों को उसका कुछ हिस्सा एक दिन दिखाई पड़ा तो वे उत्सुकतावश उसे खोदने लगे, फलस्वरूप वहाँ उस कब्र के होने की जानकारी मिली। कब्र जमीन से 12 फुट नीचे थी, पर बरसात के कटाव से अब वह उतनी गहरी नहीं रह गई थी और उसका कुछ हिस्सा बाहर निकल आया था। उसे खोदने पर उसके भीतर साढ़े बारह फुट लम्बा मानवी पिंजर सुरक्षित प्राप्त हुआ। उसके मानवी न होने का भ्रम गड्ढे से प्राप्त वस्तुओं से जाता रहा। वहाँ कई विशाल कलेवर के आयुध पड़े थे। इनमें उसका स्वयं का लौह कवच और कुल्हाड़ा विशेष उल्लेखनीय है। कवच की लम्बाई 5 फुट थी, जो सिर और कमर तक शरीर के सम्पूर्ण भाग को ढकता था। शरीर के एक ओर उसका विलक्षण कुल्हाड़ा था तथा दूसरी ओर 6 फुट लम्बी तलवार। कुल्हाड़ा कितना विशाल था, इसका अनुमान उसके आकार से लगाया जा सकता है और इस आधार पर इसके प्रयोक्ता के आकृति की सहज कल्पना की जा सकती है कि वह कैसा पर्वताकार रहा होगा। कुल्हाड़े का सिर तीन फुट लम्बा था और इसका हत्था जो पूर्णतः लोहे का बना था, 6 फुट लम्बा था और मोटाई एक औसत मानवी जाँघ के बराबर थी।

यह तो कब्रों और अवशेषों के आधार पर मानवी आकार के संबंध में लगाये गये अनुमानों की चर्चा हुई, पर समय-समय पर सुदूर क्षेत्रों की यात्रा करने वाले यात्रियों के यात्रा-विवरणों से भी इस बात को बल मिलता है कि उन दिनों भीमकाय मनुष्य अस्तित्व में थे ऐसा ही एक साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए “जाइण्ट्स ऑफ पैंटागोनिया” पुस्तक में मैगलेन लिखते हैं कि जब उनका बेड़ा कथित पैंटागोनिया ( चिली और अर्जेंटाइना) के पोर्ट सैन जुलियन के तटवर्ती क्षेत्र में खड़ा था, तो एक दैत्याकार मानव उनके जहाज के निकट समुद्र तट पर आया। उसकी लम्बाई इतनी अधिक थी कि नाविकों के सिर मुश्किल से उसकी कमर को छू पाते थे । उसकी आवाज साँड़ जैसी तेज और कर्कश थी। कुछ ही देर में उसी डील-डौल के कुछ और लोग वहाँ आ पहुँचे। मैगलेन और उनके साथी उनमें से दो को पकड़ने में सफल रहे। उन्हें लोहे के एक बड़े पिंजड़े में रखा गया और योरोप की ओर यात्रा प्रारंभ की गई, पर योरोप पहुँचने से पूर्व ही रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई।

ड्रेक, पेड्रो सरमिएण्टों, एन्थोनी, नीवेंट एवं कैवेडिश आदि सभी यात्रियों ने पैंटागोनिया क्षेत्र में रहने वाले दानवाकार मानवों का अपने यात्रा-वृत्तांतों में उल्लेख किया है उनकी लम्बाई के संबंध में उनमें मतैक्य है। सभी ने उनकी ऊँचाई साढ़े दस फुट से बारह फुट के बीच बतायी है। कइयों ने उनके मृत शरीरों को मापा भी। ऊँचाई उपरोक्त सीमांतर्गत ही पायी गई । सीबाल्ड डी वीयर्ट, जोरिस स्पीलबर्जेन, जैकब ली मेयर एवं विल्हेल्म साउटेन जैसे बाद के भ्रमणकर्ताओं ने भी अपने पूर्व साथियों के विवरणों की सत्यता की पुष्टि की है।

यद्यपि आज के लोगों को ऐसे दानवाकार मनुष्यों के अस्तित्व पर सहज ही विश्वास नहीं हो सकता, पर इस प्रकार की संभावना से सर्वथा इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस संबंध में कोम्मोडोर बोयरन के साक्ष्य और तथ्य सबसे अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय माने जाते हैं। वे अपने ग्रन्थ “ इक्सटिंक्ट पैंटागोनियन जाइण्ट” में लिखते हैं कि निस्संदेह पूर्व काल में पृथ्वी पर भीमकाय मनुष्य निवास करते थे। इसके प्रमाण न सिर्फ पैंटागोनियन क्षेत्र में मिलें हैं, वरन् विश्व के अनेक हिस्सों में असामान्य आकार-प्रकार के ऐसे नरपिंजर मिले हैं, जो यह साबित करते हैं कि प्राचीन समय में धरती पर कभी ऐसे मानव निश्चय ही रहते थे।

उनका लोप कैसे हो गया? इस संदर्भ में गहन अनुसंधान के उपरान्त वे कहते हैं तब के मनुष्यों में काया की स्थूलता जिस प्रकार बढ़ी-चढ़ी थी, बुद्धि भी वैसी ही स्थूल व मोटी थी। फलतः उनमें आये दिन इस बात की प्रतिद्वंद्विता छिड़ी रहती थी कि कौन किसे पराजित कर अपने अधीन बनाता है। जो सहजता से दूसरों की अधीनता स्वीकार लेते, उन्हें गुलामों जैसी जिन्दगी जीनी पड़ती। ऐसे लोग प्रायः कम ही होते, जो सहयोग सद्भावनापूर्वक रहने के लिए उद्यत होते। अधिकाँश लोग गुलामी की तुलना में लड़-भिड़ कर मर जाना पसंद करते। इस प्रकार शरीर-बल की अहंता और इसकी प्रतियोगिता तथा असहयोग के कारण धीरे-धीरे उनकी संख्या घटती गई। बाद में जब उनकी स्थूल बुद्धि को इसका दुष्परिणाम समझ में आया, तो एक जगह रह कर लड़ने-भिड़ने की तुलना में बिखर जाना रह कर लड़ने-भिड़ने की तुलना में बिखर जाना उन्होंने उपयुक्त समझा। उन्हीं बचे लोगों की आनुवाँशिकता लम्बी आनुवंशिक-यात्रा के उपरान्त यत्र-तत्र प्रकट होती और अपना प्रमाण-परिचय प्रस्तुत करती है। शारीरिक बलिष्ठता आवश्यक तो है, पर मानसिक प्रखरता के बिना उसका सुनियोजन बन पड़ना शक्य नहीं।


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