उद्धत,सनकी तो नहीं ही बनें

September 1992

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चौरासी लाख योनियों में से मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ व उत्कृष्ट है। जिसे यह अनुदान प्राप्त है, उसके बारे में कहा जाता है कि भगवान की उस पर महती कृपा है, पर जब इस दिव्य अनुदान का प्रतिपादन शोक-सनक एवं कौतुक-कौतूहल के चित्र-विचित्र प्रदर्शनों के रूप में चुकाया जाने लगता है तो इसे उसका दुर्भाग्यों का सिलसिला चल पड़ा है। सद्गुणों से अपने को परिपूर्ण बनाने के स्थान पर मनुष्य कूड़े-कबाड़े एकत्र करता और बहुमूल्य जीवन सम्पदा को यों ही व्यर्थ गँवाता रहता है।

स्पेन की एक विधवा महिला को कूड़े एकत्रित करने का विचित्र शौक है। पिछले चालीस वर्षों से वह इस कार्य में लगी हुई है और अब तक दो बड़े कमरों में उसने 15 टन कूड़ा इकट्ठा कर अपने साफ-सुथरे कमरे को कूड़ा घर बना लिया है। इसी तरह आस्ट्रिया का एक चौबीस वर्षीय युवक है-मोजेट। यद्यपि वह अभी अध्ययनरत है, पर पढ़ाई से बचे समय का उपयोग विभिन्न प्रकार के जन्तुओं, कीड़े’-मकोड़ों का संग्रह करने में करता है। उसकी इस सनक से घर वाले भी परेशान हैं, पर उसका शौक छूटने का नाम ही नहीं लेता। अधिकाँश समय उसके अजायब घर को देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ जमी रहती है।

चुँग हुवा चीन के बीजिंग शहर का रहने वाला है। इन दिनों वहाँ के न्यायालय में उसके विरुद्ध एक मुकदमा चल रहा है। उस पर आरोप है कि अपने घर के लान में सैंकड़ों पालीथिन बैग इकट्ठा कर शहर को गंदा और प्रदूषित करने का प्रयास कर रहा है, जबकि उसका कहना है कि वह नगर को गंदा नहीं, वरन् विभिन्न स्थानों पर यत्र-तत्र पड़े बैगों को एकत्रित कर शहर को स्वच्छ रखने में सफाई कर्मचारियों का ही हाथ बँटाता है।

चीन का ही एक अन्य व्यक्ति है-लावो पेंग। इसे साँप पालने का शौक है। सन् 1980 से अब तक उसके साँपों की संख्या नौ सौ से ऊपर पहुँच चुकी है। उसका यह विचित्र शौक तब शुरू हुआ, जब एक सपेरे के पास प्रथम बार उसने कुछ रंग-बिरंगे सर्पों को देखा। इसी के बाद उसने काँच का एक बड़ा घर बनवाया और साँपों को पकड़-पकड़ का उसमें छोड़ने लगा। अपनी नौकरी से बचे शेष समय को वह इसी में नियोजित करता है।

यदि किसी व्यक्ति की, महिलाओं के वस्त्र चुराने की अजीबोगरीब रुचि हो, तो उसे क्या कहा जाय-पागल सनकी अथवा काम कुण्ठित मानसिक रोगी? कह कुछ भी लें, पर सैटियागों शहर में जॉन फ्रैजर नामक एक ऐसा ही व्यक्ति है, जिसके विरुद्ध इसी अपराध के संबंध में मामला दर्ज किया गया है।

जापान की महिला तोशिया को काँच खाने की सनक है। उसकी इस सनक की शुरुआत तक हुई, जब बचपन में उसने एक काँच का टुकड़ा निगल लिया था उसके बाद धीरे-धीरे उसका यह शौक बढ़ता गया और अब तो उसके लिए यह आम बात हो गई है। वह ट्यूब लाइट की नली, बल्ब, खिड़कियों के शीशे बिना किसी परेशानी के निगल सकती हैं।

इथोपिया के सम्राट हाइल सलामी की गणना एक क्रूर-सनकी के रूप में होती है। जब उसे इसका दौरा पड़ता , तो वह किशोरियों के खून से स्नान करने का विशेष समारोह आयोजित करता। इस हेतु राज महल से कुछ दूर एक सरोवर का निर्माण कराया गया था। हाइल सलामी प्रति वर्ष अपने जन्मदिन पर यहाँ स्नान करने आता। स्नान से पूर्व दो कबीली बालाओं की हत्या की जाती और उनके रक्त को तालाब जल में डाला जाता, फिर इस रक्त मिश्रित लाल जल में सम्राट देर तक स्नान करता रहता। इससे उसे यौन उत्तेजना मिलती थी।

शौक पालने में कोई हर्ज नहीं, पर ऐसा करते समय ध्यान इस बात का भी रखा जाना चाहिए कि हमारे इस कार्य से समय, श्रम और साधन का सुनियोजन मानवी हित में कितना हुआ। यदि इनका उपयोग सिर्फ कौतुक व सनकी प्रदर्शनों में होता है, तो हमारा मूल्य एक तमाशबीन व सर्कस वाले से अधिक नहीं हो सकता। ऐसे लोग तो शहर के नुक्कड़ और चौराहों पर अपनी बाजीगरी दिखाते ही रहते हैं, फिर हमने वैसा करके कौन-सा अचम्भा कर दिखाया? कौन-सा तीर मार लिया ? हमारी विवेकशीलता इस तथ्य को भलीभाँति समझने में ही है।

अध्यात्म विज्ञान कहता है कि यह शरीर जितना कुछ कर पाता है, उससे सैकड़ों गुनी अधिक संभावनाएँ सँजोये हुए हैं। व्यक्ति यदि चाहे, तो उन्हें करतलगत भी कर सकता है, पर ऐसा तभी संभव है, जब कौतुक व कौशल के बीच का अन्तर उसकी समझ में आये। समस्या तब खड़ी होती है, जब वह अपनी सामर्थ्य को इन कौतुक भरे प्रदर्शनों तक ही सीमित मान बैठता है, और चित्र-विचित्र सनकों को पूरा करने में ही जीवन सम्पदा की इति श्री कर लेता है। अन्तिम निर्णय मनुष्य को स्वयं करना है कि वह तमाशबीन बने अथवा कुछ श्रेष्ठ और अधिक गरिमामयी उपलब्धि के लिए मनुष्य शरीर के रूप में भगवान के इस दिव्य अनुदान का समझदारी पूर्वक उपयोग करे।


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