पूर्वाभास के रहस्य भरे घटनाक्रम

May 1989

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मार्गन राबर्ट्सन नामक एक लेखक ने अन्तःस्फुरणा के आधार पर सन् 1898 में एक काल्पनिक उपन्यास लिखा। नाम था “रेक आफ द टाइटन आर फ्युटीलिटी”। इसमें अटलाँटिक महासागर की पहली बार यात्रा कर रहे एक विशाल जलयान-टाइटेन के हिमशिला से टकराकर ध्वस्त होने एवं विशाल जनसमूह के जल समाधि लेने का वर्णन था। कितनों ने इसे पढ़ा, पर यह उपन्यास बहुचर्चित तब हुआ जब ठीक चौदह वर्ष बाद सन् 1912 में “टाइटैनिक” जिसे कभी न डूबने वाला तथा अपने समय का श्रेष्ठतम जलयान आँका गया था, अपनी पहली यात्रा पर निकला और 16 अप्रैल 1912 को तक हिमखण्ड से टकराकर पानी में डूब गया। चौदह सौ से भी अधिक व्यक्तियों ने जल समाधि ले ली। मात्र आठ सौ आदमी बच पाये। जलयान के डूबने एवं 1998 में लिखित उक्त उपन्यास के वर्णन में इतनी समानता थी कि लगता था मानों रार्बटसन ने 14 वर्ष पूर्व ही भविष्य का चित्र खींच कर रख दिया हो। बाद में प्रकाशित मार्टिन ऐबन की पुस्तक “प्रोफेसी इन अवर टाइम” में तथा न्यूयार्क टाइम्स में दिये गये विवरण के अनुसार दुर्घटना का महा, यात्रियों की संख्या जीवन रक्षक नौकाओं की संख्या, यान का वजन, लम्बाई तथा जिस गति से टाइटैनिक हिमखण्ड से टकराया आदि में विलक्षण समानता पायी गयी।

इस प्रसंग की चर्चा वहाँ इस .... में रही है कि “भविष्यदर्शन” - “पूर्व कथन” बुद्धिजीवियों को प्रायः एक अंधविश्वास प्रतीत होता है एवं वे तर्क, तथ्य, प्रमाणों की कसौटी पर कसे जाने की चर्चा करने लगते हैं। उनका कथन सही हो सकता है, पर अपवाद संयोग रूप में हमेशा नहीं घटते रहते हैं, यह भी जानलेना चाहिए। .... के ग्रंथ ऐसी अनेकों प्रामाणिक .... से भरे पड़े हैं, जिनमें वर्णित घटनाओं की संगति .... रह गए। ‘टाइटैनिक’ जहाज का उपरोक्त उदाहरण तो उस जखीरे का एक दशाँश मात्र है। विश्व भर के पुस्तकालय ऐसी घटनाओं से रंगी पुस्तकों का भांडागार बने हुए है।

ऐसी ही एक घटना अगस्त 1918 के मध्य की है अमेरिकी पत्रकार यूजीन, पी, लाइल (जूनियर) ने “एवरीबडीज मैगजीन” नामक पत्रिका में प्रकाशनार्थ एक लेख दिया-”द वार आफ 1938” जो कि सितम्बर माह में छपा-इस लेख में श्री लाइल ने एक चेतावनी दी थी कि जर्मनी को यदि मूलतः नष्ट न किया गया तो यह पुनः उठ खड़ा होगा। एक तानाशाह इसका संचालन करेगा तथा महामारी की तरह यह सारे विश्व को अपनी चपेट में ले लेगा। इंग्लैण्ड पर हमला, फ्राँस का कुछ ही दिनों में पतन यह सब 1918 में यह पत्रकार लिख चुका था। विश्वास किसी को भी नहीं हुआ क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध हो चुका था। जर्मनी बड़ी शर्मनाक हार से गुजर चुका था तथा 11 नवम्बर 1918 को अन्ततः शाँति की संधि भी हो चुकी थी जिसमें जर्मनी ने विभिन्न राष्ट्रों की सारी शर्तें मान ली थी।

परंतु अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों की यह खुशफहमी कुछ ही वर्ष रही। 1920 के बाद ही जर्मनी ने पुनः हथियार एकत्र करना आरंभ किये। चिली से नाईटे्रट व अन्यान्य राष्ट्रों से कच्चा माल एकत्रित कर भारी पानी बनाना चालू कर दिया गया। पचास हजार से अधिक की फौज बनकर खड़ी हो गयी एवं हिटलर का नाजीबाद तेजी से उभर कर आया। अन्ततः लेख लिखने के बीस वर्ष बाद उसमें वर्णित एक-एक घटनाक्रम 1939 के बाद यथावत् होता चला गया। लेखक श्री लाइल अपने पूर्वानुमान में,द्वितीय विश्वयुद्ध को एक वर्ष पूर्व 1938 में होने की छोटी सी गलती कर बैठे थे। शेष सभी घटनाक्रम ठीक वैसे ही घटे। यदि 1918 में यूजीन लाइल की “गिफ्टेड प्रोफेसी” को ध्यान में रखा गया होता तो संभवतः द्वितीय विश्वयुद्ध न होता व आज का इतिहास और विश्व का स्वरूप कुछ और ही होता। किंतु भवितव्यता पर विश्वास कम ही लोग करते हैं व उसे काल्पनिक यूटोपिया भर मान कर उसकी उपेक्षा कर देते हैं।

“द अनएक्सप्लेन्ड मिस्ट्रीज ऑफ माइण्ड एण्ड स्पेस” में द्वितीय विश्वयुद्ध के हीरो विंस्टन चर्चिल, जो कि अवकाश प्राप्ति के बाद पुनःयुद्ध में ध्वस्त इंग्लैण्ड का आत्म विश्वास लौटाने के लिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनाये गये थे, के जीवन से जुड़े ऐसे पूर्वाभासों की चर्चा है जो बताते हैं कि दैवी चेतना नहीं चाहती थी कि वे अकाल मृत्यु के शिकार बनें उन्हें समय-समय पर आसन्न संकटों का पूर्वाभास होता रहा और वे बचते रहे।

एक रात्रि वे 10, डाउनिंग स्ट्रीट जो कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री का अधिकृत निवास स्थान है, में अपने विश्वस्त मंत्रियों के साथ उच्चस्तरीय विचार विमर्श कर रहे थे। उसी समय जर्मनी के बम-वर्षक लन्दन के आकाश में मंडरा रहे थे। सायरन बज रहे थे परन्तु विचार विमर्श जारी था। अकस्मात चर्चिल उठे, अपने भोजन कक्ष में पहुँचे जहाँ उनका रसोइया भोजन बना रहा था। उनने उस रसोइये व उसके सहायक से खाना गर्म तवे पर दूसरे कक्ष में रखकर तुरन्त भोजन कक्ष खाली कर उन्हें बंकरों में जाने को कहाँ। 3 मिनट बाद ही एक बम गिरा एवं उसी भोजन कक्ष के पिछवाड़े एवं सारे किचन को ध्वस्त कर गया। किन्तु चमत्कारिक रूप से चर्चिल व उनके मंत्री बच गए बाद में उनने कहा कि मुझे पूर्वाभास हुआ था कि भोजन कक्ष पर बम गिरेगा अतः उन्हें चेतावनी दे आया।

चर्चिल स्वयं हवाई जहाजों पर हमला करने वाली तोपों, बैटरीज का निरीक्षण करने युद्ध स्थल पर जाया करते थे। एक बार जब वे निरीक्षण करके वापस आए व कार में बैठ ही रहे थे तो एक क्षण दरवाजे पर खड़े रहे, फिर घूमकर दूसरी ओर से आकर उस दरवाजे की ओर बैठ गए जिधर वह कभी नहीं बैठते थे। ड्राइवर को आश्चर्य तो हुआ पर उसने कुछ कहा नहीं। गाड़ी वापस प्रधानमंत्री निवास की ओर चलदी। एकाएक एक बम विस्फोट हुआ व उनकी गाड़ी का दूसरा हिस्सा जो मुश्किल से उनसे दो फुट दूरी पर था, दूर जाकर गिरा। किसी तरह बिना उलटे गाड़ी चलती चली गयी व लगभग नष्ट हुई उस गाड़ी से उतर कर वे घर में प्रवेश कर गए। बाद में उनने अपनी पत्नी व साथियों को बताया कि मैं जब उस द्वार की ओर से बैठने लगा, जिधर हमेशा बैठता था तो मुझे लगा कि कोई कह रहा है”रुको! दूसरी ओर जाकर बैठो यंत्र चालित सा मैं उधर जाकर बैठा जो कि सुरक्षित रहा” वे अपनी जान बचाने के लिए हमेशा अपने अन्तःकरण में अवतरित होने वाली प्रेरणा को ही श्रेय देते थे। इसे उनने “इनर वाँइस”- अन्तः की पुकार नाम किया था जो कि पूर्वाभास, दैवी प्रेरणा, अदृश्य सहायता किसी भी नाम से पुकारी जा सकती है। लार्ड डफरिन को भी इसी प्रकार अपने मृत्यु की पूर्व सूचना एक भयंकर आकार प्रकार के व्यक्ति को देख कर मिली थी। यह बहुचर्चित घटना जिसमें वे लिफ्ट दुर्घटना में मरने से बच गए थे, अदृश्य सहायता व पूर्वाभास का एक विलक्षण उदाहरण है।

टीपू सुल्तान को अपने समय के सफलतम शासकों में माना जाता रहा है। 18 वीं सदी का यह योद्धा अन्ततः जब श्रीरंगपटट्म में वीरता के साथ संघर्ष करता हुआ सन् 1799 में युद्ध में मारा गया तो उसके पास से एक डायरी प्राप्त हुई उससे यह स्पष्ट हुआ कि टीपू को अपनी रणनीति के संबंध में पूर्वाभास होता था। कभी स्वप्न में, कभी अनायास बैठे-बैठे यह अन्तःप्रेरणा होती थी कि अब यह कदम उठाना चाहिए। वैसा ही होता था व साथ जुड़े पराक्रम के कारण वह अजेय बना रहा अपने साथ संभावित विश्वासघात व मृत्यु की संभावना भी उसने अपनी डायरी में लिखदी थी।

अपनी पुस्तक “फोर नॉलेज” में एच.एफ. सल्तमर्श ने लिखा है चेतना के विभिन्न धरातलों पर समय के विभिन्न आयामों का व्यक्ति सत्ता को उद्घाटन होता रहता हैं यही भविष्यदर्शन का मूलभूत आधार है। वे लिखते हैं कि समय उड़ता है व अचेतन अवस्था में किसी को भी भूतकाल की घटनाओं का (रिट्रोकाग्नीशन) तथा भविष्य काल की घटनाओं का (प्रिकाग्नीशन) पूर्वानुमान हो सकता हैं। स्नायुशास्त्रियों ने मस्तिष्क के दायें गोलार्ध को समय के आयाम से जुड़ा माना है व कहा है कि जिस किसी में जन्म अथवा साधना पुरुषार्थ से यह विकसित-जाग्रत अवस्था में बना-रहता है उसमें भविष्य दर्शन की क्षमता आ जाती है क्योंकि वह “टाइम एवं स्पेस” आयाम परिभ्रमण करने लगता है।

यहाँ प्रिडीचशन (भविष्यवाणी) एवं प्रिमाँनीशन प्रिकाँग्नीशन (पूर्वाभास) में अन्तर समझ लेना जरूरी है। भविष्यवाणी बहुधा सुनिश्चित होती है। यह या तो ज्योतिर्विज्ञान की गणना, हाथ की रेखाओं, चेहरे आदि को देखकर की जाती है या किसी दैवी प्रेरणावश अथवा साधना पुरुषार्थ से अर्जित ऋद्धि-सिद्धियों के आधार पर की जाती है।

पूर्वाभास सहज अन्तःप्रेरणा या अंतःस्फुरणा के आधार पर किसी को भी कभी भी सोते-जागते एकाकी या पूरे समूह को हो सकता है।

“प्रोफेसी” शब्द प्रोफेट से बना है जिसका अर्थ है-किसी उच्चस्तरीय दैवी सत्ता द्वारा, जो त्रिकालश है - दिव्यदर्शी है, भविष्य के सम्बन्ध में कथन। ये सदैव एक व्यापक समूह को प्रभावित करने वाले पूर्व कथन होते हैं। कभी-कभी “युग विशेष” अथवा पूरे विश्व समुदाय तक को प्रभावित करने वाले। पूर्वाभास एक व्यक्ति पर भी लागू हो सकता है तथा कुछ समूहों पर भी। यह चेतावनी के रूप में भी हो सकता है पर बहुधा स्पष्ट नहीं होता।

एक तथ्य बिलकुल सत्य है कि मनुष्य के अन्दर भविष्य को जानने की विलक्षण सामर्थ्य विद्यमान है। वह भविष्य को वाँछित दिशा में मोड़ भी सकता हैं आने वाला समय उज्ज्वल होगा, सुखद संभावनाएँ लेकर आएगा। यह यदि आज कहा जा रहा है तो उसका सशक्त आधार है- अन्तःस्फुरणा एवं यह विश्वास कि मानव चिरंतर की दिशा धारा अगले दिनों बदलेगी जो समय के प्रवाह को उलट कर रख देगी। ऐसा पहले भी हुआ है और आने वाले बारह वर्ष इसी तरह उथल-पुथल भरे होंगे, यह एक व्यक्ति का अंतःकरण ही नहीं, दैवी चेतना का प्रचण्ड प्रवाह भी अपनी हलचलों से बता रहा है।


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