परमार्थ भी विचारना चाहिए (kahani)

May 1989

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एक अन्धा व्यक्ति रोज रात्रि के पहले प्रहर में दीपक जला कर सड़क के किनारे बैठता। किसी राहगीर ने पूछा, सूरदास! इससे तुम्हें क्या लाभ? तुम्हें तो दीखता तक नहीं। अन्धे ने कहा दीपक मैं दूसरे राहगीरों की सुविधा के लिए जलाता हूँ ताकि वे अँधेरे में ठोकर खाने से बचें। हर काम में स्वार्थ की ही दृष्टि नहीं रहनी चाहिए। परमार्थ भी विचारना चाहिए।


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