स्वर-लहरियों से मानव उपचार

August 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

विद्युत-प्रकाश और ताप की तरह ध्वनि-शब्द शक्ति भी प्रकृति की एक विशिष्ट शक्ति है। इसमें सृजनात्मक एवं ध्वंसात्मक दोनों ही क्षमताएँ विद्यमान है। मधुर स्वर लहरियों के रूप में इसमें जहाँ मनुष्यों सहित समस्त प्राणियों के रूप में पोषण-अभिवर्धन की सामर्थ्य सन्निहित है। वहीं अदृश्य एवं अश्रव्य ध्वनियों के प्रयोग से विनाशकारी दृश्य भी उपस्थित किये जा सकते हैं। कर्णप्रिय भावोत्पादक ध्वनियों का उपयोग रोग निवारण में अन्यान्य चिकित्सा उपचारों से कम प्रभावी नहीं है। संगीत इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

रोगोपचार प्रक्रिया में अब संगीत को वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित किया जा रहा है। साउण्ड थेरेपी के विशेषज्ञों का कहना है कि संगीत के साथ स्वरों की सात भिन्न स्वर लहरियों के अपने पृथक् सात रंग होते हैं। प्रत्येक स्वर की तरंगें अपने विशिष्ट रंग के साथ मानवी काया और मन को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार रोग की प्रकृति के अनुरूप ध्वनि तरंग का निर्धारण कर उसे व्याधिग्रस्त पर डाला और रोग का निवारण किया जाता है। इस उपचार पद्धति के लिए वैज्ञानिकों ने “ओरोटोन” नामक एक ऐसा ध्वनि यंत्र विकसित किया है जिसमें सप्त स्वरों के साथ सात रंग भी उत्सर्जित होते हैं। यंत्र के ‘सी’ रीड से लाल रंग, ‘ई’ से पीला और ‘जी’ से नीला निकलता है। आवश्यकतानुसार रुग्ण व्यक्ति को जैसा रंग अभीष्ट होता है उसी रंग के स्वर का संगीत उसे सुनाया जाता है।

संगीत में विद्यमान सूक्ष्म ध्वनि -तरंगों का मनुष्य की मनोदशा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। फलतः शरीर-रसायन तंत्र में भारी परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं। रूसी वैज्ञानिक कुद्रयावत्सेव के अनुसार इन ध्वनि तरंगों से शरीर की अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ सक्रिय हो उठती हैं और उनसे रिसने वाले हारमोन रसायन मानसिक स्थिति में परिवर्तन का स्पष्ट संकेत देते हैं। मधुर स्वर प्रकंपनों के प्रभाव से व्यक्ति जब प्रसन्नता की स्थिति में होता है, उस समय का रस-स्राव भिन्न प्रकार का होता है और जब कर्कश, कोलाहल युक्त ध्वनि सुनने को मिलती है, वह आवेश से भर उठता है। ऐसी स्थिति में काया में भिन्न प्रकार के रसायन उत्पन्न होते हैं। ध्वनियों में रासायनिक परिवर्तन की इस प्रचण्ड क्षमता को देखते हुए रसायनशास्त्रियों ने “ध्वनि-रसायन” नाम विज्ञान की एक अभिनव शाखा का ही विकास कर लिया है। प्रयोग परीक्षणों के दौरान उनने पोटेशियम आयोडाइड के घोल में जब शक्तिशाली परातंरगें डाली तो उसका रंग पीला हो गया। इसी तरह मरक्यूरिक क्लोराइड का घोल गंदले रंग के रसायन में परिवर्तित हो गया। उनका कहना है कि ध्वनि की उपयुक्त सूक्ष्म तरंगें न केवल मनुष्य में लाभकारी परिवर्तन प्रस्तुत करती हैं वरन् वनस्पतियों के लिए भी हितकारी सिद्ध होती हैं। इसके प्रभाव से बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है। मास्को के कृषि वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया द्वारा गेहूं और जौ में 10 से 40 प्रतिशत उत्पादकता, बढ़ाने में सफलता पाई है।

पिछले दिनों जापान के ओसाका शहर के कृषि विज्ञानी योशितों ओशाई ने अपने बगीचे में लगी टमाटर, चुकंदर और तरबूज जैसी फसलों पर संगीत का प्रयोग किया। पाया गया कि इससे न केवल फलों के आकार और वजन में अभिवृद्धि हुई वरन उनके स्वाद के पौष्टिक गुणों में भी बढ़ोतरी हुई। कुछ ऐसे ही प्रयोग कनाडा के ओंटारियों क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने गेहूँ की फसल पर किये और 60 प्रतिशत से अधिक उत्पादन प्राप्त किया था। भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में गहन अनुसंधान किये हैं। तमिलनाडु क अन्नामलायी स्कूल ऑफ बाँटनी, कोयम्बटूर के सरकारी कृषि विद्यालय एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने अपने विभिन्न प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध कर दिखाया है कि पेड़-पौधे के विकास पर क्रमबद्ध कृषि क्षेत्र की फसलों व अन्यान्य वृक्ष-वनस्पतियों पर संगीत की उपयुक्त स्वर लहरियाँ डाली तो न केवल उनके फलने-फलने की रफ्तार में तेजी आयेगी वरन् उनके वजन, गुण्क्ता एवं उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी की जा सकेगी। विंस्कासिन यूनिवर्सिटी में संगीत-शक्ति पर अनुसंधानरत सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्थरलॉकर का तो यहाँ तक कहना है कि इसकी प्रभाव क्षमता से पौधों को ही नहीं मानव को भी रोगाणुओं से बचाया जा सकता है।

भारत सहित अनेक देशों में अब ध्वनि तरंगों द्वारा व्याधि-निवारण के चिकित्सकीय कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं। चिकित्सा विज्ञानी अब इस दिशा में प्रयासरत हैं कि किसी भी प्रकार के आपरेशन कार्य सम्पन्न करने के लिए औजारों की आवश्यकता ही न रहे। ध्वनि तरंगों से ही यह सब सम्पन्न होने लगे। फिलीपीन्स में से प्रयोग चल भी रहे हैं। अपने देश के दिल्ली सहित कितने ही अस्पतालों एवं क्लीनिकों में अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शरीर की अंदरूनी विकृतियों का पता कैटस्कैनर की भाँति लगाया जाता है। नेत्र रोग, उदर रोग, हृदय रोग, अंतःस्रावी ग्रन्थियों से सम्बन्धित रोगों एवं प्रसूति चिकित्सा में रोग निदान तथा उसके उपचार में इसका उपयोग हानिरहित चिकित्सा के रूप में लाभकारी सिद्ध हुआ है।

गत वर्ष चीन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी म्यूजिक मशीन का विकास किया है जिसका मधुर स्वर लहरियों से पाचन संस्थान, हृदय और स्नायुतंत्र की बीमारियों का उपचार किया जाता है। यह श्रव्य ध्वनियों के चमत्कारिक परिणाम हैं जो मनःसंस्थान के भावना क्षेत्र को प्रभावित करके अपना परिणाम प्रस्तुत करती हैं। किन्तु एक से पाँच मेगाहट्ज आवृत्ति की श्रवणातीत अश्रव्य ध्वनियों को अनुसंधान कर्ताओं ने काय चिकित्सा के लिए अधिक उपयुक्त पाया है। इन सूक्ष्म तरंगों के आघात से शरीर के अन्दर गुर्दे या पित्ताशय की पथरी को बारीक कणों में बदल देने में उनने सफलता प्राप्त कर ली है। पश्चिम जर्मनी के म्यूनिख स्थिति डोर्नियर मेडिकल टेक्नोलॉजी के विज्ञानियों ने “लिथोट्रिप्टर” नाम एक यंत्र विकसित किया है जिससे निकलने वाले ध्वनि प्रकंपन 30-40 मिनट के अन्दर पित्ताशय एवं दुर्गे की पथरी को चूर्ण रूप में बदल देती है, जो बाद में शरीर से बाहर निकल जाता है। यह उपकरण भारत में अब उपलब्ध है।

इसी प्रकार आँखों के मोतियाबिंद का आपरेशन परा श्रव्य ध्वनियों से सरलतापूर्वक बिना किसी रुधिर स्राव के किया जाने लगा है। यह ध्वनि तरंगें न केवल आँख के लेन्स के अपारदर्शी भाग को सूक्ष्म कणों में परिवर्तित कर निकाल बाहर करती हैं, वरन आँख की अन्यान्य बीमारियों की भी जानकारी दे देती हैं। अब इन्हीं ध्वनि तरंगों का उपयोग करके अंधों को राह दिखाने वाले उपकरण विकसित किये गये हैं।

समुद्रों में छिपी पनडुब्बियों का पता एक विशेष प्रकार के “सोनार तंत्र” द्वारा लगाया जाता है। इनमें पराध्वनि का ही प्रयोग होता है। इसी तरह वायुयानों की जानकारी ‘रैडार’ द्वारा प्राप्त की जाती है। अब अमेरिकी वैज्ञानिक इन ध्वनि तरंगों को शक्तिशाली हथियार के रूप में प्रयुक्त करने में अनुसंधानरत हैं। वाशिंगटन के हेरीडायमण्ड प्रयोगशाला के अनुसंधान विभाग के निदेशक जान रुसडो का कहना है कि यह तरंगें इतनी शक्तिशाली होंगी कि शत्रु क्षेत्र में इनकी बौछार करने मात्र से उनके समस्त शस्त्रास्त्र नाकाम हो जायेंगे। इनसे विमानों और टैंकों तक को पंगु बनाया जा सकेगा। उनका मत है कि पराश्रव्य ध्वनियों की क्षमता 10 अरब वाट के बराबर होगी जो किसी भी सीमित क्षेत्र के जन जीवन को क्षत विक्षत कर सकती है।

ध्वनि सिर्फ मनुष्यों, जीवधारियों अथवा वनस्पतियों को प्रभावित करती हो, ऐसी बात नहीं। उसका प्रभाव जड़ पदार्थों पर भी पड़ता है। हीरे जैसी कठोर वस्तु को काटने में इसकी सूक्ष्म तरंगें प्रयुक्त होती हैं। ध्वनिकंपन से बड़े-बड़े पुल टूट जाते हैं। खिड़कियों के शीशे चटक कर बिखर जाते हैं। वियना के ‘मारसिल्स’ इंस्टीट्यूट के विज्ञानक्ता प्रो. गावराँड ने इस संबंध में गहन खोजें की है। उनने स्वनिर्मित पराध्वनि उत्पादक यंत्र से कुछ प्रयोग किये और पाया कि उससे निस्सृत तरंगें आधे मील की परिधि तक में खिड़कियों के काँच तोड़ देती हैं। बाइबिल में उल्लेख है कि जेरिकों की तुरहियों की ध्वनि से एक समूचा नगर नष्ट हो गया था। ज्यूरिच के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. हैन्स जेनी ने अपनी पुस्तक “सिमेटिक्स” में इस तथ्य की पुष्टि की है और कहा है कि ध्वनि में निर्माणकारी तथा ध्वंस करने वाली दोनों ही क्षमताएँ विद्यमान है। यह पदार्थ का रूपांतरण करने में भी सक्षम है।

शारीरिक मानसिक विकारों के उपचार में मधुर स्वर लहरियाँ अपनी कारगर भूमिका तो निभाती ही हैं, परिष्कार-सुधार का भी कार्य सम्पन्न करती हैं। आवश्यकता उसके सृजनात्मक पक्ष को विकसित करने और उस शक्ति से लाभान्वित होने की है। मानव स्वभाव को नियंत्रित करने एवं अन्तराल में सन्निहित शक्तियों को उभारने का संगीत सर्वोत्तम माध्यम है। जो गहन अनुसंधान की अपेक्षा रखता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118