नियमितता का शिक्षण प्रकृति की पाठशाला में!

August 1989

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मानव जीवन एक बहुमूल्य निधि है। इसमें निहित प्रत्येक पल इतना कीमती है, जिसकी तुलना संसार की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु से भी नहीं की जा सकती। इनका यदि सही ढंग से सुनियोजन किया जा सके, जो उन्नति, प्रगति व सफलता का उत्कर्ष सहज ही उपलब्ध किया जा सकता है। प्रगति की लालसा किसे नहीं है? जब यह इतनी सहज है, जो सभी क्यों नहीं प्राप्त कर लेते है? दैनिक जीवन में उँगलियों में गिनने जितने लोग ही इस दिशा में सफल होते क्यों देखे सुने जाते है? इन प्रश्नों पर विचार करने तथा लोगों के जीवनक्रम को देखने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि अस्तव्यस्त जीवन प्रणाली व नियमितता का अभाव ही सफलता का अवरोधक है।

किसी भी कार्य की सफलता मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति ने उसमें नियमितता का पालन किया या नहीं। कई बार मनोयोगपूर्वक कार्य करने के बावजूद भी व्यक्ति अपने कार्य में अनियमित था। जब मन आया, जैसा चाहा वैसा कर लिया, आज किया, कल नहीं। अभी क्या जल्दी पड़ी है-ऐसे विचारों से युक्त मनःस्थिति के लोग सफलता के नाम पर खाली हाथ रहते तथा हताश होते देखे जाते है।

नियमितता के इस असाधारण महत्व के कारण ही प्रकृति अपने विभिन्न घटकों द्वारा मनुष्य को अपनी मूक वाणी में इसकी सतत प्रेरणा देती रहती है। मनीषियों का कथन भी है कि सच्चा उपदेश वाणी से नहीं आचरण से दिया जाना चाहिए। प्रकृति द्वारा इस दिशा में दिया जाने वाला उपदेश भी कुछ इसी प्रकार का है। वह अपने सारे क्रिया-कलाप में नियमितता का निष्ठापूर्वक पालन करती है चाहे वह जड़ समझा जाने वाला खगोल जगत हो अथवा वनस्पति जगत। इनकी गतिविधियों में समय संबंधी तनिक भी व्यक्तिक्रम नहीं दिखाई पड़ता। समस्त ग्रह-नक्षत्र अपनी नियत निर्धारित कक्षा में सदा धावमान रहते हैं। इनकी गति संबंधी नियमितता में यत्किंचित भी अनियमितता नहीं दिखाई पड़ती। सूर्यदेव नित्य प्रति समय से ही उदयाचल से निकलते और अस्ताचल में डूबते हैं। चन्द्रमा सहित अन्य ग्रहों के साथ भी यही बात देखी जाती है। वृक्ष-वनस्पति समय पर फूलते फलते देखे जाते है। जीव-जन्तु भी अपने प्रत्येक कार्य में समय संबंधी नियमितता का सदा ध्यान रखते हैं। प्रत्येक नियत कार्य समय पर करने के लिए प्रकृति ने नासमझ करहे जाने वाले इन वृक्ष-वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं को न जाने कौन सी घड़ी द रखी है, कि वे अपना प्रत्येक कार्य नियत निर्धारित समय पर ही करते हैं। अपने चारों ओर जिधर भी दृष्टि पसार कर देखा जाय, उधर ही समय संबंधी नियमितता दृष्टिगोचर होती है।

मधुमक्खी, तिलचट्टे चींटी, चूहे, केकड़े आदि की दिनचर्या उनके निर्धारित क्रम से ही आरंभ होती है। उनके क्रियाकलापों में व्यवधान उत्पन्न करने के लिए चाहे जितने प्रयास किए जायँ वे इस भूल-भूलैया में नहीं फँसते। कृत्रिम प्रकाश या कृत्रिम अंधकार उत्पन्न करके उनकी अन्तःचेतना को भुलावे में डालने के लिए वैज्ञानिकों ने कितने ही प्रयोग किये, पर उनमें से एक भी सफल नहीं हुआ। इन कीड़ों ने हर बार अपना कार्यक्रम अपनी अभ्यस्त चेतना के आधार पर ही आरंभ किया और चतुरता के साथ रचे गये उस श्रम जंजाल में उलझने से स्वयं को मुक्त बनाये रखा।

फाँस के वैज्ञानिकों ने इस संदर्भ में एक प्रयोग किया। कुछ मधुमक्खियों को सवा आठ बजे सुबह शरबत घोल चाटने के लिए दिया जाने लगा। कुछ दिनों तक यह क्रम चलने से मधुमक्खियां इसकी अभ्यस्त हो गई। अब उस छत्ते को, जिसमें मधुमक्खियों को सवा आठ बजे घोल दिया जाता था हवाई जहाज से अमेरिका भेज दिया गया। पेरिस में जब सवा आठ बजते हैं, तो अमेरिका में रात के सवा तीन बजते हैं साधारणतया मक्खियाँ उस समय विश्राम किया करती हैं, पर देखा गया कि रात के सवा तीन बजे उन मक्खियों के छत्तों में भिनभिनाहट शुरू हुई और वे पास में रखे शरबत के घोल पर टूट पड़ी। तीन हजार मील की दूरी मक्खियों के समय ज्ञान संबंधी चेतना को भुलावे में न डाल सकी।

समुद्र तट पर पाया जाने वाला विशेष प्रकार का केकड़ा दिन के उतार चढ़ाव के साथ अपने रंग बदलता है। इन्हें पकड़ कर घोर अँधेरे में रखा गया, ताकि उन पर सूर्य का प्रभाव न पड़े, तो भी उनका रंग समय के हिसाब से बदलने का क्रम जारी रहा। इसके साथ-साथ उस केकड़े का रंग गहरा होने में कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष के हिसाब से 40 मिनट का अन्तर आता रहता हैं उस केकड़े को समुद्र से एक हजार मील दूर पहुँचाया गया और वायुयानों में अधिक ऊँचाई पर रखा गया, ताकि समुद्री ज्वार भाटे का उस पर असर न पड़े। तब भी उसकी प्रकृति नहीं बदली और अँधेरी रातों में 40 मिनट के अन्तर में जो रंग में गहरा हलकापन आया करता था, वह यथावत् जारी रहा। इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे केकड़े के भीतर कोई घड़ी लगी हो, जो बाहरी परिवर्तन के बावजूद अपने ढंग और क्रम से चलती ही रही।

प्रसिद्ध अमेरिकी प्राणी शास्त्री डा.केनाफिम्न ने पक्षियों और छोटे जीव-जन्तुओं के क्रिया-कलापों का लम्बे समय तक अध्ययन करने के बाद जो विवरण प्रस्तुत किया है वह निश्चय ही आश्चर्यजनक है। उनका कहना हैं कि मनुष्य घड़ी के सहारे समय का ओर कंपास के सहारे दिशा का ज्ञान प्राप्त करता है। आकाश के सूर्य, चन्द्र तारे आदि भी दिशा का ज्ञान प्राप्त कराने में सहायक सिद्ध होते हैं, परन्तु छोटे जीव-जन्तुओं के पास इस प्रकार के कोई उपकरण नहीं होते, फिर भी वे अपनी आवश्यकतानुरूप दिशा और समय संबंधी ज्ञान अपने अन्तराल की प्रकृति प्रदत्त प्रेरणा को स्वीकारने तथा उसके अनुसार जीवनक्रम को चलाने में तनिक भी अन्तर कनिष्ठ माने जाने वाले इन प्राणियों में नहीं दिखाई पड़ता हे। कैलीफोर्निया और औरेगान के निकट समुद्रतट पर पाई जाने वाली मछली वसन्त ऋतु के शुक्लपक्ष में ही अण्डे देती है। सामौन द्वीप में ‘पलाले’ नाम का कीड़ा अक्टूबर-नवम्बर की खास तारीखों में ही अण्डे देता है। किसान खेती संबन्धी सब कार्या को छोड़कर उन अण्डों को साफ करने में लग जाते हैं और खेती की रक्षा करते हैं।

इसी तरह पक्षियों का सांय होते ही घोंसले में लौटना और प्रभात होते ही उड़ जाना प्रातः सांय का चहचहाना बताता है कि मानों उन्होंने घड़ी बाँध रखी हो। उड़ते हुए विभिन्न दिशाओं में जाना और लम्बी उड़ान के बाद बिना भटके अपने आशियाने पर आ जाना, इस बात का प्रमाण है कि उनका समय और दिशा ज्ञान असंदिग्ध होता है, जिसके आधार पर वे अपना मार्ग निर्धारित करते और अनुकूल समय आने पर फिर वापस लौट आते हैं।

इस संदर्भ में “पक्षीतीर्थ” का उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा। महाबलिपुरम से मद्रास की ओर सात मील दूर एक छोटा सा नगर है “पक्षी तीर्थम।” वहाँ पहाड़ी पर एक मन्दिर है। इसके पीछे 10 फुट लम्बी 15 फट चौड़ी एक ढलवाँ चट्टान है। इस पर दिन में 11-12 बजे के मध्य एक श्वेत गिद्ध का जोड़ा मन्दिर का प्रसाद ग्रहण करने नित्य आता है। प्रतिमा-दर्शन से अधिक लोग इनके दर्शन करते हैं। दर्शकों की भारी भीड़ के बीच मंदिर का पुजारी दोनों हाथों में प्रसाद की दो कटोरियां लेकर खड़ा हो जाता है। गिद्ध नियत समय पर आते और चोंचों में प्रसाद भरकर पुनः आकाश में उड़ जाते हैं।

क्षुद्र समझे जाने वाले इन प्राणियों का जीवन नियमितता और नियमबद्धता के कारण ही टिका रह पाता है। जिस दिन ये प्रकृति प्रेरणा की उपेक्षा कर अनियमित बन जायेंगे उसी दिन से इनका जीवन का विनाश सुनिश्चित हो जायेगा। आश्चर्य तो इस बात का होता है कि नियम पालन संबंधी इस अनुशासन में चेतन प्राणी ही नहीं, जड़ समझे जाने वाले पदार्थ भी पीछे नहीं रहते। समुद्र में नियत समय पर ही ज्वार भाटे आते हैं। हे समुद्र को भी घड़ी घण्टों व तिथियों की जानकारी किसी ने दे दी है। कलियों और पुष्पों का रात में सिकुड़ना और दिन में खिलना रात में कम, दिन में अधिक बढ़ना-इस बात का प्रतीक है कि उन्हें समय का ज्ञान रहता है।


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