एक तपस्वी की उग्र तपस्या चल रही थी। इन्द्र को भय हुआ कि कही उसका इंद्रासन न हिल जाये। तप भंग करने के लिए उसने डरावने दैत्य और लुभाने वाली अप्सराएं भेजीं। पर तपस्वी अपने मार्ग से डिगा नहीं।
एक स्वर्ग प्रहरी ने कहा मैं उसकी तपस्या डिगा सकता हूँ। उसे प्रोत्साहन मिला। प्रहरी ने स्वाद रूप धरा और इन्द्रियों के मुख पर जा बैठा। सभी इन्द्रियाँ उत्तेजित होने लगीं, उसे स्वाद का चस्का लगा। जीभ तरह-तरह के व्यंजनों के लिए ललचाने लगी तो उसका साथ दूसरी इंद्रियां भी देने लगी। तपस्वी चटोरा बन गया। स्वाद ने उसके संचित तप को समाप्त कर दिया। इन्द्र की इच्छा पूरी हो गई।