क्या मनुष्य क्रमशः घटता ही चला जायगा

May 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

देखा जाता है कि जानवरों की नस्लें जैसे भी हैं, खुराक या सुविधा के कारण मोटे तो हो जाते हैं, पर ऐसा कदाचित् ही किसी जीवधारी में होता है कि अपनी नस्ल की दृष्टि गिर रहा हो।

यह आश्चर्य मनुष्यों में ही देखने को मिलता है कि उनकी नस्ल क्रमशः छोटी होती जा रही है। कद वजन की दृष्टि से वह निरन्तर घटता जा रहा है, फलतः उसकी प्रतिभा और क्षमता भी न्यून होती जा रही है। कुछ शताब्दी पूर्व के लोगों पर दृष्टिपात करें, ज्ञात होगा कि कद, ऊंचाई, वजन, क्षमता, परा और पुरुषार्थ की दृष्टि से वे अब के लोगों की कहीं अधिक समर्थ और बलिष्ठ होते थे, पर स्थिति विपरीत नजर आ रही है, क्रम उल्टा हो चला है। लोग हर दृष्टि से कमजोर होते जा रहे है। शारीरिक बल तो गंवाया ही अपनी स्वाभाविक लम्बाई भी खोते चले जा रहें है। यदि यह क्रम विराम चलने लगा तो इसे चिन्ता की बात समझनी चाहिए।

ऐसे अपवादों में कुछ समय पहले लाख के पीछे के बौना दृष्टिगोचर होता था। अब वह संख्या बढ़ी है। अब दस हजार के पीछे एक बौना होने लगा है।

बौनों में आमतौर से तीन फुट के बोने पहले देखने आते थे, पर अब कुछ उदाहरण ऐसे भी सामने आये है। जिसमें वे दो फुट से भी कम रह गये है। अनुमान लगाया जा सकता हैं कि उनका पराक्रम कितना कम रह जायेगा और उनका जीवनकाल भी कितना स्वल्प होगा। विश्व में ऐसी घटनाएं अब बढ़ती जा रहीं है।

मवूत्ती (अफ्रीकी) आदिम जाति के लोग मान्य ऊंचाई से अब काफी कम के रह गये है।

अफ्रीका का काँगो प्रदेश तो पूर्ण रूप से बौनों का हो चला है। वहाँ अब तीन फुट से अधिक कोई बिरला ही दीखता हैं अब से सौ वर्ष पूर्व वे तीर-कमान के सहारे शिकार मार लेते थे। बि वे गुलेल के सहारे पक्षियों पर निर्भर रह गये हैं। लक्षणों को देखने से संभावना और भी अधिक घटने की है।

इसके अतिरिक्त जहाँ तहाँ जो बौने पाये जाते हैं, उनका कद ओर भी घटा हुआ है। ऐसे लोगों को लोग मनुष्य में न मानकर खिलौना समझते है ओर उन्हें उसी दृष्टि से पालते है। संसार के कुछ प्रसिद्ध बौनों ने तो घटते-घटते अपनी स्थिति आश्चर्यजनक स्तर तक पहुंचा दी है।

रियलिंग ब्रदर्स के सकर्स में काम करने वाली एक बौनी का कद मात्र 21 इंच था। नाम था लिया ग्राफ। इसकी सर्वत्र बड़ी धूम थी। हिटलर ने उसे जासूसी के अपराध में गिरफ्तार कर लिया था। किंतु मृत्युदण्ड से वह बच गयी।

कोनी आइलैण्ड में लिलीपुट के नाम की कई बस्ती भी ऐसी ही बनी थीं। जो पीछे आग में जलकर नष्ट हो गई। संभवतः गुलीवर की कहानी की कल्पना का आधार लेखक ने इसे ही बनाया हो। रूस के बादशाह जार ने एक बौने जोड़े की शादी में खुद बहुत दिलचस्पी ली। राजकुमारी की एक बौनी सेविका के लिए उसने खुद वैसा वर ढूंढ़ा ओर शादी सजधज के साथ की। उनकी औसत ऊंचाई दो फुट तीन इंच थी।

अमरीकी फिल्मी कम्पनियों में काम करने वाले हेरी, टिनी, ग्रेस और डेजी नामक बौने बहुत ख्याति अर्जित कर चुके है। साढ़े बत्तीस इंच के मंचू ने भी सर्कस के नाम कमाया था दो फूट एक इंच के थम्ब और टाम अमेरिका भर का मनोरंजन करते रहे। टामथम्ब का बाद में वैसी ही लड़कियों से विवाह भी हो गया था।

हालैण्ड की पार्लिन नामक लड़की जब जन्मी तब बीस से0मी0 थी। सोलह वर्ष की होकर मरी तब तक उसकी लम्बाई तीस से0मी0 हो पायी थी तथा वजन डेढ़ कि0ग्रा0 था। “लाइफ” पत्रिका के अनुसार स्पेन के एक बौने की लम्बाई चालीस से0मी0 थी तथा वजन दो कि0ग्रा0। फ्राँस की एक सर्कस कम्पनी ‘लि फोक्स’ के सभी कलाकार बोने थे। कम्पनी ने बड़े प्रयत्न पूर्वक करीब-करीब समान ऊंचाई चौंतीस बोने इकट्ठे किये थे। वे अपने आश्चर्यजनक करतबों से दर्शकों का मन मोह लेते थे। वे अपने आश्चर्यजनक करतबों से दर्शकों का मन मोह लेते थे। एकबार यह प्रदर्शन फ्राँस के तत्कालीन शासक लुई चौदहवें के समक्ष किया गया। राजा उनके कारनामों से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने बौनों को भरपूर उपहार दिया।

इसी प्रकार रूस की एक सर्कस कम्पनी “कास्त्रोव” में एक ढाई फुट का बौना था। वह तरह तरह से लोगों का मनोरंजन करता था। कम्पनी वालों ने उसकी शादी एक बौनी लड़की से यह सोचकर कर दी इसके जो बच्चे होंगे उससे कम्पनी में बौनों की संख्या बढ़ेगी, जिससे करतबों का देखने के लिए लोगों आकर्षण भी बढ़ेगा, फलतः कम्पनी की आय बढ़ेगी। दुर्भाग्यवश उनके दो बच्चे हुए भी, पर कोई भी लम्बे समय तक ठहर न सके। वे एक-एक दि नहीं जी सके।

पहले के योरोपीय राजाओं को भी बौने पालने का शौक था। वे दूर-दूर से उन्हें एकत्रित कर अपने राजदरबार में रखते थे। रोम सम्राट आगस्टस का एक योद्धा मात्र दो फुट ऊंचा था। सम्राट डोमेसियन को भी यह शौक जीवन भर लगा ही रहा। वह उनसे मनोरंजन का काम लेते थे। लीबिया के बादशाह में भी यह प्रवृत्ति थी। सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में बौने संग्रह करने का शौक बहुत बढ़ गया था और वे ऊंची कीमत पर बिकने भी लगे थे।

यह सब आंकड़े निश्चय ही चिन्ताजनक हैं यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आदमी खरगोशों की समता करने लगेगा और प्रकृति का एक खिलौना मात्र रह जायेगा। आदमी घटेगा-गिरेगा तो आखिर उस का यही हश्र होना है। पौराणिक मिथक बताते है। कि द्वापर व त्रेता युग में मनुष्यों की अच्छी खासी ऊंचाई होती थीं। किन्तु अब बौनों की बढ़ती संख्या संरचना व क्षमता की दृष्टि से अब से छोटा ही होता जाएगा। अक्ल की दृष्टि से भले ही उसने प्रगति करली हो, कम्प्यूटर, माइक्रोचिप्स व सुपरकण्डर्क्टस की शोधों द्वारा न्यूनतम आकार में बड़े बड़े यंत्रों की कार्य पद्धति को समाहित कर दिया हो, एक भय मन में उठता है कि कहीं वही “माइक्रो” वाला छूत का रोग मनुष्य को तो नहीं लग गया जिस कारण वह छोटा और छोटा होता चला जा रहा है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118