हर वर्ष अपना विवाहोत्सव (Kahani)

May 1988

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वे दोनों हर वर्ष अपना विवाहोत्सव मनाया करते थे। यथाशक्ति एक दूसरे को इस उपलक्ष में उपहार भी दिया करते थे।

उस वर्ष पैसे की तंगी थी फिर भी एक दूसरे को कुछ बढ़िया और कारगर उपहार देना चाहते थे। अभाव के बीच भी उनने रास्ता खोज निकाला।

वधू अपने पति के लिए घड़ी की चेन देना चाहती थी। उसने अपने सुनहरी बाल किसी सज्जा संस्थान को बेच दिये ओर उसके बदले में घड़ी की सुन्दर चेन खरीद ली।

उधर पति भी कुछ ताना-बाना बुन रहा था। उसने अपने घड़ी बेच दी ओर बदलें में बालों में लगाने के लिए एक सुनहरी क्लिप खरीद ली। दोनों अपने-अपने निर्णय को छिपाये रहें।

विवाह दिन आया तो पत्नी ने पति की कलाई में घड़ी बाँधनी चाही पर देखा कि घड़ी तो पहले ही बिक चूंकि थी।

पति ने पत्नि के बालों में क्लिप लगाने चाही पर बाल तो पहले ही किसी सज्जा संस्थान में बिक चुके थे।

दोनों प्रत्यक्षतः निराश रहें। पर दोनों को परस्पर प्रेम की गहराई की उस क्रियाकलाप ने उजागर कर दिया।


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