॥ पानीयं प्राणिनाँ प्राणाः॥

May 1988

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जल को अमृत कहा गया है। जीवन रक्षक तत्वों में वायु के बाद जल के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। भोजन के बिना मनुष्य कई दिनों तक जीवित रह सकता है परन्तु इस जीवन दाता के अभाव में 60 से 70 वह घण्टे के मध्य में ही दम तोड़ने लग जाता है। इसीलिए जल के संबंध में शास्त्रकार ने कहा है- “पानीयं प्राणिनाँ प्राणाः विश्वमेव च तन्मयम्। न हि तोयाद्विना वृत्तिः, स्वस्थस्य व्याधितस्य का।” अर्थात् जल जीव-सृष्टि का प्राण है। विश्व ही जलमय है। क्या स्वस्थ, क्या रोगी किसी का भी जीवन जल के बिना संभव नहीं है।

जीवित रहने और कोशिकाओं की वृद्धि के लिए शारीरिक संरचना में जल से अधिक महत्वपूर्ण कोई यौगिक नहीं है। शारीरिक वजन का लगभग तीन-चौथाई भाग पानी होता है जो कोशिकाओं के अन्दर रहता है। मनुष्य शरीर के रक्त में 90 प्रतिशत जल की मात्रा होती है। मस्तिष्क में जल की उपस्थिति 74 प्रतिशत कार्टिलेज में 69 प्रतिशत हड्डी में 40 प्रतिशत और वसा में 15 प्रतिशत जल होता हैं इसके अतिरिक्त लार ग्रन्थियों से स्रवित रस में 99.6 प्रतिशत पानी होता है। पाचन संस्थान के पाचक अम्ल रस में 99.5 प्रतिशत मूल में 99.3 प्रतिशत पित्त में 77 प्रतिशत और पसीने में 46.7 प्रतिशत जल होता है।

शरीर का प्रत्येक क्षुद्रतम कोश पानी से सदैव तर रहता है और पानी से धुलते रहने के कारण ही शरीर को स्वस्थ रखता है। शारीरिक द्रव में से कुछ की संरचना में स्थायित्व होता है, जैसे रक्तप्लाज्मा, लिम्फ सेरिब्रोस्पाइनल फलूड। परन्तु स्वेद, लार पाचक रस और मूत्र जैसी द्रवीय यौगिकों की संरचना बदलती रहती है। इस परिवर्तन में जल की कमी का प्रमुख योगदान होता है। हमारे शरीर का जलीय अंश मल-मूत्र पसीना और निःश्वास वायु साथ बाहर निकलता रहता हैं पसीना के रूप में रोम कूपों के माध्यम से 500 सी.सी, मूत्राशय 2500 सी.सी, और निःश्वास मार्ग से 350 सी.सी पानी प्रतिदिन शरीर से बाहर निकलता है। परिश्रम करने वालों के शरीर में 10 पाइंट तक पानी पसीने के रूप में निकल जाता है। इस प्रकार शरीर संचित विजातीय तत्व जल के साथ बाहर निकल जाते हैं। हर समय शरीर में अनेकों कोशिकाएं होती रहती हैं जो रक्त के धकेल दी जाती है, जहाँ उन्हें शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। पेशाब चार प्रतिशत यूरिया और यूरिक एसिड होते हैं। यदि यूरेनिया नाम बीमारी हो जाती है। पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से ही विषाक्त द्रव शरीर से बाहर निकल पाता हैं अन्यथा शारीरिक क्षमता घटने लगती है अंत अनेक बीमारियों धर दबोचती हैं पानी पीने से स्रावी ग्रंथियों का स्राव भी पर्याप्त मात्रा में होता रहता है, जो शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पानी की कमी से शरीर में अम्ल और क्षार का अनुपात गड़बड़ा जाता है। जली माध्यम होने के कारण शरीर के अंदर अंतः वातावरण की समरूपता स्थिर रह पाती है। शरीर का होमियोस्टैसिस-तापमान, नमकसान्द्रण्य भोज्य पदार्थों और ऑक्सीजन का स्थायित्व आदि जलीय अंश की उपस्थिति में ही स्थिर रह सकता है।

आयुर्वेद में जल को एक विश्वसनीय औषधि कहा गया है। जल रोग नाशक हैं, विश्व भैषज है और जल जीवन को बनाये रखने के लिए आवश्यक तत्व है। इसकी महत्ता को समझा जाना।


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