सन्त एकनाथ ने एक दिन अपने पितरों का श्राद्ध किया। पडोस के निर्धन बालक उन मिष्ठानों की गन्ध पाकर ललचाई दृष्टि से उस घर के आसपास चक्कर लगाने लगे।
सन्त ने उनकी भावना समझी ओर सब को बिठाकर भर पेट भोजन करा दिया। यह समाचार जब ब्राह्मणों को मिला जो कि उनने बना हुआ खाने से इन्कार कर दिया।
सन्त एकनाथ ने बिना जाति पाँति का भेद किये नगर के सभी बालकों को बुला कर भोजन करा दिया। सन्त को अनुभूति हुई जैसे उनके पितर ही आकर बालकों के रूप में भोजन कर रहे हैं।