अचेतन का अनावरण सम्मोहन द्वारा सम्भव

May 1988

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पूर्वार्त्त मानसशास्त्र में सम्मोहन का वर्णन सारणी, वशीकरण, आकर्षण आदि छः प्रमुख अंगों के साथ मोहन के रूप में प्रमुखता से किया गया है। यही वह सम्मोहन विद्या है जिस ग्रीक भाषा में हिप्नोज और अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म के नाम से जाना जाता हैं पिछले दिनों इसका प्रमुख उद्देश्य निद्राकर्षण करने के पश्चात् कौतुम कौतूहल दिखाने भर का रहा है। प्रयोक्ता इसका दुरुपयोग भी करते रहे है। उन्नीसवीं सदी के अंत तक लोग इसे काला जादू कबाला आदि कह कर पुकारते और कपोल कल्पनाओं की विडम्बना भर समझकर संदेहास्पद दृष्टि से देखते रहे, किन्तु अब इसे चिकित्सा उपचार से संबंध करके वैज्ञानिकों ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नये अध्याय की शुरुआत की है। इण्टरनेशनल कांग्रेस ऑफ हिप्नोटिज्म के वैज्ञानिकों ने इस विद्या की चिकित्सा संबंधी उपयोगिता पर प्रकाश डाला और उसके सत्परिणामों में समूची मानव जाति को अवगत कराया है।

प्रख्यात चिकित्सा शास्त्री डा. विलियम ब्राउन के अनुसार साइको-पैथोलाजिकल डिसआर्डर्स जैसे मनोविकारों के उपचार में सम्मोहन विद्या अपनी अहम् भूमिका निभा सकती है। उन्होंने इसका प्रयोग करके हजारों सैनिकों एवं अन्यान्य लोगों को स्वस्थ किया ओर उन्हें आनंदमय जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। प्रथम विश्व युद्ध के समय सैनिकों में पनपी मनोविकृति और स्नायु रोगों को दूर करने के लिए उन्हें हिप्नोसिस का ही आश्रय लेना पड़ा था। उस समय न्यूरोसिस का एक मा.त्र उपचार ही था हिप्नोसिस। तब से इसका प्रयोग रोगोपचार में तीव्रता के साथ चल पड़ा।

सम्मोहन चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत व्यक्ति के शरीर को स्पर्श किये बिना ही उसे कृत्रिम निद्रा का आभास कराया जाता है। मनुष्य को मोह निद्रा में निमब्न करने का यह एक श्रेष्ठ तरीका चिकित्सा विज्ञानियों ने खोज निकाला है। सम्मोहन कर्त्ता रोगी की मनः स्थिति को निरख–परख कर ही अपनी इच्छा शक्ति के माध्यम से संकेत सूचनाओं की संप्रेषण प्रक्रिया को पूरा करते हैं। पाश्चात्य देशों के चिकित्सा क्षेत्र में अब इसका प्रयोग द्रुतगति के साथ बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के एडगर केसी के बारे में यही कहा जाता है। अमेरिका के एडगर केसी के बारे में यही कहा जाता है। कि इक्कीस वर्ष की आयु तक वह लैरिजाइटिस नामक बीमारी के कारण कुछ भी बोलने में असमर्थ था।किन्तु सम्मोहन चिकित्सा से वह न केवल पूर्णतः स्वस्थ बना, वरन् अपनी अतीन्द्रिय क्षमताओं को भी इतना विकसित कर दिखाया कि लोग उसे आज भी स्लीपिंग डाक्टर के प्रख्यात नाम से अपनी स्मृतियों में बिठाये हुए है। सम्मोहन के द्वारा उसने अपने जीवनकाल में तीस हजार से अधिक रोगियों को जीवन प्रदान किया हैं फ्राँस के सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानी एवं तंत्रिका विशेषज्ञ रिचेट को सम्मोहन विद्या का निष्णात तथा मूर्धन्य चिकित्सक समझा जाता है। पेरिस में उनने एक चिकित्सालय बनाया हैं जिसमें रोगियों का उपचार सम्मोहन प्रक्रिया को उनने साइकिक एक्सकर्सन नाम दिया है।

वाशिंगटन के वाल्टरी रीड आर्मी मेडिकल सेन्टर चिकित्सक डा. हेरॉल्ड वेन के अनुसार सम्मोहन विधि का रोगियों पर सफलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है। इससे रोगी पर किसी प्रकार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। लाल एंजिल्स स्थिति कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के मूर्धन्य चिकित्सा विशेषज्ञ जोजेफ बारबर का कहना है कि यह प्रक्रिया दर्द नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेषकर जले हुए व्यक्तियों एवं फैन्टम लिम्ब पेन से ग्रस्त व्यक्तियों को इस विधि द्वारा प्रभावित करके पीड़ा को कम किया जा सकता हैं सम्मोहित अवस्था में कष्टों का भान नहीं रहता। फैन्टम लिम्ब पेन में इतनी असह्य पीड़ा होती है जिससे छुटकारा पाने के लिए कई बार लोग आत्म-हत्या तक कर बैठते हैं सम्मोहन प्रक्रिया इनके लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुई है। दंत चिकित्सकों ने भी जबड़ों के दर्द निवारण में इस विधि द्वारा सफलता पाई है। वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध चिकित्सक के0 थाम्पसन ने इस विधि द्वारा सामूहिक रूप से दन्त रोगियों पर प्रयोग किया और आशातीत सफलता पाई है। मूर्धन्य चिकित्सा शास्त्री हेनरी बेनैटी भी रक्ताल्पता वाले रोगियों को सम्मोहन प्रक्रिया द्वारा स्वास्थ्य प्रदान करने में सफल हुए है। खिलाड़ियों की एकाग्रता में इस विधि से अभिवृद्धि होती देखी गई है।

बाल रोग विशेषज्ञ डा. जोस्फीन तथा सैमुअल लावेरन ने कैंसर ग्रस्त बालकों की पीड़ा निवारण के लिए सम्मोहन चिकित्सा को अति महत्वपूर्ण बताया है। इससे न केवल उनकी श्वसन प्रक्रिया सामान्य हो जाती है, वरन् वे दर्द में आश्चर्यजनक कमी का भी अनुभव करते है। कैंसर का उपचार तो नहीं किंतु उसके लक्षणों में कमी इससे आ जाती है। वमन और मितली में इसका दीर्घकालिक उपयोग रोग को निर्मूल कर देता है। अस्थमा, ब्रौंकाइटिस, एलर्जी, चर्मरोग आदि में भी इसके अच्छे प्रभाव देखे गये है। मानसिक तनाव दूर करने एवं उच्च रक्तचाप के नियंत्रण में सम्मोहन प्रक्रिया बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है।

सम्मोहन विद्या को चिकित्सा क्षेत्र में उपयोगी बनाने का श्रेय एफ0ए॰ मेस्मर को दिया जाता है। आस्ट्रिया के वियना शहर में निवास करने वाला यह व्यक्ति अपने समय का प्रख्यात चिकित्सा शास्त्री था। उसने मनुष्य की विलक्षण मानसिक क्षमता को विरलित द्रव-रेअरीफाइड फलूड अर्थात् चुम्बकीय तरल पदार्थ का स्वरूप प्रदान किया तथा अपने प्रतिपादन में कहा कि इस अलौकिक द्रव को सम्मोहन शक्ति से उत्पन्न करके रोगोपचार का उपक्रम बिठाया जा सकता है। इस तरह के उनने कई प्रयोग भी किए और सफल रहें। मेस्मर के अनुसार मानवी काया में एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय प्रवाह सतत् प्रवाहित होता रहता है जिसकी मात्रा अंगुलियों के अग्रभाग में ज्यादा होती रहता है। इससे रोगों को दूर करने में सहायता मिलती है। इस शक्ति प्रवाह को उन्होंने जैव-चुम्बक या चुम्बकीय तरल नाम दिया। कालान्तर में उपरोक्त सिद्धान्त को प्रतिपादन कर्त्ता के नाम पर मेस्मेरिज्म भी कहा जाने लगा। सम्मोहन वस्तुतः मानवी जैव चुम्बक की आकर्षण शक्ति का परिणाम है जो प्रभावित व्यक्ति के दिल दिमाग पर हावी हो जाती है। और उसे प्रयोक्ता सूचना निर्देशों का पालन-अनुसरण करने के लिए बाध्य करती है।

प्रख्यात मनोविज्ञानी अलेक्जेन्डर राल्फ ने अपनी कृति द पावर ऑफ माइण्ड में लिखा है कि मानव मन सम्मोहन प्रक्रिया द्वारा सजीव एवं निर्जीव दोनों पर अपने इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। इस शक्ति का उपयोग रोगोपचार में सरलता से किया जा सकता है। किसी समय यूनान में इस विद्या का बहुत प्रचलन था। वहाँ के विख्यात चिकित्सा विज्ञानी पेपिरस ने रोगों की उपचार प्रक्रिया में चिकित्सा द्वारा मरीज के सिर पर हाथ फिराकर अच्छा करने की विद्या को शास्त्रीय रूप दिया था। सम्राट पाइरस और वैसेपसीयन को ऐसे ही उपचार प्रक्रिया से कष्ट साध्य रोगों से मुक्ति मिली थी। फ्राँस के शासक फ्राँसिस प्रथम से लेकर चार्ल्स दशम तक की चिकित्सा में जैव चुम्बक का प्रयोग प्रतिभाशाली व्यक्तियों द्वारा होता रहा है। हाथ का स्पर्श और विशिष्ट दृष्टिपात इस प्रक्रिया में विशेष रूप से प्रयुक्त हुआ है। संभव संत महात्मा इसी प्रक्रिया द्वारा पीड़ितों की पीड़ा हरते रहे है। मार्किस डी0 पुसेगर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक मैग्नेटाइज्ड एनीमल में विभिन्न प्रमाण प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि ऐसे कई व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने अपनी अतीन्द्रिय दृष्टि के बल पर लोगों को सम्मोहित करके उन्हें स्वास्थ्य प्रदान करने में सफलता पाई। इस विधा में चिकित्सक एक्सटरनलाइजेशन ऑफ सेंसीबिलिटी के सिद्धान्त को अपनाते हैं मन में घुसे दुरावों ओर दुराग्रहों को निकाल बाहर फेंकते ओर उसमें नवीन विवेक संगत विचारणाएं भरते है।

मानवी मस्तिष्क की संरचना इतनी जटिल और विलक्षण है कि उसे कोई सूक्ष्मदर्शी ही समझ सकता है मानस शास्त्र के विशेषज्ञों का कथन है कि मनः संस्थान की गतिविधियों के संचालन में जाग्रति, स्मृति और धृति तीन प्रकार की अवस्थाएं दृष्टिगोचर होती है। जाग्रत अवस्था में मन ज्ञानेंद्रियां की अनुभूतियां उपलब्ध करता हैं जन्मों जन्मान्तरों के चिर संचित ज्ञान सम्पदा के भण्डार का बोध स्मृति के माध्यम से होता है। धृति मन की सूक्ष्मतर अवस्था है जिसमें विचार संप्रेषण की क्षमता होती है। उसका प्रयोग करके दूसरे व्यक्ति की मनः स्थितियों और परिस्थितियों से अवगत हुआ जा सकता है। सम्मोहन चिकित्सा में मनुष्य की विद्युतीय प्रतिरोधक क्षमता ( जी.एस.आर) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। सोते समय यह दस गुणी अधिक बढ़ जाती है, चिकित्सा विशेषज्ञों ने मस्तिष्कीय तरंगों को ई0ई0जी0 मशीनों पर रिकार्ड करके इस तरह के प्रमाण प्रस्तुत किये है। चिकित्सक इच्छा शक्ति में अभिवृद्धि करके सहानुभूतिपूर्ण भावनात्मक मुद्रा से अपने में इस चुम्बकीय द्रव को उत्पन्न करता है। रोगी की दृष्टि एक प्रकाश बिन्दु पर केन्द्रित करके घड़ी के पेंडुलम की तरह उसे लयबद्ध ओर ध्वनियां सुनाई जाती है। मैट्रोनोम-तालमापी उपकरण के द्वारा ध्वनि और प्रकाश का समन्वयात्मक स्वरूप रोगी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। दन्त चिकित्सा में तो सम्मोहन को अप्रत्याशित सफलता मिल चूंकि है। एनेस्थेसिया की बेहोश करने वाली दवाओं की खोज से पूर्व प्रायः सम्मोहन का ही आश्रम लिया जाता था।

मनःचिकित्सकों के अनुसार समस्त आधि−व्याधियों का एक मात्र कारण मानसिक विकृतियों को ही समझा जा सकता हैं सम्मोहन चिकित्सा में सर्वप्रथम रोगी को कृत्रिम ढंग से निद्रा का आभास कराया जाता है। तदुपरान्त उसके अंतर्मन में संकेत सूचनाएं पहुंचाई जाती है। निद्रावस्था में शरीर प्रायः निष्क्रिय पड़ जाता है। पर मनः संस्थान सक्रिय रहता है। मन को अन्यान्य साँसारिक विषयों से हटाकर विचार शून्य बनाया जाता है तब कहीं जाकर मस्तिष्क में सत्प्रवृत्तियों को समाविष्ट होने का सुअवसर मिलता है। रोगी में आत्म विश्वास जगाकर उसकी मानसिक दुर्बलताओं को हटाने मिटाने की यह सर्वोत्तम चिकित्सा समझी गई है। लेनिनग्राड यूनीवर्सिटी के मूर्धन्य शरीर विज्ञानी डा. लियोवि वैसिलेव ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में कहा है कि सम्मोहन कर्त्ता अपने मानसिक रेडियो तरंगों को रोगी के मन मस्तिष्क में संप्रेषित करके उसमें छिपी विकृतियों को ढूंढ़ निकालने एवं उन्हें उखाड़ फेंकने में सफल हो सकता है एक स्थान पर बैठकर भी किसी दूरवर्ती रोगी की इस विधि से चिकित्सा की जा सकती है।

मानसिक ग्रन्थियों का निराकरण मनोविश्लेषण द्वारा ही संभव है। कुछ ग्रंथियां इतनी जटिल ओर कठिन होती है। कि रोगी उन्हें जाग्रत अवस्था में नहीं बता सकता क्योंकि उसका चेतन मन इस प्रकार के अप्रिय प्रसंगों को स्मृति पटल में प्रवेश नहीं पाने देता है ऐसी स्थिति में सम्मोहन विधा ही उपयुक्त सिद्ध होती है। पुनर्जन्म के प्रसंगों को भी रोगी के सम्मुख प्रस्तुत करके रोगोपचार के सत्परिणाम सामने आये है।

सम्मोहन प्रक्रिया मात्र कौतुक वर्धक नहीं अपितु एक विज्ञान सम्मत चिकित्सा प्रणाली के रूप में पिछले दिनों उभर का आई है। आज मनोशारीरिक व्याधियाँ परिमाण में बढ़ती जा रहीं है। इनका निदान व उपचार अचेतन के अनावरण के बिना असंभव है। मनोग्रंथियां तनाव अनिद्रा असाध्य साइकिएट्रिक व्याधियां इस उपचार के द्वारा पूर्णरूपेण ठीक की जा सकती है। प्रायश्चित उपचार में भी इस विधा का एक सुपात्र अध्यात्मक प्रधान चिन्तन वाले चिकित्सक द्वारा प्रयोग सफलता पूर्वक हो सकता है। पूर्वार्त्त मनोविज्ञानी की इस चिर पुरातन विधा के पुनर्जीवन की अनिवार्यता अनुभव की जानी चाहिए एवं इस दिशा में निरन्तर शोध चलनी चाहिए।

रूस के प्रख्यात इतिहासवेत्ता वेसली रेडलोव ने उन्नीसवीं शताब्दी में दक्षिण साइबेरिया के अल्टाई पर्वतों पर विभिन्न प्रकार के छोटे बड़े टीलों को खोज निकला था। ये दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराने है। कहा जाता है। कि पश्चिम योरोप से आये स्काइथियन्स योद्धाओं की ये कब्रें हैं, जिनमें उनके शव दफन है।

रूस के दक्षिण भाग में एक विशाल भू क्षेत्र पर खुदाई करने पर बहुत ही प्राचीन इमारतों के खण्डहर मिले है। बर्फ की चट्टानों से ढके अन्धकार युक्त कमरों में मृतकों के शरीर, स्वर्ण आभूषण, पोशाकें एवं सुन्दर फर्नीचर पाये गये है। मध्य रूस के सोलोखा नामक स्थान से खुदाई के समय एक स्वर्णनिर्मित कंघा प्राप्त हुआ है, जिस पर स्काइथियन्स योद्धाओं के चित्र बने हुए थे इसी तरह कटंडा के निकट पेजीयर्क घाटी की कई पहाड़ियों में विभिन्न तरह के मुलायम चमड़े एवं काष्ठों निर्मित वस्तुएं, कपड़े, आभूषण आदि प्राप्त हुए है। सुन्दर कसीदाकारी की हुई दरिया शाल आदि उपलब्ध हुए है। इन पहाड़ियों पर उत्खनन के समय दीवालों पर पशु-पक्षियों, बैल-गांधियों राक्षसों आदि के चित्राँकन की उत्कृष्ट शैली भी देखने को मिली है। चिकित्सा उपचार एवं बेहोश करने में प्रयुक्त होने वाली जड़ी बूटियाँ व उन्हें पीसने एवं गरम करने के यंत्र उपकरण भी प्राप्त हुए है। कम्बल और बर्फ में लपेटकर रखे गये सुरक्षित शव इस बात को प्रमाणित करते हैं कि उस समय के लोगों का ज्ञान वर्तमान वैज्ञानिकों युग के लोगों से कम नहीं था। भवन निर्माण की कला में वे दक्ष थे। वन्य प्रदेश में ऊंचाई पर निर्मित गुम्बज वाले महलों के ध्वंसावशेष अभी जहाँ तहाँ बिखरे दिखाई देते है। इनकी संरचना रेफ्रिजरेटर जैसी है। यहाँ की इमारतों और गूढ़ाक्षरों से बने कलेंडरों की तुलना मध्य अमेरिका के मय सभ्यता से की जा सकती है।

मूर्धन्य वैज्ञानिक एलवर्टो रूप ने में एक अति प्राचीन धर्म स्थल को ढूंढ़ निकाला है जिसे प्लेंक्यू मंदिर के नाम से जाना जाता था। सारा मंदिर कलात्मक पत्थरों से बना हुआ है। इसमें मनुष्य के त्याग बलिदार को प्रदर्शित करने वाले सुन्दर दृश्य चित्राँकित किये गये है।

प्राचीन विकसित सभ्यता के अनेक अलौकिक दृश्य आस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में सुप्रसिद्ध खान विशेषज्ञ माइकेल टेरी ने खोज निकाले है। इनमें मानव सिर में सींग तथा मुकुट जिसकी पुष्टि आस्ट्रेलियन इन्स्टीट्यूट ऑफ एवोरिजिनल्स्टडीज ने भी की है। इसका अध्ययन साउथ आस्ट्रेलियन म्यूजियम के सुप्रसिद्ध शरीर विज्ञानी रावर्ट एडवर्ड ने किया और उन से संबंधित अनेक तथ्यों को प्रकाशित किया है। उन्होंने उस समय की अनेकानेक कलाकृतियों का भी अध्ययन किया है। उनका कहना है कि ये कलाकार वस्तुतः ऑस्ट्रेलिया के बाहर से आये थे।

दक्षिण अमेरिका के पहाड़ों पर यक्सुना से कोवा तक से फीट चौड़ी एवं मील लम्बी पक्की सड़क बनी हुई है। जिसकी ऊपरी सतह सीमेन्ट की है। संभवतः यह मय सभ्यता काल की बनी हुई है। पूर्वजों की प्रखर बुद्धि एवं कुशल इंजीनियर होने का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसके अतिरिक्त पूर्व पाषाण एवं उत्तर पाषाण काल के कुछ अवशेषों पर विभिन्न प्रकार की रचनाएं रेखाँकन आदि पाये गये है। जो तत्कालीन सभ्यता के बौद्धिक विकास की ओर इंगित करते है। इस तरह के अवशेष योरोप के अधिकाँश भागों में पाये गये हैं जिन पर पेड़ पौधे सर्प एवं अन्यान्य सुन्दर आकृतियां अंकित की है। निसर्ग में फैले जहाँ-तहाँ मानवीय कृत्यों को देखते हुए नृतत्ववेत्ता भी अब यह मानने लगे हैं कि पूर्वकालिक लोग हमसे कहीं अधिक सक्षम एवं सभ्य थे।

उपरोक्त पुरातन प्रमुखों के रहते अब यह कहना अनुपयुक्त ही होगा कि बंदर ही विकसित होकर मनुष्य बना है। सच तो यह है। कि हम पूर्वजों की तुलना में हर क्षेत्र में नीचे गिरते आयें है।


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