प्रशंसा की सृजनात्मक शक्ति

May 1988

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गहन अन्तस्तल में एक चेतन चिनगारी ऐसी है जो अपना सम्मान चाहती है गौरवास्पद बनाने के लिए आकृत व्याकुल रहती है। इस तड़पन की तृप्ति जहाँ से होती है वह उसे प्रिय लगने लगती है। प्रशंसा एक प्रकार का प्रोत्साहन है, एक संदेश है जो प्राणी को साफ-साफ बता देता है। कि उसे किस रूप में पसंद किया जाता है। खिलाड़ियों को सिखाते समय जब शिक्षक समय जब शिक्षक हाँ या शाबाश कहता है तो वह उन्हें प्रोत्साहित करके उनके अंग चालन प्रक्रिया पर अपनी स्वीकृति वाली मुहर लगा देता है। उसका अधिकाधिक उपयोग करके खिलाड़ी दक्ष बनता है।

प्रशंसा करने का प्रोत्साहित करने का अवसर जब भी मिले उसे व्यक्त करने से न चूका जाये इससे प्रशंसक की भी प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसके अतिरिक्त इसी के बल पर अग्रिम मार्गदर्शन एवं दोष निवारण भी बन पड़ता है। प्रोत्साहन प्रशंसा शिक्षण प्रक्रिया का एक अति आवश्यक ओर व्यावहारिक अंग ठहराता है। चित्रकला का एक अध्यापक कक्षा में गृहकार्य कर लिया था उनकी परिणाम यह हुआ कि न केवल होम वर्क करने वालों की संख्या द्विगुणित हो उठी अपितु अध्यापक भी विद्यार्थियों में और प्रिय होने लगा।

संसार में सर्वथा गुण विहीन व्यक्ति कोई नहीं। तलाश करने पर बुरा लगने वाले व्यक्ति में भी कुछ न कुछ गुण मिल सकते है। बिना झूँठ बोले भी व्यक्ति में जो प्रत्यक्ष या परोक्ष गुण दीख पड़े उसकी चर्चा कर देना अपनी सद्भावना का प्रकटीकरण है जिससे व्यक्ति अनुकूल भी बनता है। नरम पड़ने पर अपनी ओर झुकने पर परामर्शों को भी दिया गया और स्वीकारा कराया जा सकता हैं जो उसके लिए उपयोगी और आवश्यकता हैं साथ ही जिन्हें चरितार्थ होने पर अपना आदर्शवादी दृष्टिकोण भी पूरा होता है। इसी संबंध में एक ऐसी नवविवाहित का दृष्टान्त रीडर्स डाइजेस्ट पत्रिका में छपा है जिसके पति एवं श्वसुर दोनों ही अफसरी मिजाज वाले थे जो प्रायः हुक्म चलाते रहते थे। भोली भाली बेचारी पत्नी उस पर कभी भी अपनी खीझ भरी प्रतिक्रिया व्यक्त न करती किन्तु जब कभी उसके पति अथवा श्वसुर घर के छोटे-मोटे कामों को पूरा करके उसका भार बटाने जैसा कोई नेक काम करते तो पत्नी अपनी प्रसन्नता व्यक्त किए बिना ओर उन्हें सम्मान दिये बिना न रहती। इस तरह से उसने उन दोनों को अपने आदर्शों के अनुरूप मोड़ने में सफलता पाई।

प्रशंसा प्रोत्साहन के माध्यम से आगे बढ़ाना ऊंचे उछालना जितना सरल है उतना और किसी प्रकार नहीं। प्रशंसा के उपरान्त यह परामर्श भी दिया जा सकता है कि गेहूँ में घुन की भाँति कुछ घिनौनी आदतों को वह किस प्रकार त्यागकर अधिक प्रतिभा सम्पन्न सज्जन देवतुल्य बन सकता हैं यदि इन्हीं दुर्गुणों के प्रति आँगुल्यानिर्देश छिद्रान्वेषी ढंग से पेश किया जाता तो उससे चिढ़कर व्यक्ति में दुर्भावनायें ओर गहरे जड़ें जमा पाने का अवसर पा जाती है।

सकारात्मक प्रोत्साहन द्वारा व्यक्ति के वाँछित आचरण में सुधार तभी आता हैं जब वह कार्यावधि में ही दी जायें। उदाहरणार्थ बच्चा जब साइकिल सीख रहा है तब भी यदि उसे शाबाश ठीक कहा जाये तो वह पागलपन सरीखा सिद्ध होगा। सीखी गई बात को बरकरार बनाये रखने के लिए यदाकदा प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

प्रशंसा प्रोत्साहन एक ऐसा सुधारात्मक आयुध है जिसकी वजह से मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी जैसे स्वच्छन्द प्राणियों को भी सुदृढ़ बनाकर उनमें काम लिया जा सकता है। न्यूयार्क शहर के वौन्क्सा चिड़ियाघर में वार्षिक स्वच्छता अभियान के अंतर्गत एक गोरिल्ले को पिंजड़े से बाहर निकालने की कोशिशें इसलिए चल रही थी ताकि पिंजड़ा भीतर से भली भाँति साफ किया जा सके किन्तु ऐसा लग रहा था कि गोरिल्ले में बाहर न निकलने की ठान ली थी। केले दिए जाने पर वह खाकर तुरन्त भीतर घुस जाता। विवश होकर मुख्य प्रशिक्षक को बुलाया गया। उन्होंने समाधान यह सुझाया कि जब गोरिल्ला दरवाजे में बैठा उसकी उपेक्षा की जाये पर ज बवह स्वयं बाहर आए तो उसे भोजन देकर प्रोत्साहित किया जाये। प्रोत्साहन तो तभी दिया जाना चाहिए जब वाँछनीय कार्य हो रहा हैं ऐसा ही किया गया व वाँछनीय कार्य हो रहा हैं ऐसा ही किया गया व वाँछित प्रयोजन पूरा हुआ। वस्तुतः अभीष्ट कार्य की संभावना में पहले से प्रोत्साहन देना प्रकारान्तर से घूँस देने के समान है। गोरिल्ले के इस दृष्टान्त में उसे केले दिखाना उस आचरण का प्रोत्साहन नहीं है जो अभी शुरू ही नहीं हुआ।

समय से पूर्व दिया गया प्रोत्साहन कारगर नहीं होता। इसमें कभी कभार आगे असफल होने वाले कार्यों को भी हम प्रोत्साहित करने की भूल अनजाने में कर जाते है। प्रोत्साहन कोई भी चाहे वह सकारात्मक प्रशंसा वाला हो या निराशात्मक पिटाई नाराजगी वाला हो समय से दिया जाये। कार्यावधि में या कार्य समाप्त होते प्रोत्साहन निष्प्रभाव ही देना चाहिए।बाद का दिया गया प्रोत्साहन निष्प्रभाव ही नहीं समस्यात्मक बन जाता हैं उदाहरणार्थ यदि किसी कलाकार से कहा कि कलवाला तो आपका अभिनय बड़ा ही बेजोड़ था। इस प्रोत्साहन का उल्टा अर्थ वह यह भी मान सकता है कि कल वाला उत्तम था और आज का निकृष्ट जबकि कहने वाले का यही अभिप्राय नहीं था। वाँछित परिणाम आते ही तुरंत की हल्की डाट फटकार बच्चों पर अंकुश का काम करती है। बाद में डाँटते रहना निष्प्रभावी होकर मात्र शोर शराबा ही उनकी निगाहों में रह जाता है।

प्रोत्साहन परिवर्तनशीलता व सृजनात्मक होने चाहिए। एक सरीखे प्रोत्साहन अपना महत्व गंवा बैठते हैं इसकी परख कारेन प्रायर ने डाल्फिनों पर की है। उनका कथन है कि यदि डाल्फिन की हर उछाल की हर उछाल पर उसे मछली खिलाना बन्द तो कुदान भी ठप्प। इसकी जगह प्रोत्साहन में भी परिवर्तनशील कार्यक्रम अपनाए जाने पर डाल्फिन वाँछित आचरण करेंगी।

अन्तरात्मा अपनी गरिमा भूलती नहीं। वह येन-केन प्रकारेण स्नेह सम्मान पाने के लिए हाथ पाँव पीटती रहती है। व्यक्ति में सौंदर्य सज्जा से लेकर डाट-बाट रोपने और सस्ते प्रदर्शनों से या उपहार देकर लोगों को इसके लिए उफसाती रहती है। यह ललक लिप्सा मानवेत्तर प्राणियों में भी पाई जाती है। बी0एफ॰ स्किनर मनोविद ठहरे। उन्होंने देखा कि एक लड़की चाहती थी कि उसका कुत्ता साथ साथ घूमें। पर वह दूर भाग जाता और बुलाने पर भी न आता। स्किनर ने कुत्ते की तारीफ वाली योजना बताई। जब भी कुत्ता बिना बुलाए उसके पास आ जाता वह उसकी तारीफों का पुल बाँध देती। उसे खिलाती, दुलारती तथा बच्चों सरीखी बातें करती। अब वही कुत्ता एक आवाज पर आने लगा।

कारेन फ्रायर ने जब यह देखा कि घर में बच्चों पर चीखना चिल्लाना बेअसर हो रहा था, उन्होंने सकारात्मक प्रोत्साहन अपनाना आरम्भ कर दिया। भोजन कर लेने के बाद ज्योंही बच्चे बरतन माँजने हाथ बाँटने आगे बढ़ते तो उनकी माँ उन्हें गले लगाकर प्रशंसा के दो चार शब्द कहकर प्रोत्साहित करने लगी। जब उनके अच्छे काम प्रशंसित होने लगे तो उनकी पुनरावृत्ति होते रहने से घर का वातावरण शनैः-शनैः सुख शान्तिमय होने लगा। निःसन्देह प्रशंसा वह सीढ़ी है जिसकी सहारे ऊपर उठना आगे बढ़ाना सरल होता हैं प्रशंसा चाहे दूसरा करें या स्वयं कर लिया जाये हर दशा में उत्साहवर्धक सिद्ध हो सकती।

जीवन में हम अपने आप से बड़ी आशायें रक्खे रहते हैं जब वे पूरी होने को हों तब हम उन पर अपने को प्रोत्साहित न करें ऐसे अवसर प्रायः कम ही आया करते हैं अस्तु हम अपने को प्रोत्साहित करना भूल जाते हैं कारने प्रायर के शब्दों में मैं समझती हूँ की हमारी चिन्ता और उदासी की एक वजह प्रोत्साहन से वंचित रहना भी है। उनकी राय में व्यक्ति एक घण्टे काम काज बन्द कर के दोस्तों के साथ गप्प लगाकर आत्मानुमोदन से अपने आप को बड़े अच्छे ढंग से प्रोत्साहन दे सकता है। इस संदर्भ में अभिनेत्री रुथ गोर्डेन के सुझाव है कलाकारी प्रशंसा होनी ही चाहिए अगर काफी दिनों तक मेरी प्रशंसा न हो तो मैं स्वयं अपने को बधाई देती हूँ। अपनी तारीफ आप करना दूसरों के मुँह तारीफ सुनने जैसा ही होता है। कम से कम इतना तो जानती ही हूँ कि यह तारीफ एक दम सही है।

अपने आप को जानने की अपने बारे में सोचने समझने की उपेक्षा लोग बाग किया करते है। व्यक्ति कितना ही व्यस्त क्यों न रहे उसे इस निमित्त समय निकालना ही पड़ेगा निद्रा में निमग्न होने के पहले अपने दिन भर के कार्यों का लेख जोखा उसे लेना चाहिए। जो भी स्तुत्य कृत्य वचन या व्यवहार नेकी के जान पड़ें उस हेतु उसे अपनी प्रशंसा प्रोत्साहन स्वयं ही कर देनी चाहिए। दुर्व्यवहार पर स्वयं को लानत दिया जाये और उससे बचे रहने का परामर्श भी दिया जाता रहें।


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