अपनों से अपनी बात - महिलाएं पाँच, पाँच से पच्चीस की मंडलियां बनाये!

May 1988

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यह युग संधि की बेला है। इन्हीं दिनों विनाश या विकास में से एक का चयन होना है। इन्हीं दिनों महान प्रयोजन के लिए प्राणवानों को ही आगे आना है। उन्हें ही पतन को रोकने और अभ्युदय को गतिशील बनाने के लिए महती भूमिका सम्पादित करने के लिए अग्रिम मोर्चे पर खड़ा होना अपने निर्वाह परिवार तक ही सीमित न रह कर नव सृजन के लिए भी भाव-भरा योगदान प्रस्तुत करना है।

अखण्ड ज्योति परिवार को चाहिए की अपने भावनात्मक वैचारिक बौद्धिक चारित्रिक व्यावहारिक स्तर में शालीनता का अधिकाधिक समावेश करें। दूरदर्शी विवेकशीलता अपनायें और व्यक्तित्व को प्रामाणिक प्रखर प्रतिभावना और पुरुषार्थ पराक्रम से परिपूर्ण बनाने का प्रयत्न करें चन्दन जब महकता है दो निकटवर्ती झाड़ भी महकने लगते हैं। उद्यान में खिले हुए पुष्प सारे वातावरण को सुगंधित ओर सारे क्षेत्र को सुगन्धित कर देते है। उच्चकोटि के व्यक्ति स्वयं पार होते और कुशल माँझी की तरह अनेकों को अपनी नाव पर बिठा कर पार करते है। अपना निर्माण संसार की सबसे बड़ी सेवा है। इस उक्ति में गहरी यथार्थता है।

इस तथ्य को मान्यता और क्रिया में गहराई तक उतारने के साथ परिजनों को दूसरों का संगठन का शक्ति का संचय करके वातावरण के परिवर्तन का कार्य हाथ में लेन पड़ता हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता है डेढ़ चावल की खिचड़ी नहीं पकती ढाई ईंट की मस्जिद नहीं बनती एकाकी व्यक्ति कितना ही सुयोग्य और समर्थ क्यों न हो वह युग परिवर्तन जैसे महान प्रयोजन में कोई कहने लायक भूमिका नहीं निभा सकता। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इन सत्यों को स्वीकार करते हुए हममें से हर किसी को आत्मा परिष्कार के साथ व लोकमंगल के निमित्त भाव भरे कदम उठाने चाहिए इस शाश्वत सत्य को पूरी तरह अंगीकार करना चाहिए कि हम बदलेंगे युग बदलेगा। हम सुधरेंगे युग सुधरेगा। इन दोनों ही प्रयोजनों के लिए हम में से प्रत्येक प्राण पण से प्रयत्न करना चाहिए। साथ ही यह समझ लेना चाहिए कि मन स्थिति ही परिमार्जन की जन्मदात्री है उसी के कारण समस्याएं सुलझती ओर उलझती है। हमें यदि अपना और दूसरों का सुस्थिर एवं दूरगामी कल्याण करना हो तो विचार क्रान्ति अभियान की अनिवार्य आवश्यकता अनुभव करनी चाहिए। उसकी पूर्ति के लिए अपने समय श्रम और मनोयोग को पूरी तरह नियोजित करना चाहिए। इस निमित्त जिन साधनों की आवश्यकता पड़ेगी भी उसकी पूर्ति के लिए अपना उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अन्यान्यों को सहज सहयोगी बनाना चाहिए। सादा जीवन उच्च विचार की नीति अपनाते ही यह प्रयोजन उत्साहवर्धक मात्रा में सहज ही पूरा होने लगता है।

प्रश्न कुछ व्यक्तियों ओर कुछ परिवारों को नहीं है जो कुछेक व्यक्तियों की भागदौड़ में काबू में आ जायें। उसके लिए बड़े समुदाय के संगठित प्रयत्न ही कारगर हो सकते हैं समुद्र सेतु बंधने गोवर्धन उठने स्वतंत्रता जीतने जैसे अनेकों पौराणिक और ऐतिहासिक संस्मरण देख सूने और समझे जा सकते है। निकटवर्ती क्षेत्र में भी ऐसे उदाहरणार्थ की कमी नहीं रहती। बूँद मिल जुलकर घनघोर घटाटोप की रूप में बरसती है। ईंट के सहयोग से भव्य भवन बनते है। तिनके से रस्सा बटा जाता है।

प्रस्तुत प्रसंग इस वर्ष के नये संकल्प के साथ उठें नारी जागरण रूपी आँदोलन के संदर्भ में प्रतिपादित किया जा रहा है। बिना संघबद्ध हुए यह भागीरथी कार्य पूरा कर पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है आधी जनसंख्या को जाग्रत, संगठित, शिक्षित, स्वावलम्बी एवं विचारशील बनाने का कार्य छोटा नहीं है। उसे भी प्रा परिकर के समतुल्य ही भारी भरकम और दूरगामी परिणाम उत्पन्न करने वाला माना जा सकता है। इसकी आवश्यकता तो सर्वत्र समझी जाती है। पर किसी से कोई ठोस कदम उठाने बन नहीं पड़ता बात लेखन भाषण छुट पुट समायोजन लैटर पैड साइनबोर्ड तक सीमाबद्ध होकर रह जाती है कारण स्पष्ट है कि घरों की चहार-दीवार में कैद रहने वाली अशिक्षित नारी तक पहुँच सकना ओर उनके साथ संबंध मिलाकर प्रगति प्रयोजनों को कार्यान्वित कर सकना किसी के लिए भी सम्भव नहीं हो सकता है। यह कार्य अखण्ड ज्योति के परिजन ही थोड़े प्रयत्न से सहज रूप से सम्पन्न कर सकते है।

अपने अपने घरों में एक प्रतिभाशाली महिला को नारी जागरण अभियान में काम करने के लिए थोड़ा अवकाश और प्रोत्साहन दिया जा सके तो उसका परिणाम यह हो सकता है कि इन दिनों पाँच लाख परिवारों में जाने वाली मिशन की पत्रिकाओं से पाँच लाख परिवार ऐसे हो सकते है। जिनकी महिलाएं इस पुण्य प्रयोजन का थोड़ा उत्तरदायित्व अपने कंधों पर उठाये और अपने संपर्क क्षेत्र में से पाँच नई समझदार महिलाएं समेट कर उन्हें अपने सहयोगिनी बनायें इतने भर से एक नारी जागरण मण्डली पाँच का महिला मण्डल बना पायेंगी। और न्यूनतम पच्चीस को अपने प्रभाव में ले लेगी इस प्रकार उन पाँच को भी पच्चीस तक जा पहुँचने का अवसर मिल जायेगा।

इतना संगठित परिकल यदि महिला जागरण के क्षेत्र में कार्य करने में जुट जाये तो उसके चमत्कारी परिणाम सामने आ सकते है। इस आन्दोलन की प्रथम आवश्यकता यह है कि घर घर जाकर हम नारी और हर नर को नारी की अवगति से होने वाली हानियों से अवगत कराया जाये ओर बताया जाये कि वे यदि किसी प्रकार सुविकसित समुन्नत हो सके तो परिपूर्ण मनुष्य जैसी भूमिका निभाने में पूरी तरह समर्थ हो सकती है। अपना अपने परिवार ओर समाज का इतना बड़ा हित साधन कर सकती है। जिसका प्रभाव परिणाम समूचे देश में विश्व में एक कल्याणकारी प्रगति का शुभारम्भ कर सकें।

21 वीं सदी नारी प्रधान होगी। उसमें उसकी उत्कृष्टता का समुचित योगदान होगा। इस निमित्त यह नितान्त आवश्यक है कि नारी जागरण का आन्दोलन स्वतंत्रता संग्राम जैसे युद्ध स्तर पर आरम्भ किया जाये।

थ्मशन कि कितनी ही समर्थ महिलाएं है वे बल बूते एक मण्डल गठित कर सकती है। और अपना कार्यक्षेत्र बढ़ा कर न्यूनतम पच्चीस तो कर सकती है।

इसके अतिरिक्त प्रत्येक पुरुष परिजन को कहा गया है कि वे अपने परिवार एवं संपर्क क्षेत्र में से पाँच प्रतिभावान महिलाओं की मण्डली गठित करें। उन्हें प्रोत्साहन और मार्गदर्शन प्रदान करें। सुविधा साधन जुटायें आवश्यक वातावरण बनायें किन्तु अग्रिम पंक्ति पर नारी को ही खड़ा होने दे स्वयं चलें तो अपनी पत्नी माता बहन या पुत्री को साथ लेकर चलें अकेला पुरुष नारी वर्ग में प्रवेश करें तो उससे अनुपयुक्त वातावरण बनता है।

सूत्र संचालक की उत्कट इच्छा महाकाल की महती प्रेरणा एवं युगधर्म की पुकार है कि अखण्ड ज्योति परिकल की नारी सदस्याएं इन दिनों पाँच पाँच की मण्डली में गठित हों प्रगतिशील नारियों का ऐसा परिकल खड़ा करें जो उल्टी परिस्थितियों को उलट कर सीधा करने में समर्थ एवं सफल हो सकें। इस कार्य के लिए प्रशिक्षण हेतु त्रैमासिक प्रशिक्षण सत्रों में अग्रदूत कार्यकर्ता महिलाओं को शाँतिकुँज भेजें। जिनके पास समय कम हो वे एक माह के लिए आ सकती है। इस अवधि में उन्हें नवसृजन संबंधी संगठनपरक क्रिया -कलापों का शिक्षण करने का प्रयास किया जायेगा। आने से पूर्व केन्द्र से अनुमति ले लेनी चाहिए। एक दिवसीय साधना-सत्र यथावत् चलते ही रहेंगे।

*समाप्त*


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