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July 1983

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वायुनानीयते मेघः पुनस्तेनैव नीयते। मनसा कल्प्यते बन्धो मोक्षस्तेनैव कल्प्यते॥ -विवेक चूड़ामणि - 174

‘जिस प्रकार’ बादल वायु के द्वारा आता है और उसी के द्वारा अन्यत्र चला जाता है, उसी प्रकार ‘मन’ से ही बन्धन की कल्पना होती है और उसी से मोक्ष की।


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