पुनर्जन्म की कुछ और साक्षियाँ

July 1983

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पिछले जन्म में संचित हुई विशेषताएं अगले जन्म तक चली जाती हैं- इस आधार पर भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त की पुष्टि होती है। इस संदर्भ में दो तथ्य सामने आते हैं। एक यह कि कुछ बालक जन्म से ही विशिष्ट प्रतिभा साथ लेकर जन्मते हैं, उनकी ज्ञान-सम्पदा इतनी अधिक होती है, जितनी कि कठिन से कठिन प्रयत्न करने पर भी उतना अविकसित मस्तिष्क अपने में इतनी मनीषा भर नहीं सकता। सामान्य विकासक्रम की एक मर्यादा है। यदि उससे व्यतिरेक हो रहा हो, तो समझना चाहिए कि कोई असामान्य तथ्य काम कर रहा है। कम आयु के बच्चों की विशिष्ट प्रतिभा इस तथ्य की साक्षी देते हैं, कि इस जन्म का नहीं, पूर्व संचित ज्ञान का प्रभाव काम कर रहा है।

‘गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ के अनुसार लॉर्ड केवलिन ने 10 वर्ष की आयु में विलियम टॉमसन के नाम से ग्लासगो विश्व विद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी।

उक्त पुस्तक के अनुसार ताइवान के एक मेधावी छात्र जेलू ने 9 वर्ष की वय में वोइस स्टेट विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। जेलू की आयु उस विश्वविद्यालय के छात्रों की औसत उम्र से आधी थी। उसने अमेरिका के 4 वर्षीय पाठ्यक्रम को 3 वर्ष में ही पूरा कर लिया। अमेरिकी इतिहास में जेलू स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाला सबसे कम उम्र का प्रथम छात्र है।

डॉन फ्राँसिस्को कोलम्बिया विश्वविद्यालय में जब प्राकृतिक इतिहास का प्रोफेसर नियुक्त हुआ, तो उसकी आयु मात्र 16 वर्ष थी।

चार वर्षीय वेबेल थाम्पनन अंकगणित त्रिकोणमिति और प्रारम्भिक भौतिक में असाधारण गति रखती है। ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी ने इस अतिशय मेधावी बालिका के लिए अध्ययन का विशेष प्रबन्ध किया है।

रवि किरण नामक ढाई वर्ष का एक भारतीय बालक ने केवल कई वाद्य यन्त्रों का कुशल वादक है, अपितु अन्यों द्वारा गलत बजाए जाने पर उनकी त्रुटि भी बता सकता है- मद्रास संगीत अकादमी ‘न्यास’ ने उसे 50 रुपये प्रतिमास की छात्रवृत्ति देने की घोषणा की है।

दूसरा आधार है- वंशानुक्रम माता पिता तथा मातृकुल के अन्य पूर्वजों की विशेषता साथ लेकर जन्म लेना भी एक प्रकार का पुनर्जन्म ही है। इसके लिए आवश्यक नहीं कि मरण और जीवन का मध्यान्तर रहना ही चाहिए। माता-पिता के शरीर में शुक्राणु डिम्बाणुओं के रूप में निवास करने वाली आत्मा, उस विशिष्ट लोक में निवास करने वाली मानी जा सकती है। गर्भाशय में भ्रूण बनकर विकसित होना भी कुंभीपाक नरक के सदृश्य है। जीवन उस स्थिति में भी विद्यमान रहता है। जन्म लेना उस अदृश्य का दृश्यमान होना भर है। पितृ शरीर से मातृ शरीर के दो लोकों का परिभ्रमण करते हुए, जब मनुष्य प्रसव कार्य से अपनी सत्ता दृश्यमान बनाता है, तो उस प्रत्यावर्तन को एक प्रकार का पुनर्जन्म ही समझा जाना चाहिए।

मन्दबुद्धि, चंचल, उद्धत, अनगढ़ प्रकृति के ऐसे कितने ही व्यक्ति पाये जाते हैं, जिन पर उपयुक्त शिक्षण का प्रभाव भी नगण्य जैसा ही होता है। यही बात शारीरिक विकास के संदर्भ में भी है। कुछ बालक ऐसे होते हैं, जिन्हें कितना ही खिलाया-पिलाया जाय, उनकी निजी विशेषता में बहुत अधिक हेर-फेर नहीं होता।

विकास के साधन उपलब्ध होने पर भी मनुष्य की अपनी निजी विशेषता एक सुनिश्चित तथ्य जैसी बनकर भारी चट्टान की तरह अड़ी बैठी रहती है, और बहुत प्रयत्न करने पर भी उत्साहवर्धक परिणाम उपलब्ध नहीं हो पाता। शारीरिक और मानसिक विकास में मनुष्य की निजी विशेषता का असाधारण महत्व है। सुधार प्रयत्नों से उस पर सीमित प्रभाव ही होता है और परिवर्तन भी यत्किंचित् हो पाता है। मनुष्य के चेहरे, रंग एवं कार्य शक्ति दृष्टिपात करने पर पता चलता है कि इस भिन्नता का परिस्थितियों या साधनों से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। काले नीग्रो अमेरिका जैसे शीत प्रधान देश में गोरों के बीच बसते हुए भी अपने रंग और चेहरे को पीढ़ी-दर-पीढ़ी यथावत् बनाए रहते हैं। इसी प्रकार गोरे लोग दक्षिण अफ्रीका जैसे गर्म क्षेत्र में शताब्दियों में बसे होने पर भी काले नहीं हुए। उनकी सन्तान अपने पैतृक गुणों को यथावत् बनाए हुए है।

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पैतृक गुणों की माता के लिए जिम्मेदारी है- ‘गुणसूत्र’। यह गुणसूत्र शरीर की समस्त कोशाओं में विद्यमान हैं, परन्तु शुक्राणुओं और डिम्बाणुओं में पाये जाने वाले घटक ही तात्कालिक भूमिका का निर्वाह करते हैं। इन गुणसूत्रों में रासायनिक पदार्थ के साथ ही अदृश्य विद्युत प्रवाह घुला रहता है, जिसमें पूर्व पीढ़ियों के अनेकानेक रहस्य एवं सभी कायिक मानसिक विशेषताएँ जुड़ी रहती हैं। इन गुण सूत्रों में एक पितृपक्ष और दूसरा मातृपक्ष का सम्मिश्रण होता है। इनमें पूर्व पीढ़ियों की विरासत सन्निहित होती है। आवश्यक नहीं कि ये सब विशेषताएँ एक ही पीढ़ी में प्रकट हो जायं। आदिमानव की तुलना में अर्वाचीन पीढ़ी में पाये जाने वाले गुणसूत्र अत्यधिक विकसित हैं। उनके साथ एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी के अनुदान जुड़ते चले आये हैं और कुल मिलाकर स्थिति इतनी साधन सम्पन्न बन गई है, कि उनमें पाये जाने वाले पक्षों में यदि उपयोगी अनुपयोगी का भेद एवं उपयोग करना सम्भव हो सके, तो हर स्तर की सन्तति उत्पन्न करना शक्य हो सकता है।

फ्राँस के क्लरमाण्ट शहर का निवासी क्रेटीन एक पादरी था। एक बार घर वालों से किसी बात पर विवाद हो जाने के कारण ईर्ष्यावश उसने एक ऐसी लड़की से विवाह कर लिया, जिसके वंशजों को पीढ़ियों के कुख्यात अपराधी माना जाता रहा था। इस दम्पत्ति से जीन क्रेटीन नामक पुत्र पैदा हुआ, जिसे हत्या और लूटपाट के अपराध में फाँसी दी गई। जीन क्रेटीन के पियरी, टामस और बैपरिस तीन पुत्र हुए। अपने पिता के समान यह तीनों भी अपराध जगत में कुख्यात निकले और यह तीनों भी फाँसी की भेंट चढ़े। पियरी का इकलौता लड़का जीन फ्रांसिस, टॉमस के दो पुत्र- फ्रांसिस और मार्टिन, बैपरिस की एकमात्र सन्तान- जीन फ्रांसिस इन सब में भी हत्या नृशंसता जन्मजात रूप में विद्यमान थी। वह सभी या तो फाँसी से या जेल की सजा भुगतते मरे। मार्टिन का इकलौता बेटा मार्टिन जूनियर केने को सुधार गृह में रखा गया। वहाँ उसने आत्महत्या करली। जीन फ्राँसिस और उसकी पत्नी टेम से सात सन्तानें जन्मी जिनमें सभी पुत्र थे। वह सब भी हत्या एवं अपराध के मामले में मृत्युदण्ड के भागी बने।

9 माह 10 दिन के लगभग की अवधि गर्भधारण की मानी गई है। इस अवधि में लगभग 24 करोड़ 1 लाख 92 हजार सेकेंड होते हैं। तीन सेकेंड से कुछ कम समय में आकृति परिवर्तन होता है। इस हिसाब से उपरोक्त समय में 80 लाख 60 हजार छः सौ छियासठ (लगभग 84 लाख, पौराणिक मान्यता के अनुसार) कलेवर परिवर्तन सम्भव हैं। यह 84 लाख योनियाँ एक लाख योनियाँ एक प्रकार से जीव, जिन-जिन योनि-जीवन में रहकर आ चुका होता है, उसका छाया-चित्रण है।

कई बार इस जन्म-मरण के मध्यान्तर में जीवात्मा अपनी बदली हुई अभिरुचि के अनुसार लिंग-परिवर्तन भी कर लेता है। ऐसे कितने ही प्रमाण मिले हैं, जिसमें एक जन्म का लड़का दूसरे जन्म में लड़की हो गया और लड़की ने लड़के के रूप में जन्म लिया। पूर्ण परिवर्तन न होने की दशा में नपुंसक स्तर का कलेवर मिलता है। कई स्त्रियों में पुरुषों जैसा स्वभाव पाया जाता है और कई पुरुष स्त्रियों जैसी वाणी बोलते, हाव-भाव दिखाते और उसी स्तर की अभिरुचि प्रकट करते पाए गये हैं।

इन प्रमाणों से भी पूर्व जन्म की संचित-सम्पदा का अगले जन्म तक जाना, प्रकारान्तर से पुनर्जन्म सिद्धान्त की ही अपने सही रूप में पुष्टि करता है।


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