एक बार भगवान् महावीर कहीं जा रहे थे। सहसा एक चाण्डाल भागता-भागता कहीं से आया और महावीर के चरणों पर गिरने लगा। तभी सहसा रास्ते पर चलते मनुष्य चिल्ला उठे “अरे हरिकेशी! तुम भगवान को कहीं छू न देना।
भगवान् महावीर ने आश्चर्य से पूछा- ‘क्यों?’
‘यह चाण्डाल है भगवन्! इसके छू देने से आप अपवित्र हो जायेंगे।’ भीड़ में से एक व्यक्ति बोला।
यह सुनकर भगवान महावीर मुस्कराये। वे स्वयं आगे बढ़कर हरिकेशी चाण्डाल के पास गये और उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया।
इसके बाद भगवान् महावीर आश्चर्यचकित भीड़ से बोले- ‘जन्म से कोई व्यक्ति न ब्राह्मण है, न चाण्डाल। जो बुरे कार्य करता है वही चाण्डाल है। जो अच्छे कार्य करता है वही ब्राह्मण है। चाण्डाल हो या ब्राह्मण सभी में एक आत्मा है फिर किससे कैसी घृणा करें?