एक दिन किसी की जेब से निकल कर एक सोने का सिक्का गन्दे चिथड़े के पास जाकर गिर पड़ा, चिथड़े को देखकर सिक्का बोला- ओ गन्दे चिथड़े! जरा दूर हट जा, देखता नहीं में सोने का सिक्का हूँ जिसे पाने के लिए रंक के लेकर नृप तक दिन रात यत्न करते रहते हैं। यह बात चिथड़े को बहुत अखरी किन्तु कर ही क्या सकता था।
कुछ दिन बाद चिथड़े बीनने वाले ने चिथड़े को उठा लिया और साफ सुथरा करके कागज के कारखाने में बेच दिया, उससे जो कागज तैयार हुआ वह दस स्वर्ण मुद्राओं के बराबर मूल्य का आँका गया।
एक दिन एक कागज का खरीददार आया और दस स्वर्ण मुद्रायें देकर वह कागज खरीद रहा था। उस दिन सिक्कों में एक वह सिक्का भी था, जिसकी बात चिथड़े से हुई थी। उसने उसी सोने के सिक्के को पहचान कर बोला- “भैया, उस दिन तो तुम मुझे दुत्कार रहे थे किन्तु आज मैं तुमसे अधिक कीमत का बन गया हूँ तुम जैसे लोग दूसरों की निरर्थक निन्दा करते रहते हैं और जब वे बड़े हो जाते हैं तो उनकी पूजा करने दौड़ पड़ते हैं।