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November 1980

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नास्ति ध्यानम् अप्रक्षस्य प्रज्ञानास्ति अध्यायतः। यास्मिन् ध्यानाँ च प्रज्ञाच तस्य निर्वाण मत्तिके॥ -योग चूणामणि

विवेक जागरण के बिना ध्यान नहीं-ध्यान के बिना विवेक जागरण नहीं। ध्यान और प्रज्ञा के समन्वय से ही महा निर्वाण प्राप्त होता है।


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