जीवन एक प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष

November 1980

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जीवन एक प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष है। उसका गठन ऐसे तत्वों से हुआ है कि साधना करने पर उसे किसी भी कामना की पूर्ति हो सकती है। इच्छित फल देने के सन्दर्भ में कल्प-वृक्ष को ही प्रमुखता दी जाती है। किंवदन्ती है कि उसकी छत्र छाया में बैठने का जिसे भी अवसर मिलता है वह अभीष्ट वरदान पाता है और मनोरथों को पूर्ण करने का आनन्द लेता है। कल्प-वृक्ष की मान्यता कल्पना की उड़ान हो सकती है किन्तु जीवन की महत्ता समझने वालों को इसमें तनिक भी अत्युक्ति नहीं लगती कि मानवी सत्ता में सन्निहित विशिष्टताएं असीम हैं।

चिन्तन एक अति शक्तिशाली चुम्बक है जो अपने अनुकूल साधन और सहयोग खींच बुलाने में पूर्णतया समर्थ है। सोचने से इच्छा जगती है और संकल्प उठता है। इसके बाद पुरुषार्थ का उपक्रम चल पड़ता है। मनोयोग युक्त पराक्रम की शक्ति इतनी बड़ी है कि उसके सहारे उतना कमाया पाया जा सकता है जिसे सामान्य प्रगति प्रक्रिया की तुलना में दैवी वरदान कहा जा सके।

जीवन एक दुधारी तलवार है जिसे उत्थान और पतन दोनों के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। दुर्गुणों और दुष्कर्मों को अपना कर मनुष्य नर-पशु और नर-पिशाच जैसे हेय स्तर पर पहुँच सकता है और नारकीय यंत्रणाओं का सहन करते हुए सर्म्पक क्षेत्र को विषाक्त कर सकता है। इसके विपरीत जो जीवन को उत्कृष्टता से सींचते और सुसंस्कृत बनाते हैं और महानता की रीति-नीति अपनाते हैं वह लोग हर समय अपने सौभाग्य को सराहते है। वे अनुभव करते हैं कि जीवन सचमुच ही औधड़ वरदानी शिव है। उसकी छत्र छाया में अभीष्ट मनोरथों की उपलब्धि में कोई संदेह नहीं रह जाता यह बात दूसरी है कि उत्थान की आकाँक्षा की गई या फिर पतन की।


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