एक बार विधाता अपनी सृष्टि को देखने निकले। धरती पर पहुँच कर उन्होंने देखा कि एक किसान फावड़ा लेकर विशाल पर्वत को खोद रहा है। विधाता को उसका दुस्साहस देखकर आर्श्चय हुआ। उन्होंने इसका कारण पूछा।
किसान ने बताया - ‘बादल आते हैं और इस पर्वत से टकरा कर इसके दूसरी ओर वर्षा कर देते हैं। मेरे खेत सूखे ही रहते हैं। अतएव इसे में यहाँ से हटाकर ही चैन लूँगा।’
‘पर इतने बड़े कार्य को तुम अकेले कर पाओगे?’ विधाता अपना आर्श्चय न रोक सके और पूछने लगे।’
किसान बोला - ‘मेरा दृढ़ संकल्प है। मैं इसे निश्चित ही हटा दूँगा।’
विधाता किसान के आत्मबल से प्रभावित होकर आगे बढ़े। तभी पर्वतराज गिड़गिड़ाने लगे - ‘भगवन्! इस किसान से मेरी रक्षा कीजिये।’
‘तुम एक छोटे से किसान से इतने भयभीत हो?’ विधाता ने पूछा।
पर्वत बोला - ‘किसान छोटा है तो क्या, उसका संकल्प दृढ़ है, उसका आत्म-विश्वास अडिग है। इन दोनों के द्वारा वह मुझे निश्चित ही हटाकर मानेगा। संकल्प शक्ति आथ्र आत्म-विश्वास से असम्भव कार्य भी सम्भव बन जाते हैं।’