Quotation

November 1980

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न श्रेयः सततं तेजो, न नित्य श्रेयसी क्षमा। तस्मान्निव्यं क्षमा तात, पण्डित रवादिता॥

बेटे न सदा क्रोध की कल्याणकर है न निरंतर क्षमा ही, इसलिए आचार्यों ने निरंतर क्षमा के लिए अपवादों की, विशेष अवसरों के लिए विशेष नियमों की रचना की है।


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