तोप के गोले जब फूल से कोमल बन गये

November 1980

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भारतीय धर्म-शास्त्रों ओर पुराण-ग्रन्थों में ऐसे कई पात्रों का विवरण मिलता है जो हाड़माँस की काया रखते हुए भी इतने मजबूत और सुदृढ़ है शरीर के स्वामी थे कि उन्हें बज्रदेह ही कहा जाता है। हनुमान, भीम आदि पौराणिक चरित्रों के सम्बन्ध में ऐसे अनेकानेक प्रसंग मिलते हैं कि उन पर सहज ही विश्वास नहीं होता। क्या सचमुच कोई व्यक्ति हाियों से रौंदे जाने पर भी जीवित बच सकता है। क्या पैने और विषबुझे वाणों का भी देह पर कोई असर नहीं होता है? आदि ऐसे अनेक प्रश्न उभरते हैं, जब इन पात्रों से सम्बन्धित चर्चा चलती है या ऐसे विवरण उपलब्ध होते हैं।

ऐसे विवरणों को संदेह की दृष्टि से भी देखा जाता है परंतु इसी शताब्दी के आरम्भ में अमेरिका का एक ऐसा व्यक्ति अपनी सुदृढ़ काया के कारण विख्यात हो चुका है जिसके शरीर पर कठोर से कठोर यातना का प्रभाव नहीं पड़ता था और उसने अपनी शारीरिक क्षमता सुदृढ़ता को इतना बढ़ाया कि सन् 1964 में जब वह वृद्ध हो चुका था अपने पेट पर बड़े-बड़े इस्पाती हथौड़ों के बार ऐसे सह लेता था जैसे उस पर हथौड़े नहीं फूल फ्रंके जा रहे हों।

इस व्यक्ति का ना था रिचर्ड। 08 अगस्त 1965 के नवभारत टाइम्स के बम्बई संस्करण मं रिचर्ड के एक प्रदर्शन का जो विवरण प्रकाशित हुआ था, वह इस प्रकार है - कैलीफोर्निया से स्टेडियम में सारा नगर उमड़ आया था। सहसा भीड़ में से एक बूढ़ा निकला और स्टेडियम के मध्य जाकर खड़ा हो गया। उसकी आयु किसी भी प्रकार साठ पैंसठ वर्ष से कम नहीं दिखाई दे रही थी। किन्तु कद काँठी में वह अच्छा खासा लम्बा चौड़ा और मजबूत था। उसने उस समय केवल एक जाँघिया पहन रखा था और शेष सारा शरीर निरावरण था।’

रिचर्ड के मंच पर पहुँचने के बाद पाँच हट्टे-कट्टे व्यक्ति मंच पर आए। उनमें एक एक ने लगभग पन्द्रह फुट लम्बी और छह इंच मोटी मजबूत लकड़ी उठा रखी थी। वह बड़ी तेजी से उस बूढ़े की ओर बढ़े और लकड़ी को बूढ़े के पेट के ऐन बीच रखकर पाँचों पूरी शक्ति से दबाने लगे। यह दृश्य इतना आर्श्चयजनक और भयंकर था कि कई स्त्रियाँ चीखें मारकर बेहोश हो गईं और कमजोर हृदय वाले पुरुषों ने भयभीत होकर अपनी आँखें पर हाथ रख लिये। किन्तु वह बूढ़ा एक फौलादी चट्टान के समान अपने स्थान पर ही खड़ा रहा। पाँचों व्यक्ति अपना एड़ी चोटी का जोर लगाकर पसीना-पसीना हो गये किन्तु रिचर्ड को एक कदम भी पीछे नहीं हटा सके, आर्श्चय की बात तो यह थी कि रिचर्ड न अपनी एक टाँग ऊपर उठा रखी थी।

जब वे पाँचों व्यक्ति अपने प्रयासों में सफल नहीं हुए तो रिचर्ड को पराजित करने के और भी कई प्रयत्न किये गये। उदाहरण के लिए सान फ्राँसिस्को से छह भीमकाय पहलवान इसी उद्देश्य के लिए बुलाये गये थे। उन्होंने रिचर्ड को घेर लिया ओर पूरी ताकत से पहलू बदल-बदल कर उसे घूसे मारने लगे। करीब पन्द्रह मिनट तक छहो पहलवान पूरी ताकत से जोर अजमाइस करते रहे किन्तु उन्हें सफलता न मिल सकी। वे सब तो पसीने से नहा गये किन्तु रिचर्ड को जैसे कुछ हुआ ही न हो। वह बड़े आराम से अपनी जगह पर खड़ा हुआ था। जब वे पहलवान रिचर्ड पर आक्रमण कर चुकने के बाद हटते थे तो वह उन्हं “बस इतना ही दम है।” कह-कह कर और उत्तेजित करता था।

उसके बाद सान जोंस स्टेट यूनिवर्सिटी के करीब साढ़े छह फुट लम्बे और 240 पौंड वनज वाला पहलवान जाँग्योर्ड मंच पर आया। वह गोला फ्रंकने में अद्वितीय था। उसने पूरी ताकत से एक बहुत भारी गोला रिचर्ड के पेट पर फ्रंका पर लेकिन उसका जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा। रिचर्ड ने जाग्योर्ड को भी उसी तरह चिढ़ाया। इससे जाग्योर्ड बुरी तरह तिलमिला उठा और वह अपने बड़ी-बड़ी नुकीली कीलों वाले जूतों से रिचर्ड को चोट पहुँचाने लगा किन्तु रिचर्ड खड़ा-खड़ा मुस्करा रहा था।

इस प्रदर्शन के बाद रिचर्ड एक छह फीट ऊंचे चबूतरे के पास चित लेट गया। उसके चित लेट जाने पर एक बहुत भारी व्यक्ति उस ऊंचे चबूतरे पर चढ़ा और बूओं सहित उसके पेट पर पूरी शक्ति से कूदने लगा। लेकिन रिचर्ड के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। वह ऐसी लापरवाही से मुस्करा रहा था जैसे साल डेढ़ सल का कोई बच्चा उसके पेट पर खेल रहा हो।

ये सारे प्रदर्शन रिचर्ड की इस चुनौती के जबाव में आयोजित किये जा रहे थे, जिसमें उसने कहा था कि जो कोई भी व्यक्ति मुझे जमीन पर गिरा देगा या मुझे त्रस्त कर सकेगा, मैं उसे एक हजार डालर (करीब 8500) का पुरस्कार दूँगा। इस घोषणा के बाद रिचर्ड की चुनौती का जबाव देने के लिए कई व्यक्ति आये, उन्होंने अपने-अपने ढंग से जोर आजमाइश की परंतु कोई भी अपने को इनाम का हकदार सिद्ध नहीं कर सका। जब भी कोई उसकी चुनौती को स्वीकार कर उसे पराजित करने की बाजी रखता था और प्रदर्शन रखा जाता तो उसके आक्रमणों का रिचर्ड पर कोई असर नहीं होता था। अधिक से अधिक यही होता था कि उसका पेट स्पंजी गद्दे की तरह ऊपर नीचे दब जाता था। सन् 1964 में उस पर एक बड़ी नली की बन्दूक से सौ-सौ पौंड के वनज वाले गोले बरसाए गए, तब भी उसे कोई कष्ट होना तो दूर रहा, वह अपने स्थान से हटा तक नहीं।

सन् 1966 में सबसे रोमाँचक और हृदय दहलाने वाला प्रदर्शन हुआ। इस प्रदर्शन में अमेरिका की जल सेना के इन्जीनियरों ने लाँगवीय के स्थान पर साढ़े बारह फुट लम्बी और करीब 2500 पौंड वनज वाली एक छोटी तोत बनाई। इसमें करीब 150 पौंड वनज का गोला डाला गया। रिचर्ड तोप से चार फुट दूर खड़ा हुआ। तोप दागी गई और उससे डेढ़ सो पौंड वजनी गोला, पाँच हजार पौंड वनज की शक्ति से रिचर्ड के पेट से टकराया गया और कोई व्यक्ति होता तो तोप के सामने खड़े होकर इतना भारी और शक्तिशाली गोले का बार सहने के कारण निश्चित रुप से समाप्त हो जाता। यहाँ तक कि उसके माँस के लोथड़े भी नहीं मिलते। परंतु रिचर्ड खड़ा मुस्कराता रहा।

रिचर्ड के इन प्रदर्शनों का विवरण विश्व भर के समाचार पत्रों ने विस्तारपूर्वक छापा और उसे लौहपुरुष, आयरन मैन, इस्पात का आदमी, माँस की चट्टान आदि विशेषणाँ से सम्बोधित किया। रिचर्ड ने यह विद्या कहाँ से सीखी थी? कैसे उसने अपने शरीर को इतना मजबूत बना लिया था कि तोप से छूटे गोले भी उस पर फूल की तरह बरसते थे? इस सम्बन्ध में रिचर्ड का कहना था कि वह सन् 1924-25 में अपने एक अधिकारी के साथ जो भारत की यात्रा पर आया था, भारत आया था। यहाँ आकर वह अपने उच्च अधिकारी के साथ वाराणसी, प्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश आदि स्थानों पर गया। इन स्थानों पर कई साधु सन्तों ओर सिद्ध योगियों को रिचर्ड ने देखा। उसने तथा उसके अधिकारी ने इन योगियों से योग साधन की विद्या भी सीखी।

एक विशेष प्राणायाम और आसन की विधि बताते हुए किसी योगी ने रिचर्ड को बताया कि इनका अभ्यास करने पर शरीर चट्टान से भी अधिक मजबूत बन सकता है। रिचर्ड ने अपने अभ्यास का क्रम इतना बढ़ा लिया था कि उस पर गोलों और लोहे की छड़ों का कोई असर नहीं होता।

योगशास्त्र में वर्णित अनेकानेक सिद्धियों में से एक सिद्धि, देह का वज्र के समान सुदृढ़ हो जाना भी है। भारतीय योगियों ने अति प्राचीन काल में योग विद्या को शोध और अनुसंधान द्वारा उस सीमा से भी काफी आगे पहुँचा दिया था जहाँ तक विज्ञान पहुँच सका है और भविष्य में उसको पहुँचाने की सम्भावना है। उसे अंतिम सीमा तो नहीं कह सकते, पर इतना स्पष्ट है कि भारतीय योग विज्ञान ने चेतना के उन शिखरों को छुआ था, जिनकी प्रतिक्रिया परिणिति, अविश्वसनीय आर्श्चय ही लगती है, किन्तु आज भी जहाँ-तहाँ उसके अवशेष मिलते हैं।


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