न कहीं संयोग है न कोई सर्वज्ञ

November 1980

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प्रसिद्ध फ्राँससी विचारक वाल्टेयर ने कहा था कि “इस दुनिया में संयोग जैसी कोई चीज नहीं होती न ही चमत्कार का कोई अस्तित्व हैं जिस हम संयोग या चमत्कार कहते है। वास्तव में वह एक अनदेखे कारण का दिखाई देने वाला परिणाम मात्र होता है।” इस तथ्य को अब सर्व सम्मति से स्वीकार किया जाने लगा है, जो कुछ हम देखते हैं, संसार वहीं तक सीमित नहीं है। इस तथ्य को नकारने वाला जमाना बीत चुका। वे दिन लद गये जब दृश्य के विपरीत प्रतिपादित तथ्य को अस्वीकार किया जाता था। अब गैलिलियों के यह कहने पर आपत्ति किये जाने तथा उसे फाँसी देने का जमाना नहीं रहा कि पृथ्वी सूरज की परिक्रमा लगाती है न कि सूरज पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। सही माने में तो यह प्रश्न ही बेमानी हो गया है कि जो कुछ हम आँखों से देखते हैं क्या यही संसार है? कौन इस तथ्य से इन्कार करता है कि जो कुछ हम देखते हैं वह उन अस्तित्वों का एक छोटा-सा अंश मात्र है जो हम नहीं देख सकते या कि जिनका अस्तित्व है। न केवल खुली आँखों वरन सूक्ष्मदर्शी यंत्र भी उन्हें देखने में असमर्थ हैं। देखना तो दूर रहा सम्वेदनशील से सम्वेदनशील यन्त्रों द्वारा भी उन्हें अनुभव नहीं किया जा सकता।

फिर भी चमत्कार जैसी कुछ बात देखी जाती है और समझा जाता है कि यह संयोग मात्र हुआ। मानने वाले तो यहाँ तक मानते हैं कि इस संसार का निर्माण भी नियति की संयोगजन्य घटनाओं का परिणाम है। परंतु सचाई इससे भिन्न है। सही बात तो यह है कि प्रत्येक परिवर्तन और घटनाक्रम के पीछे कोई न कोई कारण विद्यमान होता हैं संयोगवश कोई दुर्घटना नहीं घटती उनके मूल में कुछ त्रुटियाँ होती हैं। दो बसों में टक्कर हो जाती है, दसियों, बीसियों यात्री मारे जाते हैं तो यह दुर्घटना संयोगवश घटी कहना असंगत होगा। दुर्घटना के कूल में बस चलाने वाले ड्राइवरों का हाथ बहक जाना, समय पर ब्रेक न लगना, रास्ता देखकर गाड़ी की दिशा निर्धारित न करना जैसे हजारों कारण हो सकते हैं। चूँकि ये कारण जाने समझे हैं, इसलिए दुर्घटना को कोई चमत्कार नहीं कहेगा। परंतु कई बार ऐसी घटनाएं घटती है जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता इसलिए उन्हें चमत्कार कहा जाता है, परन्तु कारण उनके भी होते हैं।

शास्त्रीय भाषा में इस ही कार्य कारण विद्धान्त कहा जाता है। इस आधार पर ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध भी किया जा सकता है और उसे असिद्ध भी ठहराया जा सकता है, सिद्ध इस आधार पर किया जाता है कि इतने बड़े विश्व ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और संचालन का कोई कारण, कोई आधार तो होना चाहिए। वह कारण या आधार ही ईश्वर है। असिद्ध इस ढंग से ठहराया जाता है कि जब सभी वस्तुओं, घटनाओं को अस्तित्वों का कोई कारण है तो ईश्वर का भी कोई कारण होना चाहिए। वह कारण क्या है? यदि ईश्वर का कोई कारण नहीं है तो इस जगत का भी कारण हो यह क्या आवश्यक है? खैर, हमारा उ्देश्य यहाँ ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करना या असिद्ध ठहराना नहीं है। कहा इतना भर जा रहा है कि हमारी समझ बहुत छोटी है, उसकी सीमाएं और उसके आधार पर सब कुछ जान लेने का न दावा किया जा सकता है तथा न ही दम्भ भरा जा सकता है।

कई बार दृश्य होने ओर अदृश्य के दृश्य में परिणत होने की घटनाएं घटित होती रहती है ओर वे घटनाएं इतनी विचित्र होती हैं कि उन्हें भूत प्रेत, देवी-देवता की करतूत, सिद्धि, चमत्कार अथवा अतीन्द्रिय चेतना की अनुभूति आदि कहकर मन समझाना पड़ता है। वास्तविकता क्या है? इसका सही पता लगा पाना और उन अद्भुत घटनाओं का कारण ढूँढ़ना, विश्लेषण कर सकता प्रायः सम्भव नहीं हो पाता। इस सर्न्दभ में जहाँ-तहाँ घटने वाली घटनाओं में से दो इस प्रकार हैं।

पहली घटना के तयि मनीला की यू. पी. आई. नामक प्रामाणिक समाचार ऐजेन्सी ने जुटाए थे। इस ऐजेन्सी ने पूरी खोजबीन के पश्चात् एक समाचार प्रकाशित कराया था कि कार्नेलियो क्लोजा नामक एक बारह वर्षीय छात्र जब तब अनायास ही अदृश्य हो जाता है। स्कूल के क्लास से गायब हो जाना और दो-दो तीन-तीन घंटे बाद वापस लौटना आरम्भ में लड़के की चकमेबाजी समझा गया किन्तु पीछे उसके दिये गये विवरण पर ध्यान देना पड़ा। वह कहता था कि कोई समवयस्क परी जैसी लड़की उसे अपने पास बुलाती है और वह रुई की तरह हल्का होकर उसके साथ खेलने व उड़ने लगता है। पुलिस ने बहुत खोज की। उस लड़के पर विशेष पहरा भी बिठाया गया। यहाँ तक कि उसे एक कमरे में बन्द भी कर दिया गया परन्तु उसका गायब होना नहीं रुका। पीछे तान्त्रिकों द्वारा मन्त्रोपचार किये जाने से उसका गायव होना बन्द हुआ।

दूसरी घटना का उल्लेख फ्राँसीसी वैज्ञानिक सेलारियर द्वारा किया गया है। उनकी प्रामाणिकता पर या विश्वसनीयता पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। घटना पैरिस की एक प्राचीन प्रतिमा से सम्बन्धित है। वैज्ञानिकों का एक दल जब इस प्रतिमा की परीक्षा कर रहा था, तब देखते ही देखते प्रतिमा गायव हो गई और उसके स्थान पर एक-दूसरी विशालकाय मूर्ति आ विराजी जो पहले की तुलना में बड़ी थी।

इसी तरह की एक और घटना है जो बहुत पुरानी नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व टेनेसी राज्य के गालटिन नगर के एक धनी किसान डेविड लेंग के अचानक गायब हो आने के समाचार ने दूर-दूर तक आँतक पैदा कर दिया था और पूरे राज्य के निवासियों को हैरत में डाल दिया था। लेंग के गायब हो जाने की घटना की व्यापक जाँच पड़ताल भी हुई, पर इसका कोई कारण नहीं समझा जा सका और न ही यह पता चला कि वह गायव होकर कहाँ गया? वह किसी आवश्यक कार्य से घर से बाहर जा रहा था। जिस रास्ते पर वह चल रहा था, उस पर कई लोग आ जा रहे थे और लेंग से परिचित भी थे। वह रास्ते में दो तीन परिचितों के मिल जाने पर कोई आवश्यक चर्चा करने के लिए रुक गया। वह बातचीत कर ही रहा था कि उन तीनों व्यक्तियों के देखते-देखते गायब हो गया, यद्यपि उसके भाग जाने का कोई कारण नहीं था, पर वह जिनसे बातचीत कर रहा था, वे तो स्पष्ट देख रहे थे कि लेंग सामने खड़ा है और एक क्षण भी नहीं बीता है कि वह गायब हो गया है। मान भी लिया जाय कि वह भाग गया था, परंतु उसे घर तो वापस लौटना चाहिए था। वह घर भी वापस नहीं लौटा जबकि वह घर पर यह कहकर बाहर निकला था कि एक ढेढ़ घण्टे में वापस आ जाऊंगा। आर्श्चय की बात यह कि जिस स्थान पर वह गायब हुआ, जहाँ वह खड़ा था उस स्थान की घास बुरी तरह झुलस गई थी परन्तु जिन लोगों से वह बात कर रहा था उन्हें झुलसे न तो क्या मामूली तपन भी महसूस नहीं हुई थी। पुलिस तथा लेंग के अन्य परिचित जनोँ ने खूब भाग दौड़ की, उसे ढूँढ़ने के लिए सिरतोड़ प्रयत्न किये परन्तु उसका कुछ पता नहीं चल सका।

इस तरह की घटनाओं की विवेचना करते हुए वैज्ञानिकों में कई प्रकार की चर्चायें होती रहती हैं, लेकिन उससे किसी निश्चित निर्ष्कष पर पहुँच पाना, अभी तक सम्भव नहीं हो सका है। यही मानना पड़ रहा है कि मनुष्य की इन्द्रिय चेतना के आधार पर विकसित बुद्धि जितना जान पाती है, दुनिया वस्तः उससे कहीं अधिक है। उसे समझ पाने में न बुद्धि समर्थ है और न ही कोइ्र यन्त्र या मशीन ही उसका विश्लेषण कर सकती है। यद्यपि ऐसे सम्वेदनशील यन्त्र या मशीन ही उसका विश्लेषण कर सकती है। यद्यपि ऐसे सम्वेदनशील यन्त्र तैयार किये जा चुके हैं जो मनुष्य की पकड़ से बाहर की चीजों के सम्बन्ध में थोड़ी बहुत जानकारी देते रहते हैं, किन्तु उनसे भी यही सिद्ध होता है कि प्रत्यक्ष दर्शन और प्रत्यक्ष अनुभव न केवल अधूरा होता है वरन् बहुत बार वह भ्रामक भी सिद्ध होता है। उदाहरण के लिए हम नित्य ही सूर्य की ‘धूप’ देखते हैं, पर सचाई यह है कि धूप कभी भी देखी नहीं जा सकती। जो दिखाई देता है वह धूप के प्रभाव से एक विशेष स्तर पर चमकने लगने वाले पदार्थों की चमक मात्र है। सूर्य की किरणें जो इस चमक का प्रधान कारण है, हमारी दृश्य शक्ति से सर्वथा परे है।

अन्तरिक्ष में प्रायः पूरे सौरमण्डल को प्रकाशित एवं प्रभावित करने वाली धूप वस्तुतः एक सोलर स्पेक्ट्रमा (सौरमण्डलीय वर्णक्रम) है। उसे ऊर्जा की तरंगों एवं स्फुरणाओं की एक सुविस्तृत पट्टी कह सकते हैं। इस पट्टी में करीब दस अरब प्रकार के रंग हैं। लेकिन उनमें से हमारी आँखें केवल सात प्रकार के रंगों और उनके मिश्रणों को ही देख पाती हैं। बाकी सारे रंग हमारे लिए सर्वथा अदृश्य, अपरिचित और अकल्पनीय है। कुछ विशेष यंत्रों की सहायता से थोड़ी -सी सूक्ष्म किरणों को देख समझ सकना भी अब सम्भव हो गया है। जैसे धूप में ‘इन्फ्रारेड’ किरणों देखी तो नहीं जो सकतीं परन्तु जलन के रुप में वे अनुभव जरुर की जाती हैं। फोटोग्राफी में इन किरणों का प्रयोग करने पर दुनिया का जो वास्तविक रंग चित्रित किया गया वह बहुत ही विचित्र और विस्मयकारी है। इतना ही नहीं ऐसे दृश्य भी कैमरे ने चित्रित किये जो आँखों से दिखाई ही नहीं पड़ते हैं। ट्रेचर जेम्स ने ‘इन्फ्रारेड मूडी फिल्म’ के लिए प्रयुक्त होने वाले एक विशेष कैमरे आई.आर. 135 के द्वारा मोजापे रेगिस्तान के अन्तरिक्ष की स्थिति चित्रित की है। इस फिल्म में ऐ पक्षी दिखाई पड़ते हैं जो अपनी आँखों से कभी देखी ही नहीं जा सकते हैं।

अल्ट्रा वायलेट फोटोग्राफी से ऐसे प्राणियों के अस्तित्व का पता चला है जो हमारी समझ, परख और प्रामाणिकता के लिए काम में लाई जोने वाली सभी कसौटियों से परे है। इन प्राणियों को प्रेत प्राणी कहा जाए तो भी कोई अत्युक्ति नहीं होगी। हर्वट्र गोल्डस्टीन ने अपने शोध निबन्ध ‘प्राँपगेशन आफ शार्ट रिडियो बेनस’ में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ऐसे प्राणियों का भी अस्तित्व इस दुनिया में है जो अदृश्य रहते हैं अर्थात आँखों से नहीं देखे जा सकते। आप यदि यह पंक्तियाँ कहीं एकान्त कमरे में पढ़ रहे होंगे तो भी यह मच सोचिये कि आप अकेले हैं। आपके आसपास अदृश्य प्राणियों की एक भीड़ नाच रही होगी। न आपको उनसे कोई असुविधा हो रही होगी और न ही उनकी आप से।

इस तरह के अदृश्य प्राणियों की दुनिया हमारे साथ जुड़ी हुई है और उनमें से कई प्राणी तो दृश्यमान सहचरों से कम प्रभावित नहीं करते। वर्तमान सूक्ष्मदर्शी यंत्र उन्हें देखने समझने के लिए अपर्याप्त है तो भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। इस महत्वपूर्ण अदृश्य संसार से अपनी अनुभव चेतना के द्वारा सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है। ताँत्रिक-माँत्रिक प्रेत, पिशाच, बेताल, ब्रह्मराक्षस और देव सत्ताओं से अपनी अनुभव चेतना के आधार पर ही सर्म्पक जोड़ते, सम्बन्ध स्थापित करते हैं।

जीवाणुओं की अपनी एक अनौखी दुनिया अलग ही है। वे मिट्टी, घास-पात, पानी ओर प्राणियों के शरीर में निवास करते हैं ओर बड़े बजे से अपनी जिन्दगी बिताते हैं। लेकिन उनमें से कुछ को ही सूक्ष्मदर्शी यंत्रों द्वारा देखा जा सकता है। उन्हें इसमें कोई सरोकार नहीं है कि हम हैं कि नहीं। हमारे होने न होने से उनके लिए कोई अन्तर नहीं पड़ता। शास्त्रकार ने चेतना को इसीलिए ‘अणोरणीयान् महतो महीयान्’ कहा है। परमाणु से भी सूक्ष्म, उसका संचालन करने वाली शक्ति और उसके नियमों को देखा और जाना तो नहीं जा सका परंतु उनका आभास तो पा ही लिया गया है।

सुप्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक एच.जी. वेल्स ने अपनी एक पुस्तक ‘द अनविजिवल मेन’ में उन सम्भावनाओं पर प्रकाश डाला है, जिनके अनुसार कोई दृश्य पदार्थ या प्राणी अदृश्य हो सकता है और अदृश्य वस्तुएं दृष्टिगोचर होने लगती है। इस विज्ञान को उन्होंने अपर्वतनाक रिफ्लेक्टिव इन्सेन्स नाम देकर उसके स्वरुप एवं क्षेत्र का विस्तृत विर्णन किया है। निश्चित ही एक ऐसे सूक्ष्म जगत का अस्तित्व भी है जो अपने इस ज्ञात जगत की तुलना में न केवल अधिक विस्तृत वरन् अधिक शक्तिशाली भपी है। यह उचित ही है कि हम ज्ञात को भी पर्याप्त न मानें। प्रतयक्ष को ही सब कुछ न कहें। प्रस्तुत मस्तिष्कीय और यान्त्रिक साधनों को सीमित मान कर न चलें और जो अविज्ञात है उसकी शोध में बिना किसी पूर्वाग्रह के लगे रहें तो इस जगत के वे रहस्य जानने की दिशा में भी अग्रसर हो सकते हैं जो अभी तक अविज्ञात है।


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