जीवन एक वृक्ष की तरह होना चाहिए कि उसका कुछ भाग हिलने-झूकने वाला हो और कुछ भाग स्थिर रहने वाला, यही जीवन की पूर्ण कृतार्थता है।
हम जीवन के विस्तृत व्यवहार में हिलते-झुकते रहें, समन्वयवादी रहं, पर सत्य के - सिद्धाँत के प्रश्न पर हम स्थित रहें, दृढ़ रहें और टूट भले ही जायें, पर हलें नहीं, समझौता करें नहीं। ....बिखरे मोती