जिस प्रकार मानवी काया एक चलता-फिरता बिजलीघर है, उसी प्रकार उसे एक साधन सम्पन्न अस्पताल भी कहा जा सकता है। अपने और दूसरों के काम में जिस तरह श्रम और समय का उपयोग होता रहता है उसकी प्रकार प्राण विद्युत को भी एक सम्पदा मानकर अपने आत्म-विकास तथा लोक-कल्याण में समुचित विनियोग किया जा सकता है। इस दिशा में होने वाली शोधें तथा उपलब्धियाँ यह आशा बंधाती है कि मानवी सुख शाँति में प्राण विद्युत का उत्साहवर्धक उपयोग होने लगेगा।
यदि आपके सौ मित्र हैं तो कम हैं उन्हें और बढ़ाओ। यदि आपका एक शत्रु है तो बहुत जादा है उसे और घटाओ।
- सिडनी