शरीर छूट जाने पर भी मोह दुःख देता रहता है

December 1980

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वस्तुओं, व्यक्तियों और परिस्थितियों से आत्यन्तिक आसक्ति को ही शास्त्रकारों ने बंधन माना है । बन्धन तो आसक्ति मात्र में है । भारतीय तत्वदर्शन की मान्यता है कि आसक्ति और तृष्णा का लेशमात्र रह जाने पर भी जीव को पुनः इस संसार में आना पड़ता है । इसे ही जन्म मरण के बन्धन का कारण कहा गया है । किन्तु आत्यन्तिक आसक्ति मरने के बाद भी अशरीरी अवस्था में भी आसक्ति के केन्द्रो से जीवात्मा को इस प्रकार आबद्व किये रहती है कि उससे न जन्म लेते बनता है और न मुक्त होते । मरने के उपरान्त सूक्ष्म शरीर कई बार जन्म ले लेता है लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि पुराने व्यक्तियों, पुरानी वस्तुओं से अत्यधिक मोह जुड़ जाने के कारण जीवात्मा को उन्हीं वस्तुओं में या उन्हीं के आस-पास रहना पड़ता है । जीवात्मा की ऐसी स्थिति को ही प्रेत-योनि कहा गया है और जीवात्मा उस स्थिति में रह कर पे्रत बनती हे, प्रेतों जैसे काम करती है, स्वयं उद्विग्न रहती है और दूसरों को भी अकारण परेशान करती रहती है ।

अपनी रुचि की परिस्थितियों में प्रेतात्मा को प्रसन्न, और प्रतिकूल परिस्थितियों में उद्विग्न, परेशान रहते तथा उन परिस्थितियों का प्रतिरोध करते देखा गया है । इससे प्रतीत होता है कि आत्मा का न केवल, अस्तित्व बना रहता है, वरन् उसका स्वभाव और रुचि भी लगभग वैसी ही बनी रहती है । इसी आधार पर जीवात्मा के सूक्ष्म शरीर की गतिविधियाँ क्रियाशील रहती है । मरने के बाद जीवात्मा अपनी प्रिय परिस्थितियों, प्रिय वस्तुओं और प्रिय व्यक्तियों के साथ कई बार बहुत घनिष्ट सम्बन्ध बनाये रहती है । इसके कितने ही प्रमाण मिलते रहते है । अपने समय की विश्वविख्यात नर्तकी अन्ना पावलोवना की शिष्या नर्तकियों ने जब उसके पुण्य स्मरण में एक नृत्य समारोह का आयोजन किया तो दर्शकों ने प्रत्यक्ष देखा कि समारोह में भाग लेने वाली नर्तकियों के साथ-साथ मृतात्मा की छाया भी नृत्य कर रही है ।

इसी प्रकार इटली के प्रसिद्ध वायलिन वादक पागगिनी के स्मृति समारोह में उसका प्रिय वायलिन अपने आप बजने लगा । वायलिन एक मंच पर रखा हुआ था और उसके पास ही पागगिनी का चित्र भी था । दर्शकों को यह देख कर आर्श्चय हो रहा था कि वायलिन अपने आप बज रहा है ओर उसमें से ‘मैं पागगिनी हूँ’ मैं पागगिनी हूँ’ की ध्वनि निकल रही थी । इस विचित्र दृश्य को देखकर दर्शकों ने आर्श्चयचकित एवं आतंकित भाव से प्रेतात्मा की उपस्थिति अनुभव की । उन दिनों इस प्रसंग की घर-घर चर्चा थी ।

सबसे अधिक आर्श्चयजनक और साथ ही भयंकर घटना पिछली शताब्दी में मिस्त्र की समाधियों के पास घटी । हुआ यह कि कुछ अमेरिकी और ब्रिटिश पुरातत्व विदों ने मिश्र की इन समाधियों के पुरातत्व रहम्य जानने की योजना बनाई । ये समाधियाँ फराऊनी क्षेत्र में आज भी स्थित है । पुरातत्व विदों का उद्द्द्देश्य केवल इन समाधियों का रहस्य मात्र जानना नहीं था वरन् वे उन कब्रों में दबी हुई विपुल र्स्वण सम्पदा तथा रत्नराशि से भी लाभान्वित होना चाहते थे । इसके अतिरिक्त एक प्रयोजन यह भी था कि उन किंबदन्तियों की वास्तविकता जानी जाय, जो इन समाधियों की रक्षा प्रेतात्माएँ करती है और जो उन्हें छेडे़गा, उसे खतरा उठाना पडे़गा । एक समाधि पर तो स्पष्ट शब्दों में शिला लेख लगा था कि फराऊनी की इन कब्रों को जो कोई छेडे़गा और इनमें आराम कर रही रुहों को परेशान करेगा उसे अकाल मृत्यु खा जायगी ।”

लार्ड कानीवल ने इस तरह की चेतावनियों की उपेक्षा कर कब्रों की खुदाई का काम अपने हाथ में लिया । इनका परिवार भी इस कार्य में दिलचस्पी ले रहा था । क्योंकि इससे अगाध सम्पत्ति हाथ लगनी थी । अन्य लोग भी थे जो लार्ड कानीवल के साथ इस अभियान में जुटे थे और खुदाई के काम में सहयोग दे रहे थे । इस प्रयास की परिणति दुःख परिणामों में हुई । एक-एक करके बाईस व्यक्ति इस अभियान में कुछ ही समय के भीतर बड़े विचित्र ढंग से काल के गाल में समा गए । लार्ड बेस्टबरी को न जाने क्या सनक सूझी कि वह छत पर से कूद पड़े और मर गये । उनका बेटा भी खुदाई में सक्रिय भाग ले रहा था । रात को अच्छा खासा सोया और सुबह मरा हुआ मिला । डा. अर्चिवाल्ड डगलस रीड एक ममी का एक्सरे कर रहे थे कि अचानक गिर पड़े । जिस स्थान पर वह गिरे वह समतल था । न कोई ठोकर लगी ओर न किसी ने धक्का ही दिया । कटे पेड़ की तरह वह गिरे और उनका प्राणान्त हो गया ।

आर्ब्रेहर्वरन सहसा पगला गए तथा आत्महत्या कर बैठे । आर्थर बाइगाल को मामूली सा बुखार चढ़ा और चन्द ही मिनटों बाद उनके भी प्राण-पखेरु उड़ गये । लार्ड कार्नावलि की पत्नी लेडी एलिस को एक ततैये ने काटा ओर देखते ही देखते उनके शरीर का रंग पीला पड़ गया, जैसे किसी ने उनके शरीर का खून चूस लिया हो । इस प्रकार लार्ड कार्नावलि का पूरा परिवार ही इस अभियान में मृत्यु का ग्रास हो गया और किसी के हाथ कुछ भी न लगा, न ही कोई सुरक्षित वापस आ सका ।

इस घटना या आकस्मिक मृत्यु काण्ड की व्यापक चर्चा हुई । यह प्रसिद्ध था कि मिश्र में नील नदी की घाटी में अवस्थित ये कब्रें सबसे अधिक रहस्यमय है और साथ ही इनमें अपार रत्न राशि, हीरे-मोती और र्स्वण-आभूषणों के भण्डार भरे हुए है । एक साथ इतनी मौतें देखकर इन कब्रों के सम्बन्ध में प्रचलित किम्बदन्तियों के सामने सिर झुका रहे थे जो इन कब्रों से छेड़खानी करने वालों को जोखिम उठाने की चेतावनी देती दिखाई दे रही थी ।

यह खुदाई मिश्र के पुरातत्व विभाग के प्रमुख हार्वर्ड कारटर ने इंग्लैड के उत्साही धनपति लार्ड कार्नविन की साझेदारी में आरम्भ कराई थी परिणाम जो निकला, वह ऊपर बताया जा चुका है ।

अनेकों बार ऐसी घटनाएँ भी सामने आई जिनमें प्रेतात्माओं ने अपने परिवार के लोगों की परिस्थितियों में दिलचस्पी ली है और यथासम्भव उनकी सहायता की है तथा उन्हें परेशान करने वालों को तंग किया है । रायल सोसायटी के फेलो जोसफ ग्लैनबिल इंग्लैढ के प्रतिष्ठित नागरिक थे । उनने अपने संस्मरणों में सन् 1662 में घटी एक प्रेत अस्तित्व की घटना का उल्लेख किया है । उनके इस संस्मरण में विल्ट शायर (इंग्लैंड) की एक अदालत में आये एक विचित्र केस का वर्णन है । हुआ यह कि एक अर्ध विक्षिप्त सा व्यक्ति कहीं से पुराना नगाड़ा खरीद लाया । वह उसे सड़क पर खड़ा होकर बजाता और भीड़ इकट्ठी कर पैसे बटोरता था । उसका नगाड़ा बजाने का ढंग विचित्र था ।

पुलिस ने उसे रास्ता रोकने और अवाँछनीय भीड़ इकट्ठी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और अदालत में पेश किया । अदालत ने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया और नगाड़े को जब्त करने का हुक्म दिया । कुछ दिन बाद बेकार पड़े नगाड़़ को पुलिस ने उस अदालत के मजिस्ट्र के घर ही पहुँचा दिया, मजिस्ट्रटे के घर वह नगाड़ा एक कोने में पटक दिया गया । जिस दिन से नगाड़ा मजिस्ट्रटे के घर में पहुँचा उसी दिन से वहाँ उसी दिन से वह्म्रँ प्रेतों के उपद्रव शुरु हो गए । किबाड़ों को खटखटाने की, छत पर धमा चौकड़ी और आँगन में उछल-कूद मचाने की घटनाएँ रोज ही घटने लगीं ।

बहुत तलाश करने पर भी कोई दिखाई नहीं पड़ता था । लेकिन घटनाएँ बराबर घटती रहती थी । बहुत प्रयत्न करने पर भी जब इन उपद्रवों का कोई समाधान नहीं निकला तो पुलिस की सहायता ली गई । लेकिन पुलिस वाले भी कुछ नहीं कर सके । वे देखते, सुनते, समझते पर कुछ कर नहीं पाते । कारण कि उपद्रव तो दिखाई देते थे; पर उपद्रव करने वालों का कहीं कोई पता ही नहीं चलता था । जो दिखाई ही नहीं देता उसको केसे रोका या पकड़ा जा सकता था ? एक दिन न्यायाधीश ने देखा कि किसी ने जोर का धक्का देकर बन्द किबाड़ खोल लिये है और चटखनी टूट गई है वह व्यक्ति ओबरकोट पहने हुए आँगन में होता हुआ जीने के रास्ते छत पर चढ़ गया । आर्श्चय तो यह था कि ओवरकोट तो आँखों से दिखाई दे रहा था, किन्तु पहनने वाले के हाथ-पैर चेहरा आदि कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था । इस घटना के बाद तो इन उपद्रवों को स्पष्टतः प्रेत लीला मान लिया गया ।

समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर थोड़े ही दिनों से यह उपद्रव क्यों खड़े हुए ? घर में कुछ अजनवीपन तो आया नहीं । इस ढूँढ़ खोज में जब्त किया गया वह नगाड़ा ही नजर आया जो एक पगले से छीना गया था और उसने भी वह एक कबाड़खाने से खरीदा था । इतना ही नहीं उसका भी पता लगाया गया और उसके बारे में छानबीन की गई तो मालूम हुआ कि वह सदा से विक्षिप्त नहीं था । कबाड़ खाने से सस्ता माल देखकर उसने वह नगाड़ा खरीद लिया था और जिस दिन से उसने वह नगाड़ा खरीदा था, उसी दिन से वह पगला गया था ।

सत्रहवीं सदी के पादरी जेरेन्सी टेलर ने अपनी स्मरण पुस्तक में एक प्रेतात्मा का आँखों देखा विवरण लिखा है । जब पादरी घोड़े पर सवार होकर वेलकास्ट से डिल्सगेरो जा रहा था । तो सहसा कोई अजनबी व्यक्ति उसके घोड़े की पीठ पर सवार हो गया । चकित होकर पादरी ने उसका परिचय एवं उद्द्द्देश्य पूछा तो उसने अपना नाम हैडक जेम्स बताया ओर कहा कि आप मेरी बिधवा पत्नी तक यह सन्देश पहुँचा दें कि उसका नया पति जल्द ही उसके साथ धोखा करने वाला है । उससे वह बचे । पादरी ने बताये हुए नाम पते पर वह सन्देश पहुँचा दिया किन्तु स्त्री ने न तो उस बात पर ध्यान ही दिया और न विश्वास ही किया । उल्टे पादरी का मखौल ही उड़ाया । लेकिन कुछ दिनाँ बाद सचमुच उस स्त्री की हत्या कर दी गई । हत्या के आरोप में उसका नया पति ही पकड़ा गया । यह मुकदमा कैरिकफोरेन्स की अदालत में चला । पुलिस का कहना था कि यह हत्या उसके नये पति ने पत्नी की सम्पत्ति हड़पने के लिए की है ।

इस सर्न्दभ में पादरी जेनेंसी टेलर ने अपनी प्रेत वार्ता की साक्षी प्रस्तुत की । अदालत ने पादरी की गवाही को प्रामाणिक नहीं माना और कहा कि यदि सचमुच ऐसी बात है तो प्रेतात्मा को अदालत में उपस्थित होकर अपनी बात कहनी चाहिए । अदालत में सन्नाटा छा गया । प्रत को गवाही देने के लिए निमन्त्रित करने कौन जाये और कहाँ जाए ? किन्तु कुछ क्षण भी नहीं बीते थे कि अचानक जोर से बिजली कड़कने जैसी आवाज हुई । शून्य से एक हाथ निकला और उसने अदालत की मेज पर तीन बार जोर-जोर से थपकी दी । इस दृश्य को देखकर न्यायाधीश एवं अन्य लोग चकित रह गये ओर सिहर भी उठे अदालत ने मृत स्त्री के नये पति को दोषी घोषित करते हुए उसे समुचित दण्ड दिया ।

इस तरह के अनेकों प्रसंग है, जिनसें यह सिद्व होता है कि प्रिय वस्तुओं में उलभे रहने के कारण आत्मा अशान्त और उद्विग्न ही रहती है । जिस प्रकार घर के सम्बन्धी मृतक का अभाव अनुभव करते हुए दुखी रहते है, उसी प्रकार वह जीव भी बार-बार अपनी प्रिय वस्तुओं एवं परिस्थितियों के ईर्द-गिर्द मँडराता रहकर दुखी हो सकता है । वहीं डेरा डाल कर बैठा रह सकता है और उस उपस्थिति से घर परिवार के लोगों को भी असुविधा अनुभव हो सकती है । सम्भवतः इसीलिए भारतीय मनीषियों ने दिवंगत व्यक्ति से सम्बन्धित वस्तुओं को दान देकर अन्यत्र स्थानाँतरित कर देने का प्रचलन किया ताकि मृतात्मा को यह विश्वास हो सके कि वे पदार्थ अब परिवार के आधिपत्य में नहीं रहे वरन् किसी धर्मसत्ता के अधिकार में चले जाने के कारण पराये हो गये है ।

जो भी हो, मोह बन्धन जीते जी तो दुख ओर विपाद का कारण बनते ही है, मरने के बाद भी वे जीवात्मा को उद्विग्न अशाँत किये रहते है तथा उसे भटकाते रहते है । इसलिए यही उचित है कि जीते जी ही मोह-बन्धनों को शिथिल किया जाए ताकि अनिश्चित काल तक दुख, विषाद और भटकाव से छुटकारा मिल सके ।


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