आलोक वितरण हेतु क्षेत्र बढ़ाने में प्रिय परिजनों का सहयोग अपेक्षित

December 1980

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‘अखण्ड-ज्योति’ को मिशन की वाणी कहानी चाहिए । विगत 43 वर्षो से युगान्तरीय चेतना इसी के पृष्ठों में लिपट कर प्रकट होती रही है । युग गंगा का अवतरण भले ही दिव्य लोक से होता है, पर उसका प्रत्यक्ष दर्शन तो अखण्ड-ज्योति की गंगोत्री से होता है । उसी के स्नान अबगाहन से इतना बड़ा प्रज्ञा परिवार उपजा है । असंख्य शिशु शावकों को उसने अपना पयपान कराने तथा अचंल का आश्रय देने की सतत साधना से इसे योग्य बनाया है कि वे युग शिल्पी अग्रिम पंक्ति में खड़े हो सकें । अवाँछनीयता, उन्मूलन एवं सत्प्रवृत्ति सर्म्बधन का तूफानी प्रबाह उत्पन्न करने ओर विनाश को सृजन में बदलने की जो युग चेतना इन दिनों उभर रही है उसे ‘अखण्ड-ज्योंति’ की देन समझा जाय तो इसमें तनिक भी अत्युक्ति न होगी ।

जो इस ‘बोधि वृक्ष’ की गरिमा समझते है वे उसके प्रति भाव श्रद्धा भी अर्पित करते है । साथ ही उसे सोच कर अधिक समर्थ बनाने की आवश्यकता भी अनुभव करते है । इस श्रद्धा सद्भावना का प्रत्यक्ष रुप एक ही हो सकता है कि उसके ‘सदस्य पाठक’ बनाने के लिए अधिक पुरुषार्थ किया जाय । पुरानी प्रतियाँ बढ़ाने, महत्व समझाने से लेकर आग्रह करने तक के समस्त उपाय इस प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किये जाने चाहिए कि नये सदस्य बढ़े और पुराने बने रहे ।

अश्रद्धा वश कम, आलस्य वश अधिक ग्रहण टूटते है । इसलिए दिसम्बर में ही यह प्रयत्न चल पड़ना चाहिए कि पुराने सदस्यों का चन्छा वसूल किया जाय और नयों की भर्ती करने के लिए एकाकी या टोली बनाकर सर्म्पक क्षेत्र में उतरा जाय । यह कार्य देखने में छोटा किन्तु परिश्रम से महान है । अखण्ड-ज्योति के सदस्य स्थिर रखने या बढ़ाने का सीधा परिणाम है, प्रज्ञा अभियान को-युग चेतना को-उज्जवल भविष्य को-परिपुष्ट करने के लिए देखने में सामान्य किन्तु परिणाम में महान सहयोग अनुदान प्रस्तुत करना ।

युग शक्ति एवं महिला जागृति पत्रिकाएँ बन्द हो जाने से उनकी पाठ्य सामग्री तथा भावी सम्भावनाओं की अति महत्वपूर्ण जानकारी इस वर्ष से अखण्ड-ज्योति में नये आधार लेकर प्रस्तुत करेगी । अतएव पिछले वर्षो की तुलना में उसका महत्व और भी अधिक बढ़ेगा । अगले वर्ष की विचार सम्पदा ऐसी होगी जिसे आसाधारण ही कहा जाता रहेगा ।

जिन प्रज्ञा परिजनों ने अब तक अखण्ड-ज्योति के सदस्य बनाने, बढ़ाने में योगदान दिया है उनसे विशेष रुप से अनुरोध है कि अपने उस प्रयास अनुग्रह को घटने तनिक भी न दें वरन् यथासम्भव उसमें कुछ बढ़ोत्तरी ही करें । इसी प्रकार जिसने इस सर्न्दभ में अभी कुछ विशेष पुरुषार्थ नहीं किया है, मात्र स्वयं ही सदस्य रहे है, उनसे अनुरोध है कि अपनी सुरुचि को एक कदम आगे बढ़ाकर अपने प्रभाव क्षेत्र से सर्म्पक साधें और कुछ नये ग्राहक बनाने के लिए इन दिनों विशेष रुप से प्रयत्न करें ।

बसन्त पर्व मिशन का-उसके सूत्र संचालक का जन्म दिन है । उस अवसर पर आत्मीय जन अपनी श्रद्ध शुभ कामना व्यक्त करते है । उस अभिव्यक्ति का सार्थक स्व्रुप एक ही हो सकता है कि श्रद्धा के साथ श्रम सहयोग का भी समावेश किया जाय और उसे अधिक परिपुष्ट बनाने में अपने जीवन्त सहकार का परिचय दिया जाय ।

अखण्ड-ज्योति अपने 44 वें वर्ष में प्रवेश करते हुए सभी प्रज्ञा परिजनों के प्रति अपनी सहज ममता को अधिकाधिक सघन करते चलने का वचन देती है साथ ही सभी उदार स्वजनों के अपेक्षा करना ही युग चेतना के विस्तार में उसकी कार्य क्षमता बनाने में सम्भव योग दान करें । उपेक्षा कृपणता न वरतें ।


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