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December 1980

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आधुनिक सभ्यता की कृपा से जो मनोरोग बड़ी तेजी से उभरे और फैले है, उनमें निद्राचार एक है । इस रोग का मरीज रात में सोते हुए ही उठ कर चलने-फिरने लगता है । कई बार उसी स्थिति में कुछ काम भी करने लगता है और फिर वापस अपनी जगह आ कर सो जाता है । इसे एक प्रकार का अपस्मार कहा जा सकता है, जिसका सोते समय दौरा पड़ता है ।

हिस्टीरिया का रोगी दौरा पड़ने पर मानसिक दृष्टि से संज्ञा शून्य हो जाता है, भले ही उसकी शारीरिक क्रियाएँ चलती रहें । मिरगी की बीमारी में दौरा पड़ने पर रोगी बेहोश होकर गिर पड़ता है, उसके दाँत भिच जाते है, मुँह से झाग निकलने लगते है । कुछ प्रकार के अपस्मारों में न तो हिस्टीरिया के रोगी की तरह मन संज्ञा शून्य हुआ लगता है ओर न ही मृगी के समान बेहोशी आती है बल्कि रोगी दौरा पड़ने पर उसके पहले जो काम कर रहे होते है, उसी काम को तब तक कि होश में नहीं आ जाते । ऐसे रोगी यदि दौरा पड़ने से पहले चल रहे होते है तो उसी दिशा में उसी गति से चलते रहेंगें, जिस गति से कि चल रहे थे । ठीक उसी तरह जैसे चाबी से चलने वाले खिलौने चाबी भरी रहने तक चलते रहते है उसी प्रकार वे भी खिलौनों की भाँति चलते रहते है । हाथ से यदि पेंसिल छील रहे थे तो दौरा समाप्त होने तक पेंसिल का वही हिस्सा छीलते रहेंगं, जिसे वह छील रहे थे । यह भी एक प्रकार का अपस्मार है । इसमें मनुष्य स्वयं तो बोध शून्य हो जाता है, पर उसके शरीर की अमुक गतिविधियाँ यथाक्रम चलते रहने से वे लोग देखने वालों को साधारण स्थिति में ही काम कर रहे प्रतीत होते है इसी स्थिति का बढ़ा हुआ रुप निद्राचार है ।

निद्राचार से ग्रस्त व्यक्तियों में सोते-सोते चारपाई से उठकर चल देना और किसी अभ्यस्त क्रम से अभ्यस्त दिशा में पैरों का उठते जाना और होश आने पर अपने आपको अचानक विचित्र स्थिति में पाना या वापस लौट कर बिस्तर पर सो जाना आदि कोई लक्षण पाये जाते है । यह रोग कई व्यक्तियों में देखने में आता है । बचपन में प्रायः यह शिकायत अधिक रहती है । उम्र बढ़ने के साथ-साथ मनुष्य का सचेतन भाग जागृत होने लगता है ओर अचेतन को इन गड़-बड़ियों से रोक देती है । प्रायः बचपन में होने वाली इस प्रकार की शिकायतें बदली उम्र के साथ समाप्त हो जाती है फिर भी बहुत से व्यक्ति ऐसे होते है, जिनके बचपन में यह लक्षण दिखाई देते हों अथवा नहीं, बड़े होने पर किन्हीं कारणों से यह रोग आ धमकता है ।

कई बार तो निद्राचार में रोगी की बड़ी विचित्र स्थिति हुई देखी जाती है जो देखने में ही नहीं, कहने सुननु में भी अजीव लगती है । रोगी कोई काम भले चंगों की तरह कर रहा होता है, पूरी समझदारी के साथ अपने काम के विभिन्न चरणों को निबटाता है । किसी को सन्देह भी नहीं होता कि यह सब वह अपने सचेतन की मूलसत्ता को प्रसुप्त स्थिति में छोड़ कर उसके काम-चलाऊ उदार अंश से ही अपना क्रिया व्यापार चला रहा होता है । इस सबके साथ एक विलक्षणता और जुड़ी हुई रहती है कि जब दौरा समाप्त होता है तो वह अपनी पूर्व स्थिति में वापस लौट आता है और जिस स्थिति में दौरा आरम्भ हुआ था ठीक उसी स्थिति में जा पहुँचता है । फलतः रोगी को उस घटना-क्रम का तनिक भी स्मरण नहीं रहता जो उसने घन्टों तक पूरे समझदार आदमी की तरह सम्पन्न किया था ।

इस तरह के सैकड़ों निद्राचार रोगियों का उपचार करने वाले फ्राँस के प्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सक डाक्टर जैने ने अपने इलाज में आये अनेक रोगियों का विस्तृत विवरण प्रकाशित किया है । सौमनेवूलिज्म (निद्राचार) पुस्तक में प्रकाशित यह विवरण कितने रोचक है । इसमें एक बीस वर्ष की युवती आईरीन का विवरण प्रकाशित हुआ है । उस पर घन्टों तक निद्रभ्रमण का दौरा रहता था । इस रोग का आरम्भ उसे अपनी माँ की मृत्यु के साथ आरम्भ हुआ और मुद्दतों तक चलता रहा । वह निद्राचार ग्रस्त स्थिति में घन्टों बनी रहती और अपनी माँ की मृत्यु का घटना-क्रम उस समय किया गया षोक विलाप आदि क्रियाएँ एक नाटक की रतह दुहराती रहती थी । पूरा नाटक सम्पन्न कर लेने के बाद कुछ घन्टों में जब दौरा समाप्त होता तो वह वापस विस्तर पर आ जाती । जब वह दौरे की स्थिति में रहती थी तो ने केवल माँ की मृत्यु के समय सम्पन्न की गई क्रियाओं को यथावत् दोहराती वरन् यहाँ तक कि वह कब्रिस्तान तक जाती और अपनी माँ की कब्र के पास खड़ी रहकर कुछ समय तक प्रार्थना करती रहती । यह सब करने के बाद जब वह वापस आ कर सो जाती और सुबह उठती थी तो उसे इन बातों के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता था ।

‘सौमनेवूलिज्म’ (निद्राचार) से ग्रस्त एक डाक्टर का विवरण अतीव भयानक एवं विचित्र है । गहरी नींद में उठ कर उसने लन्दन में ऐसे अपराध किये जिनकी मिसाल अब तक दुनिया भर के पुलिस रिकार्डों में कहीं भी नहीं मिलती है । इस रोग के सम्बन्ध में कहा जाता है कि मरीज पर सौमनेवूलिज्म का दौरा तब पड़ता है जब रोगी का अचेतन उभर कर सचेतन मस्तिष्क को पूरी तरह अपने नियन्त्रण में ले लेता है । ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि मन्त्रों के द्वारा वश में किये गये भूत । इस अवस्था में अचेतन मस्तिष्क में दबी हुई प्रवृतियाँ उभरती है और वह सचेतन के एक भाग पर कब्जा करके उनसे मनचाहा काम करा लेती है । जब तक उसमें दबी हुई उभरी प्रवृतियाँ तृप्त नहीं हो जाती है तो वह शरीर को लाकर उसी चारपाई पर पटक देता है जहाँ से उसे उठाया था ।

उक्त डाक्टर नींद में उठकर इस तरह अपराध करता था कि जागने के बाद उसे अपने किये कुकर्मों की नीदं में देखे गये स्वप्नों जैसी धुँधली स्मृति भी नहीं रहती थी । इतना गहन विस्मरण भी अचेतन का ही अभिशाप था । यह घटना सन् 1888 की है । इन दिनों सारे लंदन में बुरी तरह आतंक छाया हुआ था । एक हत्यारा पुलिस थाने के-इर्द-गिर्द ही नृशंस हत्याएँ करने में संलग्न था । अस्पतालों में मुर्दों की जिस तरह चीर-फाड़ की जाती है, लगभग उसी तरह यह हत्यारा अपने शिकार की कतर-व्योंत करके रख देता था । यह हत्याएँ धन के लालच से जरा भी नहीं की जाती थी क्योंकि मारे गये लोगों के शवों के साथ उनकी कीमती वस्तुएँ तथा नकदी यथावत् मिलती थी ।

इन हत्याओं की संख्या दर्जनों को पार करके सौ का अंक छूने लगी थी । कहना नहीं होगा कि इस सर्न्दभ में पुलिस को बुरी तरह लज्जित होना पड़ रहा था कि वह इन हत्याओं को रोक पाने ओर अपराधी को खोजने में जरा भी सफल नहीं हो पा रही थी । य़़द्यपि पुलिस के जासूसी विभाग ने जी तोड़ कोशिश की थी और सन्देह में कितने ही लोगों को पकड़ लिया था, पर वास्वविक हत्यारे का कुछ सुराग मिल ही नहीं रहा था । अखबारों ने हत्यारे को ‘जैक द रिपर’ के कल्पित नाम से उल्लेखित करना आरम्भ कर दिया था ।

इस आतंक को मिटाने और हत्यारे का पता लगाने में एक साधारण व्यक्ति की अतीन्द्रिय शक्ति ने जो भूमिका निबाही उससे यह प्रसंग और भी अद्भूत बन गया । इंग्लैण्ड के एक सामान्य नागरिक जेम्स लीज ने ऐसे ही पडे़-पडे़ सपना देखा कि, ‘एक तगड़ा व्यक्ति एक युवती का पीछा करते हुए गली में मुड़ा और जैसे ही एकान्त पाया, उस व्यक्ति ने चीते की तरह लड़की पर आक्रमण कर दिया । चाकू से पहले उसने लड़की का गला काटा, फिर उसका पेट चीरा, छाती और हाथ-पैरों को कतरने के बाद वह खून से सने हाथ लाश से पोंछ कर चलता बना ।” यह स्वप्न देखकर लीज बुरी तरह डर गया और उसकी रिपोर्ट लिखाने के लिए पुलिस दफ्तर पहुँचा । पुलिस वालों ने उसकी रिपोर्ट तो लिख ली, पर उसे सनकी कह कर भाग दिया ।

एक दिन लीज अपनी पत्नी के साथ् ट्राम में कही जा रहा था । अपने पास बैठे हुए एक व्यक्ति को देखकर वह चौका कि शायद इसे कही देखा है । याद करने पर उसे स्मरण आया कि यह वही व्यक्ति है, जिसे वह सपने में देखता रहा है । उसने सोचा कि यही वह कुख्यात हत्यारा है, जिसका आतंक मचा हुआ है और उसी को वह स्वप्न में एक बार देख चुका है । अपनी पत्नी को घर जाने के लिए कह कर लीज उस व्यक्ति के पीछे हो लिया । रास्ते में ड्यूटी पर खड़े सिपाही से उसने अपने सपने के आधार पर पहचाने हत्यारे को पकड़ने के लिए कहा, पर उसने भी लीज को मा़त्र सनकी समझा और उसे टाल दिया ।

उसी रात लीज ने फिर सपने में हत्यारे को देखा । अपना यह स्वप्न सुनाने के लिए लीज फिर पुलिस दफ्तर पहुँचा और बताया कि हत्यारा लाश के कान काट कर ले जा रहा था । कान काटने की बात सुनकर पुलिस अफसर चौंक उठा क्योंकि उसी दिन हत्यारे ने पार्सल द्वारा कटे हुए कान भेजे थे तथा पुलिस को चुनौती दी की वह उसे पकड़ कर दिखाये । अस्तु, पुँलिस अधिकारी को लीज की बात में सार मालूम हुआ और उसने लीज की सहायता स्वीकार कर ली ।

लीज पुलिस अधिकारी को लेकर सपने में देखे व्यक्ति को खोजता हुआ एक शानदार कोठी के सामने जा खड़ा हुआ और बोला, हत्यारा इसी के अन्दर है । यह कोठी एक सुप्रसिद्ध और प्रतिष्ठित डाक्टर की थी । पुलिस अधिकारी को संकोच हो रहा था कि ऐसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति के यहाँ कैसे प्रवेश करें तो भी वे लोग अन्दर गये । डाक्टर से पूछताछ की तो उसने हत्याओं के सम्बन्ध में अपने को सर्वथा अनजान बताया । डाक्टर की स़्त्री से पूछताछ की गई तो उसने इतना भर बताया कि वे कभी-कभी अपने को सर्वथा भूल जाते है ओर उठकर कहीं चल देते है । लौट कर आये है तो पूछने पर बताते है कि पता नहीं मै कहाँ भटक जाता हूँ । डाक्टर को कोठी में तलाशी ली गई तो एक अलमारी में खून से सने ढेंरों कपड़े पाये गये और भी कोई प्रमाण मिले मसलन वह चाकू जिससे हत्या की जाती थी ओर लाश को कार्ट छाँट दिया था । कहने का अर्थ यह कि विभिन्न प्रमाणों के आधार पर डाक्टर अपराधी सिद्ध हुआ ।

आखिर वह ऐसा क्यों करता था ? इसकी खोजवीन और विश्लेषण करने पर पता चला कि वह किसी ऐसे मानसिक रोग से ग्रस्त है जिसके कारण वह आप से बाहर हो जाता था और किसी विशेष मनोदशा में पहुँच जाता था तथा घर से बाहर जाकर यह कुकृत्य बड़ी कुशलतापूर्वक कर डालता था । घर लौटने पर उसे इतना ही याद रहता था कि उसने कुछ किया है और ऐसा कुछ किया है जो बुरा है । घर से निकलने से लेकर वापस आ कर खून से सने कपड़े यथास्थान रखने तक उसकी ऐसी ही स्थिति बनी रहती । यहाँ तक कि वह एक बड़ा ऊनी ओवरकोट इसी काम के लिए ले जाता था कि हत्या से पहले उसे उतार कर रख दे और खून के दाग वाले कपड़ों के ऊपर उसे पहन कर किसी को सन्देह करने का अवसर दिये बिना ही घर वापिस आ सके । मुकदमें के अन्त में जब डाक्टर ने जाना कि सचमुच उसने इतनी हत्याएँ की है तो वह रो पड़ा, उसने अदालत से आग्राहपूर्वक कहा, “मुभे जल्दी ही मौत की सजा दीजिए । मैं ऐसा नरपिशाच रहा हूँ, यह जानने के बाद अब मेरे लिए इस दुनिया में जी सकना कठिन है ।”

दार्शनिक एव किंसन ने लोगों से पूछा है, “बताओ तो, हम जीवन भर लम्बी यात्रा पर चलते रहते है, पर अन्त एक तनिक भी आगे नहीं बढ़ पाते जहाँ के तहाँ बने रहते है । ऐसा क्या सपने की स्थिति के अतिरिक्त और किसी प्रकार हो सकता है । हम क्या है ? जीवन क्या है ? जीवन का प्रयोजन क्या है ? जो कुछ हम कर रहे है वह उचित है या अनुचित ? आदि कई प्रश्न है जिनका समाधान खोजे बिना ही लोग उसी प्रवाह में बहकर खो.ही खो जाते है जिसे कि बेसुधी कहा जा सकता है । स्पष्ट ही इसका कारण आत्मविस्मृति है । इस महाव्याधि ने आम आदमी को निद्राचारग्रस्त व्यक्ति की सी स्थिति में पहुँचा दिया है, जिसे इस बात का होश नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है । यही प्रश्न यदि सामान्य व्यक्तियों से किया जाय तो सम्भवतः सार्थक उत्तर शायद ही किसी से देते बने ।


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