काम छोटा और बड़ा

December 1980

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महात्मा गाँधी उन दिनों अफ्रीका में थे । भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के रंगमंच पर अभी उनका अवतरण नहीं हुआ था, फिर भी रंगभेद की नीति के विरुद्ध उन्होंने सत्याग्रह के शस्त्र का सफलतापूर्वक उपयोग किया था और अफ्रीका में मिली सफलता के कारण उनकी देश-विदेश में काफी चर्चा भी हुई थी ।

घटना सन् 1606 की है । उन दिनों गाँधी जी लन्दन गये हुए थे । लन्दन में ही कुछ

भारतीय नवयुवक भी पढ़ रहे थे । जब उन्हें पता चला कि बिना हथियार के लड़ाई लड़ने वाला और लड़ाई में जीतने वाला एक अद्भुत भारतीय सेनानी यहाँ आया हुआ है तो बरबस ही उनकी आकाँक्षा इस अद्भुत सेनानी को अपने बीच बुलाने की हुई ।

नवयुवक भारतीय छात्रों के प्रतिनिधि महात्मा गाँधी से मिले और उन्होंने सम्मान में आयोजित समारोह में उनसे भाग लेने के लिए अनुरोध किया । गाँधीजी ने भारतीय छात्रों का उत्सा् देखकर उनका मन रखने के लिए जलरो में भाग लेना स्वीकार कर लिया । यही नहीं छात्रों का उत्साह देखकर उनका मन रखने के लिए जलरो में भाग लेना स्वीकार कर लिया । यही नहीं छात्रों के अनुरोध पर उन्होंने समारोह का सभापतित्व करना भी स्वीकार कर लिया । इस समारोह में एक भोज का आयोजन भी निश्चित किया गया था । गाँधी जी ने भोज की स्वीकृति तो दे दी, पर उसके साथ यह शर्त भी लग लगा दी कि इस अवसर पर जो भोज दिया जायेगा उसमें माँस का जरा भी प्रयोग न किया जाएगा और न ही शराव का उपयोग होगा ।

विद्यार्थी अपने-अपने कामों में इस प्रकार व्यस्त थें । कि किसी को किसी की ओर देखने का अवकाश ही नहीं । इन विद्यार्थियों के बीच एक दुबला-पतला भारतीय युवक भी था जो दौड़-दौड़ कर काम कर रहा था । यह युवक थालियाँ माँज रहा था और बरतन साफ कर रहा था । एक काम से कोई बरतन खाली होता तो दूसरे काम में उसका उपयोग करने के लिए चट से वह युवक खाली बरतन ले आता तथा उसे साफ करके रसोई का काम कर रहे छात्रों को दे आता ।

जब भोजन बनकर तैयार हो गया तो आगन्तुक छात्रों ने भोजन किया । जिन विद्यार्थियों ने इस भोज की व्यवस्था का दायित्व सम्हला था, भोजन परोसने और जूठी थालियाँ उठाने का काम भी उन्हें ही सौंपा गया था । वे जूठी थालियाँ उठाकर लाते और बर्तन माँजने वालों के सामने रख जाते ताकि उनकी सफाई की जा सके । अब इस काम में अन्य छात्र भी जुट गये थें । और काम तेजी से होने लगा था । जब सभी लोग भोजन का निवृत्त हो गए जो छात्र समिति के उपप्रधान ने स्वयंसेवकों से भोजन के लिए कहा ।

वह अजनबी युवक अब भी अपने काम में लगा हुआ था । उपप्रधान उस अजनबी युवक के पास यह कहते पहुँचा, ‘जल्दी भोजन कर लो मित्र । गाँधी आते ही होंगे । फिर उनके साथ सबको बैठना है ।”

अजनबी युवक अपने हाथ की थाली साफ कर रखते हुए उठा तो उसे देखकर उपप्रधान दंग रह गया । उसके मुँह से आर्श्चयमिश्रित चीत्कार-सी निकल उठी । ‘गाँधी जी आपं”““““‘आपको यह करने की क्या आवश्यकता थी ?’

आसपास खंडे़ अन्य छात्र गाँधीजी को अपने बीच इस प्रकार पाकर दंग रह गए । सभा में उपप्रधान ने गाँधीजी से क्षमा माँगी कि उन्हें किसी ने पहचाना नहीं और यह काम सौंप दिया ।

इसके तुरन्त बाद गाँधीजी ने इस स्पष्टीकरण से अपना भाषण आरम्भ किया । ‘अकारण खेद मनाने की आवश्यकता नहीं है । मैने स्वेच्छा से यह काम चुना था और काम कोई भी छोटा नहीं है और न ही कोई बड़ा । सब काम काम है । हम लोग अपने परिवार में भी तो यह काम करते है । वहाँ तो कोई किसी काम को छोटा बड़ा नहीं मानता, फिर आप र्व्यथ क्यों दुःखी हो रहे है ?”


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