मधुमक्खी फूल पर बैठी (kahani)

December 1980

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मधुमक्खी फूल पर बैठी थी और रस चूस रही थी।

फूल ने कहा-देवि, इस संसार में आदान-प्रदान का क्रम है। आप रस भले ही लें, पर बदले में भी तो कुछ दें।

मक्खी ने फूल की बात अनसुनी कर दी और रस चूसती रही। उसने समरथ को नहीं दोष गुसाई की उक्ति का मन ही मन दुहराया और उसी का समर्थन किया।

एक दिन बहेलिया आया और शहद ही नहीं छत्ता भी तोड ले चला। मधुमक्खी दुःखी तो हुई, पर साथ ही मन को यह कह कर समझाती रही-मुफ्त की किसी को भी नहीं फलती तो मेरे लिए ही फलवती क्यों होती?


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