अतीन्द्रय शक्ति का विकास हर किसी के लिए सम्भव

December 1980

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सन् 1628 का अक्टूबर मास था । प्रथम महायुद्व समाप्त हो चुका था । इस युद्व में लाखें लोग मारे गये थे और हजारों का पता नहीं था कि वे कहाँ है ? इन्हीं दिनों मसजरेंक (पोबैंड) के उच्चाधिकारियों के पास एक लड़ी मैरिना आया करती थी और वह आग्रह करती थी कि वे उसके ब्वायफ्रेंड का पता लगायें जो महायुद्व में एक सैनिक की हैसियत से शामिल हुआ था और जिसके बारे में पता नहीं था कि वह जीवित है या मारा गया । अधिकारी उसके बार-बार आने और अपने ब्वायफ्रेंड़ का पता लगाने के आग्रह को सुन-सुनकर तंग आ चुके थे । वे उलटे उसी से प्रश्न करते थे कि बताओ बेबी ! तुम्हीं बताओं । हम उसे कहाँ ढूँढें़ ?

इसके उत्तर में मैरिना एक स्वप्न का हाल सुनाती जो प्रायः व देखा करती थी । अक्टूबर 1618 में जब वह अगली बार उच्चाधिकारियों से आग्रह करने के लिए गई थी, उसी रात उसने सपना देखा कि उसका साथी एक अन्धेरी सुरंग में रास्ता ढूँढ़ रहा है घेर अन्धकार है । अन्धकार में रास्ता टटोलने के लिए उसके साथी ने मोमबत्ती जलाई और उसके बाद चारों ओर बिखरे पड़े मलवे को हटाने की कोशिश की । मलवा हटाते-हटाते वह थक गया । उसकी शक्ति जवाब दे गई । हार कर घुटनों के बल झुक गया और सिसकने लगा ।

मैरिना यह स्वप्न कई बार देख चुकी थी । इस स्वप्न का प्रत्येक दृश्य चल चित्र के दृश्यों की भाँति उसे दिखाई देता । एक भी दृश्य में कहीं भी कोई भी परिवर्तन नहीं आता था । कुछ समय उपरान्त उसके स्वप्न में थोड़ा-सा परिवर्तन आया । अब वह देखती थी कि एक पहाड़ी है, उस पहाड़ी की चोटी के पास एक दुर्ग है । उस दुर्ग का बुर्ज टूटा हुआ है वह टूटे हुए बुर्ज के मलवे तक पहुँचती है । वहाँ जा कर वह खड़ी होती है तो मलवे में से उसे अपने खोये हुए मित्र स्टानी स्लोनिस की जानी-पहचानी आवाज सुनाई देती है जो मदद के लिए पुकार रहा है । यह आवाज उन पत्थरों के नीचे से आ रही थी, मैरिना ने मलवा हटाने की कोशिश की पर मलवा था कि खत्म ही नहीं होता था । मलवा हटाते-हटाते वह बुरी तरह थक जाती है ओर निराश होकर हाँपती हुई वापस लौटती है । इसी निराशा और हताशा के क्षणों में उसकी नींद टूट जाती है ।

यही सपना वह बार-बार देखती है । वह परेशान हो गई । अन्त में उसने अपने इस स्वप्न से अपनी माँ को अवगत कराया और माँ ने इसके बारे में नगर के एक वृद्व व्यक्ति को जो उसके परिवार का मित्र भी बताया । उस व्यक्ति को मैरिना के स्वप्न पर विश्वास नहीं हुआ । मैरिना ने अन्य लोगों से भी इस सम्बन्ध में सहायता प्राप्त करना चाहा परन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी । हार कर मैरिना ने स्वयं उस स्थान को ढूँढ़ने और स्टानी की मदद करने के निश्चय किया । वह अकेली ही उस स्थान की ओर निकल पड़ी, यद्यपि उस स्थान को ढूँढ़ लेने ओर स्टानी की सहायता करने की सम्भावना बहुत कम थी फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी । वह दिन भर चलती और रात को सड़क के किनारे ही सो जाती ।

कई हफ्तों की यात्रा और भटकन के बाद अन्ततः मैरिना ने वह दुर्ग खोज ही लिया, जिसे वह स्वप्न में देखा करती थी । आस-पास की बस्तियों में रहने वाले कुछ नागरिकों को उसने अपनी मदद के लिए राजी कर लिया । दो दिन तक निरन्तर मलवा हटाने का काम चला । तीसरे दिन जमीन में भीतर घुसने का रास्ता मिल गया । मैरिना गाँव वालों के साथ सुरंग के मुँह पर रखा पत्थर हटा ही रही थी कि उसने तथा साथ काम करने वाले लोगों ने सुरंग के उस पार से किसी मनुष्य की आवाज सुनी । मैरिना इस आवाज को सुनते ही पहचान गई कि यह आवाज किसकी है ? आवाज सुनकर वह मारे खुशी के चीख-सी उठी । उसने अपने हाथों से चट्टान तोड़ी । अन्य लोंगों ने सुरंग में सूराख को इतना बड़ा किया कि उसमें से आदमी भली-भाँति भीतर प्रवेश कर सके । मैरिना ओर गाँव वालों न स्टानी सलोनिस को उस सुरंग से बाहर निकाल लिया । उसका चेहरा पीला और सख्त था । इतना लम्बा समय उसने अपने पास इकट्ठे रखे हुए पनीर और शराब पर बिताया था । प्रकाश के लिए उसके पास जो मोमबत्तियाँ थी, उन्हीं का उपयोग किया था ।

मैरिना ने कई दिनों तक लगातार जो स्वप्न देखा था वह आर्श्चयजनक रुप से सत्य सिद्व हुआ था । इस तरह की सैकड़ों घटनाएँ है जो स्वप्नों के माध्यम से, तरंगें के माध्यम से, अनायास उठने वाली कल्पनाओं के माध्यम से दूर बोध या पूर्वाभाम के-सत्य को प्रमाणित करती है । गेटे ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि एक बार वह अपने निवास स्थान बाइम्नर में था तो उन्हें अचानक तीव्र अनुभूति हुई कि वहाँ से हजारों मील दूर सिसली में एक भयकर भूकम्प आया है । गेटे ने इस अनुभूति के समबन्ध में अपने मित्रों को बताया लेकिन किसी ने गेटों की इस बात का विश्वास नहीं किया । कि बिना किसी आधार के, बिना किसी सूत्र के इतनी दूर की बात इस प्रकार कैसे मालूम हो सकती है ? लेकिन कुछ दिन बाद आये समाचारों से पता चला कि ठीक उसी समय सिसली में वैसा ही भूकम्प आया था जमा कि गेटों ने अपने मित्रों को बताया था ।

बिना किसी आधार के, बिना किसी प्रत्यक्ष कारणों के किस प्रकार किसी व्यक्ति को सुदूर घटनाओं का, अनागत भविष्य का, व्यतीत हो चुके अतीत का विवरण ज्ञात हो जाता है, यह वैज्ञानिकों के लिए अभी शोध का विषय बना हुआ है । सामान्यत मस्तिष्क इन्द्रियगम्य ज्ञान की जाकारियों तक ही सीमित रहता है । शरीर विज्ञानियों की ऐसी मान्यता है । लेकिन अब पैरासाइकोलाँजी-मनोविज्ञान की एक शाखा में हुई नवीतम शोधें के आधार पर यह स्वीकार किया जाने लगा है कि मानवीय मन विराट् विश्व मन का ही एक अंश है और जो कुछ इस विराट् विश्व ब्रहृण्ड में हो रहा है या निकट भविष्य में होने जा रहा है उसकी सम्वेदनाएँ मानवी मन को भी मिल सकती है ।

मानवी मस्तिष्क की जितनी जानकारी सामान्य रुप से प्राप्त की जा सकी है उसके अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क में स्नायुकोश, जर्वसेल्स की सख्या लगभग दस अरब है । इनकी सख्या से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कितने छोटे होते होंगे । लेकिन छोटे होते हुए भी इनकी क्षमता अपनी दक्षता के अनुरुप किसी परिपूर्ण मनुष्य से कम नहीं है । इन दस अरब कोशों की क्षमता और दक्षता का विश्लेषण किया जाए तो यही कहना पडे़गा इन कोशों में से प्रत्येक अपनी विशेषताओं के कारण देव या दानव स्तर का है ।

इन कोशों में से कुछ तो माइक्रों फिल्मों की तरह न जाने कब की स्मृतियाँ संजोये हुए है । इनमें न जाने कब की स्मृतियाँ सुरक्षित है ? मोटे तौर पर जिन बातों को हम भूल चुके होते है, वे भी वस्तुतः विस्मृत नहीं होतीं, वरन् इन कोशों में सुरक्षित रहती है या कहा जा सकता है कि मस्तिष्क के एक कौने में छिपी पड़ी रहती है और जब अवसर पाती है तो वर्षो में उग आने वाली घास की तरह उभर कर ऊपर आ जाती है ।

कनाडा के स्नायु विशेषज्ञ डा. पेनफील्ड ने इस तथ्य को को जाँचने के लिए एक व्यक्ति का स्मृति कोश विद्युत धारा से उत्तेजित किया तो उसने बीस वर्ष पहले देखी गई एक फिल्म के कथानक, दृश्य और सम्वाद इस प्रकार बताने आरम्भ कर दिए कि मानो वह वही फिल्म देखता जा रहा हो और सामने के दृश्यो का वर्णन करता जा रहा हो । मस्तिष्क में रहने वाले इन कोशों का सम्बन्ध शरीर के प्रत्येक अंग अवयव से है । इन कोशों से सम्बन्धित नाड़ी तन्तु समस्त शरीर में फैले पड़े है । वैज्ञानिकों ने इन्हें दो श्रेणियों में बाँटा है- एक सेन्सरी नब्ज अर्थात् सज्ञावाहक तन्तुओं का सम्बन्ध ज्ञानेन्द्रियों से होता है । जो कुछ हम देखते, सुनते, चखते, सूँघते और र्स्पश करते है उनकी अनुभूति सज्ञावाहकों के माध्यम से होती है और चलने, फिरने, खाने, पीने, पढ़ने, लिखने जैसे शारिरीक क्रिया कलाप कर्मेंन्द्रियों की गतिविधियाँ गतिवाहकों द्वारा नियन्त्रित तथा संचालित होती है

कहा गया है कि हमारा मस्तिष्क सामान्यतः इन्द्रियगम्य अनुभूतियों और सम्वेदनाओं की जानकारी तक ही सीमित रहता है किन्तु मस्तिष्क में ही इन सम्भावनाओं के बीज भी छिपे रहते है कि पिछले दिनों क्या-क्या हो चुका, इस समय कहाँ क्या हो रहा है और निकट भविष्य में कहाँ क्या होने वाला है ? इसकी जानकारी हो सके । यह क्षमता जिसे अतीन्द्रिय शक्ति कहा जा सकता है सामान्य स्थिति में प्रसुप्त अवस्था में ही पड़ी रहती है । केवल वर्तमान से सम्बन्धित प्रत्यक्ष की ही अधिक जानकारी होती है, भूतकाल की निज से सम्बन्धित घटनाएँ ही जब विस्मृत हो जाती है तो अन्यत्र घटने वाली घटनाओं की जानकारी कैसे रह सकती है ? लेकिन यह बात सामान्य स्तर के मस्तिष्कों पर ही लागू होती है । परिष्कृत मस्तिष्क इससे कहीं ऊँचे उठे होते है और वे त्रिकालज्ञ की सी स्थिति में वैसी ही क्षमताओं से सम्पन्न होते है ।

विज्ञान की परिधि में अभी भौतिक जानकारी संग्रह करने वाले चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी संस्थान को प्रभावित करने वाले अचेतन मस्तिष्क का परिचय ही आया था । अब अतीन्द्रिय मस्तिष्क के अस्तित्व को भी स्वीकार किया जा रहा है क्योंकि बहुत-सी ऐसी घटनाएँ घटती रहती है जिनसे भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास मिलने और उनके अक्षरशः सही उतरने के प्रमाण मिलते है । यह प्रमाण इतने स्पष्ट और प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किये गए होते है कि उनमें किसी प्रकार के सन्देह की कोई गुँजाइश ही नहीं है ।

मानवीय सत्ता में अतीन्द्रिय चेतना का अस्तित्व स्वीकार किये बिना इन भविष्यवाणियों, पूर्वाभासों और दूरबोध की घटनाओं का कोई कारण ही नहीं रह जाता है । योगी और सिद्व पुरुष जिस दिव्य चेतना को अपनी तप साधना के माध्यम से विकसित करते है, वह कई बार कुछ व्यक्तियों में अनायास ही उत्पन्न हो जाती है । अनेक लोगों में वह जन्म-जात रुप से पाई जाती है । इस क्षमता का विकास करके मनुष्य सीमित परिधि के बन्धनों को काट कर असीम के साथ अपने सम्बन्ध सूत्र जोड़ सकता है और अपनी ज्ञान परिधि को उतना ही विस्तृत बना सकता है समय-समय पर इस प्रकार के जो प्रमाण मिलते रहते है उनसे इस सम्भावना को और भी बल मिलता है कि आत्मविश्वास का प्रयत्न मनुष्य को कहीं से कहीं पहुँचाने में समर्थ है ।

अतीन्द्रिय चेतना को प्रमाणित करने और उसका विश्लेषण करने वाले ढेरों प्रामाणिक ग्रन्थ मिलते है। थर्ड आई, सहस्त्र सिद्धों का सिद्धपीठ द मेका आफ है वनली ड्राइजर्स आदि पुस्तकों में उनके लेखकों ने अपनी निजी दिव्य अनुभूतियों के वर्णन लिखे है । उन्होंने अतीन्द्रिय दर्शन और अनुभूतियों का जो वर्णन विश्लेषण किया और जो प्रतिपादन दिये वे आज्ञाचक्र के जागरण और उसकी क्षमताओं की कसौटी पर पूर्णतया खरे उतरे है । भ्रूमध्य भाग में अवस्थित तीसरा नेत्र देवी-देवताओं के ही नहीं मनुष्य के पास भी होता है । आवश्यकता उसे जागृत करने, उसे विकसित बनाने भर की है । उस आधार पर सहज ही दिव्यदर्शी हुआ जा सकता है ।

सामान्य मनुष्यों की चेतना जिस स्तर पर होती है अतीन्द्रिय क्षमताओं से सम्पन्न मनुष्यों की चेतना इससे ऊपर उठी होती है । इसलिए उन्हें अनागत भविष्य, सुदूँर स्थित घट रही घटनाओं और बहुत पहले घट चुकी घटनाओं की भी जानकारी हो जाती है, इस तथ्य को यों भी समझा जा सकता है कि सड़क पर चल रहे लोगों को अपने आस-पास कुछ फूट दूर तक ही चीजें दिखाई देती है। जो लोग ऊँचे स्थान पर खड़े होते है उन्हें ज्यादा दूर तक दिखाई देता है। आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाजों से और भी अधिक दूर तक अधिक विस्तार से देखा समझा जा सकता है। यही बात उच्चस्तरीय चेतना वाले व्यक्तियों पर लागू होती है। यदि अपनी चेतना को परिष्कृत बनाया जायें, प्रयत्न किया जाए तो कोई भी व्यक्ति अपने मं अतीन्द्रिय दिव्य शक्ति विकसित कर सकता है। योग साधना ऐसी ही सम्भावनाओं का पथ-प्रशस्त करती है


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